दिल्ली उच्च न्यायालय ने उपराज्यपाल से एक याचिका पर जवाब मांगा है जिसमें उनके द्वारा जारी उस अधिसूचना को चुनौती दी गई है जो पुलिस को सोशल मीडिया सामग्री हटाने के लिए नोटिस जारी करने का अधिकार देती है। मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने उपराज्यपाल और केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को नोटिस जारी करके छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा।

अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 17 सितंबर की तिथि निर्धारित की है।
पीठ सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (एसएफएलसी) की ओर से दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उपराज्पाल द्वारा जारी एक अधिसूचना की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। उक्त अधिसूचना में दिल्ली पुलिस को सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियमावली, 2021 के तहत एक नोडल एजेंसी नामित किया गया था और जो उसे ऑनलाइन सामग्री हटाने के लिए नोटिस जारी करने का अधिकार देता है।

याचिकाकर्ता के वकील तल्हा अब्दुल रहमान ने दलील दी कि इस तरह नामित किये जाने का कानून में कोई आधार नहीं है तथा न तो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79 और न ही सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियमावली, 2021 ऐसी नोडल एजेंसी नामित करने का कोई अधिकार प्रदान करते हैं।
याचिका में कहा गया है, ‘‘ऑनलाइन सामग्री को ब्लॉक करने या हटाने की वैधानिक शक्ति सूचना प्रौद्योगिकी (जनता द्वारा सूचना तक पहुंच को अवरुद्ध करने की प्रक्रिया और सुरक्षा) नियम, 2009 के साथ पठित आईटी अधिनियम की धारा 69ए के तहत विशेष रूप से केंद्र सरकार में निहित है। पुलिस को ये शक्तियां प्रदान करके उक्त अधिसूचना संवैधानिक और वैधानिक सीमाओं का अतिक्रमण करती है और इसलिए यह मूल कानून के अधिकारातीत है।’’