
टिकैतनगर (बाराबंकी):
सच्ची श्रद्धा, अडिग संकल्प और निःस्वार्थ सेवा यदि एक व्यक्ति में एक साथ मिल जाए तो वह समाज में प्रेरणा बन जाता है। कुछ ऐसा ही करके दिखाया है बाराबंकी जिले के टिकैतनगर क्षेत्र के सेमरी गांव निवासी समाजसेवी पुरुषोत्तम तिवारी ने। इन्होंने गुप्तेश्वर महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार अपने निजी संसाधनों से कराया, जिसकी लागत लगभग 20 लाख रुपये है—वह भी बिना किसी सरकारी मदद और प्रचार के।
एक टूटते मंदिर से शुरू हुई श्रद्धा की यात्रा
84 कोसी परिक्रमा मार्ग पर स्थित यह मंदिर वर्षों पुराना है और इसका धार्मिक महत्व अत्यधिक है। समय के साथ इसकी स्थिति जर्जर हो गई थी। जहां अधिकांश लोग इसे नियति मानकर आगे बढ़ गए, वहीं पुरुषोत्तम तिवारी ने इसे अपनी आस्था और कर्तव्य से जोड़ लिया। उनके लिए यह केवल एक भवन नहीं, बल्कि परंपरा, पहचान और पीढ़ियों के लिए एक धरोहर थी।
निजी संसाधनों से दिया मंदिर को नया जीवन
बिना सरकारी सहायता, चंदा या किसी संस्था की मदद के, उन्होंने अपने व्यक्तिगत खर्च से न केवल मंदिर का कायाकल्प कराया बल्कि परिसर को श्रद्धालुओं के लिए सुविधाजनक और सुंदर भी बनाया। आज यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि सेवा और समर्पण का प्रतीक बन गया है।
प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव बना सामाजिक एकता का उत्सव
26 से 28 मई तक चलने वाला तीन दिवसीय प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव अब क्षेत्रीय पर्व जैसा बन गया है। कलश यात्रा, वैदिक मंत्रोच्चार, यज्ञ और विशाल भंडारे के साथ यह आयोजन न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक सौहार्द का भी प्रतीक है। इसमें स्थानीय जनता की भागीदारी इस बात को प्रमाणित करती है कि सेवा का भाव कितनी गहराई तक असर करता है।
पुरुषोत्तम तिवारी: नाम नहीं, विचार बन चुके हैं
पुरुषोत्तम तिवारी का यह कार्य इस बात का जीवंत उदाहरण है कि राष्ट्र निर्माण की राह केवल सरकारों से नहीं, जागरूक नागरिकों की पहल से भी गुजरती है। “जहाँ दूसरों को समस्या दिखती है, वहाँ कुछ लोग अवसर देखते हैं सेवा का। पुरुषोत्तम तिवारी उन्हीं में से हैं।”
उनकी कहानी न केवल आस्था को सुदृढ़ करती है, बल्कि समाज को यह भी याद दिलाती है कि सेवा का कोई विकल्प नहीं। यह भारत के उस आत्मबल की तस्वीर है जो बिना किसी संसाधन के भी इतिहास रचने की क्षमता रखता है।