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मायावती जी हमारी नेता रही हैं, मैं उनके हर प्रश्न का जवाब देना उनके सम्मान के विपरीत मानता हूं: स्वामी प्रसाद मौर्या- Amar Bharti Media Group उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश

मायावती जी हमारी नेता रही हैं, मैं उनके हर प्रश्न का जवाब देना उनके सम्मान के विपरीत मानता हूं: स्वामी प्रसाद मौर्या

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्या के रामचरितमानस के मुद्दे पर बयानबाजी के बाद अब उनके निशाने पर हिंदू मंदिर हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि सिर्फ ज्ञानवापी का ही सर्वे क्यों, हिंदू मंदिरों का भी सर्वे होना चाहिए वो भी बौद्ध मठों को तोड़कर बनाए गए हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य के इस बयान पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने जमकर निशाना साधा। अब मायावती के बयान पर स्वामी प्रसाद मौर्य ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है कि मायावती हमारी नेता रही हैं। मैं उनके हर प्रश्न का जवाब देना उनके सम्मान के विपरीत मानता हूं। मेरी मंशा मुस्लिम और बौद्धों को खुश करने का नहीं है। इस देश की जो गंगा-जमुनी तहजीब है, हिंदु-मुस्लिम-सिख-ईसाई, आपस में सब भाई भाई का, वो भाईचारा बना रहे इसलिए हम इन सब बातों को यहीं विराम देता हूं।

दरअसल, इस वक्त उत्तर प्रदेश में ज्ञानवापी के सर्वे को लेकर राजनीति तेज है। इस पर एक ट्वीट स्वामी प्रसाद मौर्या ने भी किया. उन्होंने लिखा- आखिर मिर्ची लगी न, अब आस्था याद आ रही है। क्या औरों की आस्था, आस्था नहीं है? इसलिए तो हमने कहा था किसी की आस्था पर चोट न पहुंचे इसलिए 15 अगस्त 1947 के दिन जिस भी धार्मिक स्थल की जो स्थिति थी, उसे यथास्थिति मानकर किसी भी विवाद से बचा जा सकता है। अन्यथा ऐतिहासिक सच स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए। 8वीं शताब्दी तक बद्रीनाथ बौद्ध मठ था उसके बाद यह बद्रीनाथ धाम हिन्दू तीर्थ स्थल बनाया गया, यही सच है। इसके बाद बीजेपी के नेताओं ने बयान लगभग स्वाभाविक था।

इस बीच मायावती ने भी ट्वीट करके स्वामी प्रसाद मौर्या पर जबरदस्त हमला बोला। मायावती ने ट्वीट करके लिखा- समाजवादी पार्टी के नेता श्री स्वामी प्रसाद मौर्य का ताजा बयान कि बद्रीनाथ सहित अनेकों मन्दिर बौद्ध मठों को तोड़कर बनाए गए हैं तथा आधुनिक सर्वे अकेले ज्ञानवापी मस्जिद का क्यों बल्कि अन्य प्रमुख मन्दिरों का भी होना चाहिए, नए विवादों को जन्म देने वाला यह विशुद्ध राजनीतिक बयान। जबकि श्री मौर्य लम्बे समय तक बीजेपी सरकार में मंत्री रहे किन्तु तब उन्होंने इस बारे में पार्टी व सरकार पर ऐसा दबाव क्यों नहीं बनाया? और अब चुनाव के समय ऐसा धार्मिक विवाद पैदा करना उनकी व सपा की घिनौनी राजनीति नहीं तो क्या है? बौद्ध व मुस्लिम समाज इनके बहकावे में आने वाले नहीं।