योगी के सुशासन में जनपद एटा के फफोतू गाँव की भयावह घटना: मन्दिर के श्रद्धालुओं की कार पर हमला, सीसीटीवी में कैद गुण्डई, पुलिस बनी तमाशबीन

एटा जनपद के फफोतू गाँव में घटी एक हैरान कर देने वाली घटना ने उत्तर प्रदेश सरकार के ‘सुरक्षा और विश्वास’ के उस दावे को कठघरे में खड़ा कर दिया है, जिसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार मंचों से दोहराते हैं। मुख्यमंत्री योगी जिस उत्तर प्रदेश में आमजन को “दंगामुक्त, भयमुक्त और सुरक्षित” जीवन का भरोसा दिला रहे हैं, उसी प्रदेश में कुछ दबंगों के हौसले इतने बुलंद हैं कि धार्मिक स्थलों से लौटते श्रद्धालुओं पर दिनदहाड़े हमला कर दिया जाता है और पुलिस चुप्पी साधे बैठी रहती है—यह चिंतन और चिंता का विषय है।

घटना 10 जून 2025 की है। सोनपाल वर्मा अन्य श्रद्धालुओं के साथ गाँव के बलिकर्णेश्वर मंदिर से आरती करके कार से लौट रहे थे। जब वह रात 8 बजे के करीब फफोतू गाँव के तिराहे पर पहुंचे, तभी लाठी डण्डों सरिया लेकर पहले से घात लगाकर खड़े चार लोगों संदीप, प्रदीप, अमित और प्रशांत जाटव ने उनकी कार को घेर लिया। गाली-गलौज करते हुए उन्होंने कार पर हमला किया, खिड़कियों को पीटा और कार के भीतर मौजूद श्रद्धालुओं को जान से मारने की धमकी दी। सोनपाल वर्मा किसी तरह जान बचाकर निकले, लेकिन यह पूरी घटना गांव के ही एक सीसीटीवी कैमरे में साफ-साफ कैद हो गई।

एक ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश की जनता को यह आश्वासन दे रहे हैं कि अब “उत्तर प्रदेश में अपराधी या तो जेल में हैं या राम नाम सत्य हो चुके हैं”, वहीं दूसरी ओर गांवों और कस्बों में गुंडे खुलेआम कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं और पुलिस मूकदर्शक बनी बैठी है। यदि सीसीटीवी फुटेज के बाद भी पुलिस की आंखें नहीं खुल रही हैं, तो यह न केवल स्थानीय पुलिस पर प्रश्नचिह्न है बल्कि डीजीपी स्तर की पुलिसिंग व्यवस्था की ईमानदारी और कार्यप्रणाली पर भी गहरी चोट है।

फफोतू की यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं है। इस घटना से ठीक 15-20 मिनट पहले फफोतू के ही ऋषभ जैन अपने काम से चौराहे की ओर गए थे तो उनके साथ भी गाली गलौच कर जान से मारने की धमकी दी गई। उपद्रवियों ने उनको घेरकर हमला करने की कोशिश की। उन्होंने भी थाने में तहरीर दी, जिसमें बताया कि 8 अप्रैल को भी इन्हीं आरोपियों ने उनके साथ अभद्रता की थी। लगातार शिकायतों और साक्ष्यों के बावजूद पुलिस ने कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की।

तीसरी शिकायत बदन सिंह ने दी है, जिन्होंने बताया कि इन्हीं उपद्रवियों ने अपने साथियों सहित उनके घर आकर गालियां दीं और खुलेआम जान से मारने की धमकी दी और कहाँ बुला लो पुलिस को। पुलिस के नहीं पहुँचने पर फिर धमकाया कि देख लिया कहाँ गई तेरी पुलिस ? उन्होंने भी घटना का वीडियो और फुटेज पुलिस को सौंपा है।

सवाल यह है कि जब मुख्यमंत्री खुद प्रदेश में कानून का राज स्थापित करने की बात कह रहे हैं, तब क्या कुछ थानों में कानून के राज की जगह गुंडों का ‘स्थायी ठेका’ हो गया है?

यह कोई छिपी बात नहीं है कि योगी राज में बुलडोज़र मॉडल, माफिया मुक्त अभियान, और रासुका की कार्रवाई ने बड़े-बड़े अपराधियों की कमर तोड़ी है। लेकिन जब स्थानीय स्तर पर पुलिस ही अपने दायित्वों से मुंह मोड़े, शिकायतों को ठंडे बस्ते में डाले और सबूतों के बावजूद एफआईआर तक दर्ज न करे, तो यह मुख्यमंत्री की मंशा पर भी सीधा प्रहार है। यह उन लाखों नागरिकों के विश्वास पर चोट है जो सोचते हैं कि योगी शासन में उन्हें न्याय मिलेगा।

इस घटना का सामाजिक दृष्टिकोण भी उतना ही चिंताजनक है। श्रद्धालुओं पर हमला केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं, बल्कि उसकी धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक सम्मान पर हमला है। ग्रामीण क्षेत्रों में यदि लोग पूजा-पाठ करके लौटते हुए भी सुरक्षित नहीं हैं, तो यह गांवों के सामाजिक ढांचे और सांप्रदायिक सौहार्द को भी तोड़ने की साजिश मानी जाएगी।

यह घटना उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए एक ‘टेस्ट केस’ हो सकती थी, जिसमें वह सीसीटीवी फुटेज के आधार पर फौरन कार्रवाई करके मुख्यमंत्री के ‘कानून का राज’ के संकल्प को ज़मीनी सच्चाई बना सकती थी। लेकिन यहां हुआ उल्टा—पुलिस मौन है, पीड़ित असुरक्षित हैं और आरोपी निडर होकर खुलेआम घूम रहे हैं।

इस घटना ने साबित कर दिया है कि केवल लखनऊ या राजधानी स्तर पर कानून व्यवस्था सुधारने से काम नहीं चलेगा, जब तक कि गांव-गांव के थानों में बैठे पुलिस अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से नहीं निभाते। पुलिस मुखिया चाहे जितने आदेश जारी करें, जब तक स्थानीय स्तर पर पुलिस को जवाबदेह नहीं बनाया जाएगा, ऐसे मामलों में अपराधियों के हौसले बुलंद रहेंगे।

फफोतू की घटना मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए एक चेतावनी है कि उनकी बनाई गई कानून व्यवस्था की छवि को कुछ भ्रष्ट और निष्क्रिय पुलिसकर्मी अपने व्यवहार से धूमिल कर रहे हैं। यदि ऐसी घटनाओं पर भी बुलडोजर नहीं चलेगा, तो जनता का भरोसा धीरे-धीरे हिलने लगेगा।

अब समय है कि सरकार स्वयं इस घटना को संज्ञान में लेकर फौरन कार्रवाई करे। आरोपियों के खिलाफ कड़ी धाराओं में मुकदमा दर्ज हो, गिरफ्तारी हो, और जरूरत पड़ी तो उन पर रासुका या गैंगस्टर एक्ट भी लगाया जाए। केवल तभी जनता को यह भरोसा दिलाया जा सकेगा कि मुख्यमंत्री जो कहते हैं, वह धरातल पर भी लागू होता है।

इस तरह की घटनाएं समाज में नफरत, डर और असहिष्णुता का माहौल बढ़ाती हैं। इसे रोकने के लिए न सिर्फ प्रशासन, बल्कि समाज के जिम्मेदार नागरिकों को भी आगे आना होगा। यदि हम चुप रहे, तो अगला निशाना कोई और होगा।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चाहिए कि वे खुद इस मामले की मॉनिटरिंग कराएं और दोषी पुलिसकर्मियों पर भी कार्रवाई हो, ताकि ‘उत्तर प्रदेश में अपराधी डरें, आमजन नहीं’—इस नारे को हकीकत बनाया जा सके।