वैशाली। गुरूवार प्रातः श्रमणाचार्य विशुद्धसागर जी महाराज का 24 पिच्छी युक्त साधुओं सहित 24 तीर्थंकरों की तपोपूत शाश्वत निर्वाण भूमि सम्मेद शिखर जी की ओर विहार हो गया। प्रथम पड़ाव वैशाली से लगभग 10 किलोमीटर दूर अम्बारा चौक पर हुआ। यह अम्बारा चौक बौद्ध साहित्य में प्रसिद्ध आम्रपाली का जन्म स्थान है।
आचार्य श्री संघ की पहले आरा जाने की संभावना है। यहां छोटी सी नगरी में लगभग 60 जैन मंदिर और प्राचीन पाण्डुलिपियों, जैन शास्त्रों के भण्डार के लिए प्रसिद्ध ‘जैन सिद्धान्त भवन’’ है, जिसमें 50 हजार से अधिक जैन शास्त्र है।
संभव है इनके अध्ययन हेतु एक माह तक आचार्य श्री यहां रुकें। प्राकृत जैनागम और अहिंसा शोध संस्थान वैशाली के पूर्व निदेशक डॉ. ऋषभचन्द्र जैन फौजदार ने बताया कि आचार्य श्री ने जनवरी में सोनागिरि सिद्धक्षेत्र से सम्मेद शिखर जी के लिए ‘‘मंगलयात्रा’’ के नाम से विहार किया था, किन्तु बीच में कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन हो जाने से वैशाली में चातुर्मासा स्थापना की थी।
उस अधूरी ‘‘मंगलयात्रा’’ को पूर्ण करने के उद्देश्य से आचार्य श्री ने संघ सहित विहार किया है। यद्यपि वैशाली से पटना निकट है किन्तु आचार्य संघ की पहले हस्तलिखित ताड़पत्रीय आदि जैन शास्त्रों का अध्ययन करने की प्रथम वरीयता है इसलिए पहले आरा के लिए विहार किया है, तत्कालीन परिस्थितियों और अनुकूलताओं के अनुसार आचार्य श्री सुदर्शन सेठ की सिद्ध भूमि गुजजारबाग पाटना जाने या छोड़ने का निर्णय लेंगे।
किन्तु यह ‘‘मंगलयात्रा’’ सम्मेद शिखर जी के लिए ही रहेगी। आचार्य श्री ने कहा कि उनके अभी तक के चातुर्मास वर्षायोग चार माह के ही रहे किन्तु महामारी की विषम परिस्थितियों के कारण वैशाली का चातुर्मास छ: मासा हो गया। इसी बहाने भगवान महावीर स्वामी की पवित्र जन्मभूमि पर रुकने का संघ को सौभाग्या मिला है।