भारतीय जनता पार्टी के लिए अब राज्यसभा में बिलों को पास कराने की राह आसान हो गई है. ऐसा उत्तराखंड की एक और यूपी की 10 राज्यसभा सीटों के चुनाव नतीजों की वजह से हुआ है. यूपी की 10 सीटों में बीजेपी के खाते में 8 सीटें और उत्तराखंड की भी एक सीट बीजेपी के खाते में ही आई है.
इसी के साथ बीजेपी राज्यसभा में 92 सांसदों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन गई है. दूसरी तरफ कांग्रेस 38 सीटों के साथ ऊपरी सदन में अपने न्यूनतम स्तर पर है.
राज्यसभा में बीजेपी के सहयोगी दलों के पास 22 सांसद हैं. इनमें एआईएडीएमके के 9, जेडीयू के 5, मनोनीत 4 के अलावा रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट, एजीपी, पीएमके और एनपीपी का एक-एक सांसद है. राज्यसभा में बीजेपी के 92 सांसद और सहयोगी दलों के 22 सांसद हैं यानी एनडीए के कुल सांसद 114 हैं.
राज्यसभा में कुल सांसदों की संख्या 245 है यानी कि किसी भी बिल को पास कराने के लिए सरकार को 123 सांसदों की जरूरत होगी. फिलहाल राज्यसभा में एनडीए के पास 114 सांसद हैं यानी कि बहुमत से 9 सांसद दूर.
ऐसे में कई मौके आए हैं जब बीजेडी, टीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीएसपी ने समय-समय पर महत्वपूर्ण बिल को लेकर सरकार का साथ दिया. इनमें ट्रिपल तलाक़, जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाने, सीएए जैसे बिल का नाम लिया जा सकता है. ऐसे में पूरी संभावना है कि अब सरकार को राज्यसभा में किसी भी महत्वपूर्ण बिल को लेकर कोई खास अड़चन पेश नहीं आएगी.
कम होती जा रही विपक्षी सांसदों की संख्या
राज्यसभा में विपक्ष के सांसदों की संख्या लगातार कम होती जा रही है. कांग्रेस के 38, टीएमसी के 13, एनसीपी के 4, डीएमके के 7, शिवसेना के 3, आरजेडी के 5, जेडीएस का 1, पीडीपी के 2, समाजवादी पार्टी के 5, आम आदमी पार्टी के 3, लेफ्ट के 6, टीडीपी और जेएमएम के भी एक-एक सांसद हैं.
इसके अलावा 6 सांसद अन्य छोटे दलों के हैं. राज्यसभा में विपक्षी दलों का आंकड़ा 95 सांसदों का है. यानी पूरे विपक्ष के 95 सांसद हैं, वहीं बीजेपी के पास 92 सांसदों की संख्या है. मतलब पूरे विपक्ष के आंकड़े से भी बीजेपी के पास अब सिर्फ 3 ही सांसद कम हैं.
इस बार यूपी के विधानसभा चुनाव में सबसे खास बात ये रही कि एक निर्दलीय प्रत्याशी का नामांकन खारिज होने के बाद सभी 10 उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए. बीजेपी के 8, समाजवादी पार्टी और बीएसपी के एक-एक उम्मीदवार निर्विरोध सदस्य चुने गए.
हालांकि, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी प्रकाश बजाज ने मैदान में उतर कर और बीएसपी के 7 विधायकों से बगावत कराकर मायावती का खेल बिगाड़ने की व्यूह रचना की थी. लेकिन अंतिम समय में चुनाव आयोग ने निर्दलीय प्रत्याशी प्रकाश बजाज का नामांकन रद्द कर दिया. इससे बीएसपी के उम्मीदवार की जीत का रास्ता साफ हो गया.
2018 में बीजेपी जीती थीं 10 सीटें
जब 2018 में बीजेपी ने यूपी में 12 सीटों के लिए होने वाले चुनाव में पार्टी के 10 उम्मीदवारों का नामांकन भरवाया था. बीजेपी ये बात बहुत अच्छी तरह से जानती थी कि संख्या बल के अनुसार बीजेपी 9 उम्मीदवारों को ही राज्यसभा में भेज सकती है.
तब अंतिम समय में अखिलेश यादव से नाराज नरेश अग्रवाल के जरिए बीजेपी ने समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बीएसपी के विधायकों में सेंध लगा कर अपने 10 उम्मीदवारों को राज्यसभा में भेजा था.
बीजेपी ने 2018 में जिस तरह से राज्यसभा चुनाव में किया था, इस बार भी अपने चुनावी रणनीतिकारों के जरिए समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, बीएसपी के विधायकों में सेंध लगाकर ऐसा कर सकती थी. अब सवाल ये है कि आखिरकार बीजेपी इस राज्यसभा चुनाव में बीएसपी पर इतनी मेहरबान क्यों है. इसके पीछे भी एक लंबी फेहरिस्त है.
बीएसपी ने कई महत्वपूर्ण बिलों पर लोकसभा और राज्यसभा में समय-समय पर सरकार के पक्ष में वोट किया है. इसके अलावा मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार के खिलाफ वोट करके शिवराज सिंह की सरकार बनाने में मदद की.
बीजेपी ने बिगाड़ा था सपा का खेल
राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ सचिन पायलट ने मोर्चा खोला था, तब बीएसपी ने अपने 6 विधायकों के कांग्रेस में विलय को हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चैलेंज किया था.
उस वक्त भले ही तमाम प्रयासों के बाद भी अशोक गहलोत सरकार बच गई थी लेकिन बीएसपी ने जिस तरह से गहलोत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था, उसके एवज में इस राज्यसभा चुनाव में बीजेपी ने समाजवादी पार्टी का खेल बिगाड़कर बीएसपी के उम्मीदवार रामजी गौतम को राज्यसभा में पहुंचा दिया है.
राजनीति के बारे में एक बात हमेशा कही जाती है कि राजनीति में कोई किसी का स्थायी दोस्त नहीं होता और ना ही स्थायी दुश्मन. बीजेपी और बीएसपी के बीच दूरियां अब नज़दीकियों में तब्दील होने के पीछे कहीं ये कारण तो नहीं.
पंजाब में अकाली दल ने एनडीए का साथ छोड़ दिया. बीएसपी का ना सिर्फ़ यूपी बल्कि, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश के चंबल बेल्ट, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में खासा प्रभाव हैं. वैसे भी राजनीति में दो दूनी चार नहीं बाइस होता है.