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ऐसा कौन है जिसे शाह-ममता-मोदी सभी लुभाने की कर रहे कोशिश- Amar Bharti Media Group राजनीति

ऐसा कौन है जिसे शाह-ममता-मोदी सभी लुभाने की कर रहे कोशिश

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान मतुआ समुदाय के 100 साल पुराने मठ बोरो मां बीणापाणि देवी से आशीर्वाद प्राप्त करके अपने बंगाल चुनाव अभियान की शुरुआत की थी. 

ममता बनर्जी के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए यह बहुत सधी हुई चाल थी. इसके तहत भारतीय जनता पार्टी ने बोरो मां के पोते शांतनु ठाकुर को बोंगन लोकसभा सीट से उतारा. मतुआ वोट पाने की यह रणनीति काम कर गई.

इस सीट पर बीजेपी ने पहली बार जीत दर्ज की. यही वजह है कि अमित शाह अपने दो दिवसीय पश्चिम बंगाल यात्रा के दौरान अपने बिजी शेड्यूल से समय निकालकर भी मतुआ समुदाय के लोगों से मिलने वाले हैं. इससे पहले शाह गुरुवार को आदिवासी समुदाय के यहां खाना खाने पहुंचे थे.

विभीषण हांसदा अपने घर पर देश के गृह मंत्री के साथ दोपहर का भोजन करने से बहुत खुश थे। हालांकि उनके साथ बातचीत करने का सुअवसर नहीं मिलने से मन में थोड़ा मलाल रह गया.

मतुआ समुदाय के लोग पूर्वी पाकिस्तान से आते हैं और नागरिकता संशोधन कानून के तहत नागरिकता देने की मांग करते रहे हैं. माना जाता है कि 2019 में इस समुदाय के लोग बीजेपी के साथ थे, लेकिन फिलहाल उनके युवा सांसद शांतनु ठाकुर इस कानून को लेकर नाराज हैं. ऐसे में अमित शाह मतुआ परिवार के साथ खाना खाकर अपनापन जताना चाहते हैं.

इधर ममता बनर्जी ने भी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बुधवार को 25,000 शरणार्थी परिवारों को भूमि के अधिकार प्रदान किए हैं. ममता बनर्जी ने मतुआ विकास बोर्ड और नामशूद्र विकास बोर्ड के लिए क्रमश: 10 करोड़ और पांच करोड़ रुपये आवंटित किए हैं.

राजनीतिक विरासत

हरिचंद ठाकुर के वंशजों ने मतुआ संप्रदाय की स्थापना की थी. नॉर्थ 24 परगना जिले के ठाकुर परिवार का राजनीति से लंबा संबंध रहा है. हरिचंद के प्रपौत्र प्रमथ रंजन ठाकुर 1962 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में पश्चिम बंगाल विधान सभा के सदस्य बने थे.

प्रमथ की शादी बीणापाणि देवी से 1933 में हुई. बीनापाणि देवी को ही बाद में ‘मतुआ माता’ या ‘बोरो मां’ (बड़ी मां) कहा गया. बीनापाणि देवी का जन्म 1918 में अविभाजित बंगाल के बारीसाल जिले में हुआ था. आजादी के बाद बीणापाणि देवी ठाकुर परिवार के साथ पश्चिम बंगाल आ गईं.

प्रमथ रंजन ठाकुर की विधवा शतायु बीणापाणि देवी आखिर तक इस समुदाय के लिए भाग्य की देवी बनी रही. हाल के दिनों में ठाकुर परिवार के कई सदस्यों ने राजनीति में अपना भाग्य आजमाया है और मतुआ महासंघ में अपनी प्रतिष्ठा का इस्तेमाल किया है.

नामशूद्र शरणार्थियों की सुविधा के लिए बीनापाणि देवी ने अपने परिवार के साथ मिलकर वर्तमान बांग्लादेश के बॉर्डर पर ठाकुरगंज नाम की एक शरणार्थी बस्ती बसाई. इसमें सीमापार से आने वालों खासतौर पर नामशूद्र शरणार्थियों को रखने का इंतजाम किया गया.

मतुआ परिवार ने अपने बढ़ते प्रभाव के चलते राजनीति में एंट्री ली. 1962 में परमार्थ रंजन ठाकुर ने पश्चिम बंगाल के नादिया जिले की अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व सीट हंसखली से विधानसभा का चुनाव जीता.

मतुआ संप्रदाय की राजनैतिक हैसियत के चलते नादिया जिले के आसपास और बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाके में मतुआ संप्रदाय का प्रभाव लगातार मजबूत होता चला गया.

प्रमथ रंजन ठाकुर की सन 1990 में मृत्यु हो गई. इसके बाद बीनापाणि देवी ने मतुआ महासभा के सलाहकार की भूमिका संभाली. संप्रदाय से जुड़े लोग उन्हें देवी की तरह मानने लगे.

5 मार्च 2019 को मतुआ माता बीनापाणि देवी का निधन हो गया. प. बंगाल सरकार ने उनका अंतिम संस्कार पूरे आधिकारिक सम्मान के साथ करवाया.

2010 में ममता बनर्जी से बढ़ी नजदीकी

माता बीनापाणि देवी की नजदीकी साल 2010 में ममता बनर्जी से बढ़ी. बीनापाणि देवी ने 15 मार्च 2010 को ममता बनर्जी को मतुआ संप्रदाय का संरक्षक घोषित किया. इसे औपचारिक तौर पर ममता बनर्जी का राजनीतिक समर्थन माना गया.

ममता की तृणमूल कांग्रेस को लेफ्ट के खिलाफ माहौल बनाने में मतुआ संप्रदाय का समर्थन मिला और 2011 में ममता बनर्जी प. बंगाल की चीफ मिनिस्टर बनीं.

साल 2014 में बीनापाणि देवी के बड़े बेटे कपिल कृष्ण ठाकुर ने तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर बनगांव लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और संसद पहुंचे.

कपिल कृष्ण ठाकुर का 2015 में निधन हो गया. उसके बाद उनकी पत्नी ममता बाला ठाकुर ने यह सीट 2015 उपचुनावों में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर जीती.

मतुआ माता के निधन के बाद परिवार में राजनैतिक बंटवारा खुलकर दिखने लगा. उनके छोटे बेटे मंजुल कृष्ण ठाकुर ने बीजेपी का दामन थाम लिया. 2019 में मंजुल कृष्ण ठाकुर के बेटे शांतनु ठाकुर को बीजेपी ने बनगांव से टिकट दिया. वह सांसद बन गए.