बिहार विधानसभा चुनाव की मतगणना जारी है. इस बार लोगों की नजर द प्लूरल्स पार्टी की प्रमुख पुष्पम प्रिया चौधरी पर लगी थी.
विज्ञापन देकर सीएम पद के लिए चुनाव में उतरी पुष्पम प्रिया कौन हैं. आइए जानें. कैसा रहा उनका चुनाव, अब तक कितने मिले वोट.
पुष्पम प्रिया बिहार की दो विधानसभा सीटों से चुनावी किस्मत आजमा रही हैं. पटना की बांकीपुर और मधुबनी की बिस्फी सीट से उतरीं पुष्पम प्रिया ने स्थानीय समाचार पत्रों में विज्ञापन देकर खुद को अगला मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित कर रखा था.
पुष्पम प्रिया दोनों सीटों से पीछे हैं. इस बारे में पुष्पम प्रिया ने ट्वीट कर कहा कि बिहार में EVM हैक हो गई है और प्लूरल्स पार्टी के वोट को बीजेपी ने अपने पक्ष में कर लिया.
पुष्पम प्रिया चौधरी के बारे में उन्होंने अपनी ही वेबसाइट www.plurals.org पर बताया है कि वो किस तरह बिहार की राजनीति में उतरकर राज्य को और बेहतर बनाना चाहती हैं.
बता दें कि पुष्पम की परवरिश बिहार के दरभंगा जिले में हुई है. उनका कहना है कि उन्होंने प्लूरल्स पार्टी बनाकर उसके माध्यम से 2020 में एक राजनीतिक आंदोलन ‘सबका शासन’ की शुरुआत की है.
पुष्पम 12वीं के बाद की पढ़ाई के लिए बिहार से बाहर गईं. इसके बाद वो यूनाइटेड किंगडम गईं और यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स के इंस्टीट्यूट ऑफ डिवेलपमेंट स्टडीज से डिवेलपमेंट स्टडीज में स्नातकोत्तर की डिग्री ली. इस पढ़ाई में उनके विषय गवर्नेन्स, डेमोक्रेसी और डिवेलपमेंट इकोनॉमिक्स रहे.
इसके अलावा उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव 2015 की पृष्ठभूमि में वोटिंग पैटर्न और वोटिंग व्यवहार पर भी फील्ड में एक मौलिक शोध किया. इसके बाद पुष्पम ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस विषय से मास्टर ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की दूसरी स्नातकोत्तर डिग्री ली. जमीनी राजनीति में हालांकि उनका प्रभाव वैसा नहीं नजर आया. चुनाव मतगणना में वो काफी पीछे हैं.
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में उन्होंने राजनीति विज्ञान, राजनीतिक दर्शन, लोक प्रशासन, अर्थशास्त्र, पब्लिक पॉलिसी का दर्शन, सोशल पॉलिसी और पॉलिटिकल कम्युनिकेशन की पढ़ाई की.
यहां पढ़ते हुए उन्हें पेरिस के प्रतिष्ठित साइंसेज पो (Sciences Po) में भी राजनीति विज्ञान की दोहरी डिग्री लेने का मौका दिया गया लेकिन उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में रहना पसंद किया.
2018 और 2019 में बिहार में फैले एन्सेफलाइटिस बुखार से सैकड़ों बच्चों की मौत की खबरों ने उन्हें भीतर तक झकझोर दिया. तब वो विकसित लोकतंत्रों के लिए बॉस्टन कन्सल्टिंग ग्रुप और एलएसई की पब्लिक-पॉलिसी के एक प्रॉजेक्ट पर काम कर रही थीं. ऐसे में उन्हें ख्याल आया कि अपने होम स्टेट की ठीक की जाने वाली समस्याओं से अवगत होते हुए दूसरे विकसित मुल्कों के लिए नीति निर्माण का काम नैतिक रूप से ठीक नहीं. इसी ख्याल के साथ वो बिहार राजनीति में दाखिल हुईं.