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गुजरात - नंबर दो की लड़ाई में पिछड़ रही है कांग्रेस- Amar Bharti Media Group राजनीति

गुजरात – नंबर दो की लड़ाई में पिछड़ रही है कांग्रेस

गुजरात के स्थानीय निकाय चुनाव छोटे जरूर थे पर इससे निकले सकेंत बहुत बड़े हैं। पहली बात तो यह कि संघ की हिंदू प्रयोगशाला के नाम से मशहूर गुजरात भाजपा का मजबूत किला बना हुआ है। मोदी और अमित शाह की जुगलजोड़ी का सानी पूरे गुजरात में कोई नही है। देश की तरह गुजरात में भी कांग्रेस का वोट बैंक बिखर रहा है। गुजरात के स्थानीय निकाय चुनावों ने इस पर मोहर लगा दी है। और आखिरी में गुजरात की राजनीति अब दो ध्रुविय नही रही है। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन ने गुजरात में एंट्री मार ली है। नंबर दो के लिए गुजरात में घमासान तय है।

गुजरात में पिछले कई चुनावों की कहानी एक बार फिर दोहरायी गयी। स्थानिया निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपना परचम फिर से लहरा दिया। पार्टी ने सभी 6 निगमों पर भारी बहुमत से कब्जा कर लिया है। वहीं कांग्रेस वोटरों को रिझाने में नाकाम रही। मंगलवार को घोषित परिणामों में सत्तारूढ़ भाजपा ने 576 निगम सीटों में से 483 सीटे जीत कर एक नया रिकॉर्ड कायम किया। अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा, राजकोट, जामनगर, भावनगर सभी शहर के निगम एक के बाद एक भाजपा की झोली में जा गिरे।

कांग्रेस कुल मिलाकर 55 सीटे ही जीत पाई, राजकोट, भावनगर  और वडोदरा में वह दहाई का आंकड़ा भी नही छू सकी वही सूरत में शून्य पर आउट हो गई। सूरत में कांग्रेस के शून्य-बटा-सन्नाटा होने के कई मायने हैं क्योंकि हार्दिक पटेल को 2020 में  गुजरात कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष यही सोच कर बनाया गया था कि पाटीदार आरक्षण आंदोलन का नेता होने के नाते कांग्रेस को इसका फायदा मिलेगा। 2015 के पाटीदार आरक्षण आंदोलन से उभरे युवा नेता हार्दिक पटेल भाजपा के मुखर विरोधी रहे हैं। पाटीदारों का एक बड़ा तबका हार्दिक के साथ भाजपा विरोधी आवाज उठाने लगा था। कांग्रेस इसका फायदा उठाना चाहती थी। पर हुआ इसका ठीक उलट, सूरत में पाटीदारों के प्रभाव वाली सभी सीटें कांग्रेस हार गई। मतलब साफ है की कांग्रेस अपना मजबूत वोट बैंक भी बचा नही सकी।

जब बड़ी पार्टियां जमीन से कट कर ट्विटर पर चलने लगती हैं तो उसका नतीजा सिफर ही आता है। कांग्रेस गुजरात में जमीनी हालात समझ नही सकी। पाटीदार आरक्षण आंदोलन समिति ने सूरत में कुछ टिकटों पर अपना दावा ठोका था लेकिन पाटीदारों को उम्मीद के मुताबिक टिकटें नही मिली। जिन तीन पाटीदारों को कांग्रेस ने टिकट दिया था। उन्होंने पर्चा तक नही भरा। पूरी की पूरी पाटीदार आरक्षण समिति कांग्रेस के विरोध में उतर आई। सूरत में पाटीदार कांग्रेस से इतने नाराज थे कि उन्होंने यह तय कर लिया था कि वे कांग्रेस को किसी कीमत पर वोट नहीं देंगे।   

पाटीदारों के फैसले से आम आदमी पार्टी की लॉटरी लग गई। कांग्रेस से छिटके भाजपा विरोधी वोटों को उसने खूबसूरती से बटोर लिया। आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी पाटीदार हैं और सूरत से ही आते हैं, इसका फायदा भी आम आदमी पार्टी को मिला। आम आदमी पार्टी ने सूरत में 27 सीटें जीती। लगभग सभी सीटें पाटीदार बहुल क्षेत्र में हैं। सूरत में जिन सीटों पर आम आदमी पार्टी को विजय मिली है उनमें से 20 पिछले निगम चुनावों में कांग्रेस के पास थी। पाटीदारों के कांग्रेस विरोध के अलावा आम आदमी पार्टी को जमीनी स्तर पर की गई मेहनत का फल मिला। जहां संगठन के अभाव में कांग्रेस के नेता जमीन पर नजर ही नही आए। वहीं आम आदमी पार्टी ने सूरत में दो विशाल रोडशो कर अपने आप को कांग्रेस के विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करने में सफलता पाई। 

पाटीदारों के अलावा मुस्लिम भी कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता रहा है। असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने मुस्लिम बहुल अहमदाबाद की 7 सीटें जीत कर उसमें सेंध लगा दी है। ओवैसी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा था कि अब बीजेपी के साथ दंगल होगा, नूरा कुश्ती के दिन अब गए। ओवैसी  गुजरात के मुसलमानों के बीच एक नई राजनीतिक ताकत बन कर उभरे हैं। ऐसी ताकत जो बीजेपी से  लोहा ले सकती है। जो उनके मुद्दो को उठा सकती है। मुसलमान लगातार कांग्रेस से दूर होता जा रहा है। वह कांग्रेस को अब उस पार्टी की तरह नही देखता जो उसे राजनीतिक हैसियत दिला सके। ओवैसी ने अपने आपको एक मंझें हुए नेता की तरह पेश किया है, एक ऐसा नेता जो मुसलमानों को प्रदेश में राजनीतिक ताकत बनाने का दमखम रखता है।

आम आदमी पार्टी पूरे प्रांत में कांग्रेस का विकल्प बन गई है या फिर ओवैसी ने पूरे मुस्लिम समुदाय को कांग्रेस से अपने पाले में खींच लिया है, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। पर दो तरफा मार झेल रही कांग्रेस कब तक नंबर दो का ताज बचा पाएगी यह देखना दिलचस्प होगा। देश भर में कांग्रेस जो शून्य पैदा कर रही है उसे भरने नई पार्टियां आ जाएंगी।  रही बात कांग्रेसकी तो कांग्रेस को ट्वीटर की राजनीती छोड़ जमीनी स्तर पर संगठन मजबूत करने की जरूरत है और यह केवल गुजरात तक ही सीमित नही है पूरे देश में पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने की जरूरत है।