नई दिल्ली। आज अप्रैल का छठवां दिन है। आज से 23 साल आज ही के दिन 6 अप्रैल 1998 को सरहद पार से ऐतिहासिक कारगिल युद्ध की पटकथा रचे जाने की शुरुआत हुई थी। भारतीय शौर्यगाथा से लथपथ इस रचित पटकथा का नाम है,’कारगिल युद्ध’या फिर ‘ऑपरेशन विजय’ आइए, आपको इतिहास की सैर कराते है। जब भारत का पड़ोसी पाक, नापाक इरादे गढ़ रहा था। अक्सर हम पढ़ते या सुनते है कि पाकिस्तान की सेना द्वारा भारत और पाकिस्तान के बीच की नियंत्रण रेखा पार करके भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा करने की बचकानी कोशिश ही कारगिल युद्ध की शुरूआत है। लेकिन हकीकत में शुरूआत उससे कही पहले6 अप्रैल 1998 को इस्लामाबाद से 76 किलोमीटर दूर झेलम के पास हो गई थी। जब पाकिस्तान अपनी मिसाइल हत्फ 5 या फिर गौरी मिसाइल का प्रथम परीक्षण कर रहा था। अपनी हार को किस्मत के ऊपर मढ़ देने वाले पाकिस्तान को भनक तक नहीं होगी कि यह उसके अंत की शुरूआत है।
कारगिल की औपचारिक शुरूआत
भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के करगिल जिले में हुए सशस्त्र संघर्ष का नाम है।
पाकिस्तान की सेना और कश्मीरी उग्रवादियों ने भारत और पाकिस्तान के बीच की नियंत्रण रेखा पार करके भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा करने की कोशिश की। पाकिस्तान ने दावा किया कि लड़ने वाले सभी कश्मीरी उग्रवादी हैं, लेकिन युद्ध में बरामद हुए दस्तावेज़ों और पाकिस्तानी नेताओं के बयानों से साबित हुआ कि पाकिस्तान की सेना प्रत्यक्ष रूप में इस युद्ध में शामिल थी। लगभग 30,000 भारतीय सैनिक और करीब 5000 घुसपैठिए इस युद्ध में शामिल थे। भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाली जगहों पर हमला किया और धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से पाकिस्तान को सीमा पार वापिस जाने को मजबूर किया। यह युद्ध ऊँचाई वाले इलाके पर हुआ और दोनों देशों की सेनाओं को लड़ने में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। परमाणु बम बनाने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ यह पहला सशस्त्र संघर्ष था। जिसे भारत के जवानों ने अपने पराक्रम के बदौलत जीत कर पाकिस्तान के एक बुरे सपने का आकार दे दिया।
चरवाहों ने हिला दिया पाकिस्तान
कहा जाता है कि 8 मई, 1999 पाकिस्तान की 6 नॉरदर्न लाइट इंफ़ैंट्री के कैप्टेन इफ़्तेख़ार और लांस हवलदार अब्दुल हकीम 12 सैनिकों के साथ घुसपैठ के बाद कारगिल की आज़म चौकी पर बैठे हुए थे उन्होंने देखा कि कुछ भारतीय चरवाहे कुछ दूरी पर अपने मवेशियों को चरा रहे थेपाकिस्तानी सैनिकों ने आपस में सलाह की कि क्या इन चरवाहों को बंदी बना लिया जाए? किसी ने कहा कि अगर उन्हें बंदी बनाया जाता है, तो वो उनका राशन खा जाएंगे जो कि ख़ुद उनके लिए भी काफ़ी नहीं है। उन्हें वापस जाने दिया गया। क़रीब डेढ़ घंटे बाद ये चरवाहे भारतीय सेना के 6-7 जवानों के साथ वहाँ वापस लौटे। यही कारण है जिसके उपरांत भारतीय सेना को घुसपैठ की जानकारी हुई और शायद यही वह कारण है, जिसकी वजह से ‘कारगिल युद्ध’ का नाम सुनकर भारतवासियों का सिर उठा है और सरहद पार सिर झुका है।