तिब्बत से 10 हजार पांडुलिपियां अपने साथ खच्चर पर लादकर पटना लाए
नई दिल्ली। भारत हमेशा से साहित्यकारों, महाकवियों की धरती रहा है। हीरे जवहारातों से जड़ित साहित्यिक रचनाओं का गढ़।
आज हम आपको एक ऐसे ही सोने की खदान से भी बहुमूल्य साहित्यकार की सैर कराएंगे जो खुद अपने जीवन में घुमक्कड़ था। बिल्कुल ‘खानाबदोश’ और उनका नाम था राहुल सांकृत्यायन। जिनका आज जन्मदिन भी है।
बौद्ध धर्म के अनुयायी थे राहुल सांकृत्यायन
उत्तरप्रद्रेश जिले के आजमगढ़ के पंदाहा गांव में अपने नाना के घर नौ अप्रैल 1893 को जन्मे राहुल सांकृत्यायन का बचपन का नाम केदारनाथ था। वे बचपन से ही धर्म और आध्यात्म के प्रति रुचि होने के साथ धार्मिक आंडबर का विरोध करते रहे। कम उम्र में शादी और मां कुलवंती देवी के निधन ने सांकृत्यायन के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाला। वर्ष 1910 के बाद उनके मन में घुमक्कड़ी रच बस गई। अपने जीवन काल में उन्होंने कई देशों की यात्राएं कीं। महापंडित की उपाधि धारण करने वाले यायावर राहुल पर बौद्ध धर्म का भी गहरा प्रभाव पड़ा।
दस साल में चार बार तिब्बत की यात्रा की
उन्होंने वर्ष 1929 से 1939 तक चार बार तिब्बत की यात्रा की। इन यात्राओं के दौरान वे तिब्बती लिपि में लिखीं 10 हजार पांडुलिपियां अपने साथ खच्चर पर लादकर पटना लाए। इन्हें ‘बिहार रिसर्च सोसाइटी’ में सुरक्षित रखा गया है। राहुल तिब्बत यात्रा के दौरान वहां मौजूद संस्कृत ग्रंथों के ‘फिल्म निगेटिव’, ‘ग्लास निगेटिव’ के साथ ही बौद्ध मठों में तालपत्र पर लिखीं पांडुलिपियों की तस्वीर भी खींचकर लाये थे।