महंत बी.पी.दास
नायक वही, जो फ्रंट से लीड करे। कोरोना वायरस की लहर का कहर थम नहीं रहा है। स्वास्थ्य चिकित्सा सेवाएं लड़खड़ाती हुई दिख रही हैं। सरकारी बंदोबस्त नाकाफी और संक्रमितों का आंकड़ा नित्य नए रिकॉर्ड छू रहा है। कहां तो यह माना जा रहा था कि 2021 कोरोना के सफाई कार्य का साल होगा, परंतु मार्च माह में संक्रमितों की संख्या न सिर्फ परवान चढ़ी, बल्कि मृतकों की तादाद हृदय विदारक हुई। वर्तमान में जो हालात सामने हैं, बात बिल्कुल आईने की तरह साफ हो गई है कि भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तैयारियां की ही नहीं गई। उस पर जिम्मेदारों का रवैया ‘आ बैल मुझे मार’ की नौबत जैसा भला कैसे भुलाया जा सकता है? तमाम रुकावटों और विपरीत दशाओं में चुनौतियों से मुकाबला नायक को ही करना होता हैं।
मार्च में जब कोरोना साढ़े 53, 000 पार हुआ और होली उत्सव व चुनावी सभाओं में राजनेताओं को हद दर्जे बेपरवाह होते देखा गया। ‘आपदा में अवसर’ का महाज्ञान जो बंटा, उसका आत्मसात लोकसेवकों से कहीं अधिक फितरत महारथियों को करते देखा गया। भ्रष्ट कालाबाजारी व लोक सेवकों का इस शताब्दी में मौजूदा हाल एक सफल संगठन बनकर उभरा है। माननीयों की जन सामान्य के जीवन में कोई दिलचस्पी नहीं, वह चाहे मरे या जियें।
राष्ट्र और आम आदमी से कहीं अधिक निजी स्वार्थपूर्ति नियत भर है। भ्रष्ट ब्यूरोक्रेट्स गठबंधन देश को दीमक की तरह चाट रहा है सरकार में बैठे लोग जुमलेबाजी से भ्रष्टाचार मिटाने का प्रपंच भर कर रहे हैं, अगर कहा जाए तो बात बड़ी नहीं।
हमारे देश में भ्रष्टाचार चरम पर है। जीवन रक्षक दवाओं ऑक्सीजन व आवश्यक चिकित्सा स्वास्थ्य उपकरणों की कालाबाजारी करते जो चंद लोग ही सही निगरानी कर्ताओं के हत्थे चढ़े उनमें अधिकांश सत्ताधारियों के इर्द-गिर्द रहने वाले लोग ही देखे गए। ऑक्सीमीटर या फिर रेमडिसिविर इंजेक्शन की खेप राज्य मुख्यालय तक पहुंचाने वालों के गहरे रिश्ते बड़े अफसरशाहों से होने की चर्चा से वातावरण में धूम है।
मौत का तांडव, दहशत में मौतों का सिलसिला और कोरोनावायरस दूसरी लहर के नियंत्रण में असफलताओं पर विचार न करना बड़ी बेईमानी है। थाली, ताली बजवाकर व चिराग जलवा कर कोरोना वायरस को निष्प्रभावी या फिर भगाने का जो तमाशा किया कराया गया था, जन सामान्य की बात दीगर सत्ताधारियों की सोच भी शायद इसी प्रपंच तक सिमटी रही।
दुखद पहलू तो यह है, जिसका जो काम है वह नहीं कर रहा। चिकित्सकों का काम भी प्रशासनिक अफसर कर रहे हैं। राजनाथ सिंह व कल्याण सिंह, नारायण दत्त तिवारी या हेमवती नंदन बहुगुणा या फिर मुलायम सिंह यादव सरीखे परिपक्व नेताओं की याद महज इसलिए रूप हो रही है कि उन पर अफसरशाही कभी हावी नहीं हो पाई।
महामारी चलते बद से बदतर होते हालातों पर अंततः शीर्ष न्यायालय को आगे आना पड़ा। मौलिक अधिकारों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नियंत्रण की सरकारी मंसा पर उच्चतम न्यायालय की दूरदृष्टि काबिले गौर है। एक घर के दरवाजे पर लगा पर्दा बहुत खूबसूरत लगता है और घर के अंदर का माहौल अत्यधिक बदसूरत, कोरोना महामारी के इलाज से संघर्षरत भारत का वीभत्स मंजर कुछ इसी कहानी सरीखा है। कोरोना महामारी ने स्वास्थ्य चिकित्सा प्रबंधन प्रणाली को निर्वस्त्र कर दिया है। पेशेवर प्रबंधन की कमी और भीतर बाहर प्रशासनिक अफसरों की बेइंतिहा दखल की दबी जुबान चर्चा को पूरा बल मिल गया है। निजी अस्पतालों में पीड़ितों का खून चूसा जा रहा है। भर्ती मरीजों से एक हफ्ते का 10 से 15 लाख किस उपचार के बदले वसूला जा रहा है। कोई पूछने वाला ना हीं कोई बताने वाला। केजीएमयू के कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल विपिन पुरी परम विशिष्ट सेवा मेडल विशेष सेवा मंडल(सेवानिवृत्त) लंबी छुट्टी पर चले गए पुरी साहब राष्ट्रपति के मानद चिकित्सक रह चुके हैं।
सीरम के सीईओ एवं कोविशील्ड वैक्सीन का प्रोडक्शन करने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया के मालिक जिन्हें जेड श्रेणी सुरक्षा प्राप्त रहीं, अदार पूनावाला का अनिश्चित समयावधि के लिए ब्रिटेन चले जाना प्रभावशाली लोगों का अत्यधिक दबाव होना संदर्भ भी सुर्खियों में है। मौत तांडव कर रही है। लोग प्राण वायु और प्राणों की भीख मांग रहे हैं तब उन्हे भीख में दी जा रही है कफन। दूसरे शब्दों में अंतिम संस्कार की राशि। गंभीर बीमारों को एंबुलेंस नहीं मिल रही मिलती भी है तो अवसर पश्चात। एक-एक बेड के लिए हाहाकार मचा है। साइकिल और ठेलियों से लाश ले जाना विवशता। एक कॉल पर तत्काल मुहैया होने वाली एंबुलेंस आखिर कहां चली गई। अस्पतालों में सिर्फ इलाज का अभाव ही नहीं दवाओं का भी टोटा है। गर्मी के मौसम में संक्रामक रोगों की बाहुल्यता स्वभावत: होती है। शुगर पैशेंट और हृदय रोगियों की बात दीगर बुखार व सर्दी जुकाम तथा खांसी जैसे सामान्य रोग से पीड़ित जन दवा और इलाज के अभाव में असमय मौत का ग्रास बन रहे हैं। कोई आला तक लगाने वाला नहीं। जिम्मेदार लोग अपनी असफलताओं को कोरोना के कफन में दफन की चाह लिए फिरते हैं। सरकारी अस्पतालों में जीवन रक्षक दवाओं का अभाव है।
संक्रामक रोगियों की बढ़ती तादाद और अस्पतालों में दवाओं के अभाव में भर्ती मरीज भी पवेलियन किए गए। बहाना कोरोना का। होली के बाद मार्च अप्रैल में मौसम परिवर्तन और गर्मी के शुरुआती दौर में संक्रामक रोग, वायरल संक्रमण फैलाव से निपटने के लिए सरकार द्वारा भारी बजट राशि आखिर कहां गुम हो गयी। कोरोना से अतिरिक्त मौतों का लेखा-जोखा कौन बताएगा। असफलताओं को उदारता में बदलने की फितरत चाहे भी जितनी चतुरता से की जाए अपनों को खो चुके लोगों के दिलों के घावों को भर पाना मुश्किल ही नहीं असंभव भी। गरीबों को मई जून में मुफ्त राशन देने की घोषणा की गई है। जिस पर करीब 26हजार करोड़ खर्च होना बताया गया। जिन गरीबों को एक राशन दिया जाएगा उन्हीं के बेरोजगार बच्चों की स्कूटर मोटरसाइकिल का चालान कर वसूली नियत भी। महान आत्माधारी अदृश्य माननीयों जरा सामने आओ और आंख खोलकर इनकी ओर देख तो लो परेशान हाल यह लोग बहुत सीधे साधे हैं, अपनी लाचारी बेबसी को लेकर यह कभी सड़क पर नहीं आते ना हीं धरना प्रदर्शन करते। अपनों के खोने का शोक और क्रोध इनके मन में है तो अनगिनत सवाल आंखों में।
अब, जब चेताया जा रहा है कि मई का दूसरा सप्ताह खतरनाक होगा तो इस आपदा को लाभ के अवसर में बदलने की कोशिश का रुप रंग कैसा होगा। वह भी तब जब कराह रहा जन और तंत्र हिटलर पथ पर अग्रसर है। जब रेमडेसिविर इंजेक्शन व प्राण वायु की कालाबाजारी, से भारत राष्ट्र थेमें नैतिक पतन का संदेश पूरी दुनिया भर में वायरल हो रहा है। सरकार के सारे प्रयास धूल धूसरित बल्कि मानवता शर्मसार हो रही है। ऐसे में समय आ गया है सरकार को कड़े कदम उठाने का। जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी, ते नृप घोर नरक अधिकारी।