नई दिल्ली। जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव का बिगुल बज चुका है। भाजपा व कांग्रेस के उम्मीदवार आमने-सामने हैं। या यूँ कहें की एक ओर एमएलसी दिनेश प्रताप सिंह व दूसरी ओर कांग्रेस, सपा व अन्य का महागठबंधन है।
52 जिला पंचायत सदस्यों को अपने अध्यक्ष का चुनाव करना है। जिसमें कांग्रेस के अपने समर्थित 11 जिला पंचायत सदस्य थे जिसमें सपा के अपने समर्थित 14 सदस्य मिल जाने से इनकी संख्या 25 हो गयी है। भाजपा समर्थित 10 सदस्य जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीते हैं। 17 जिला पंचायत सदस्यों ने किसी का समर्थन नही लिया था।
संख्या बल को ध्यान में रख कर देखा जाय तो कांग्रेस व महा गठबंधन की प्रत्याशी आरती सिंह पत्नी मनीष सिंह को 25 सदस्यो का समर्थन दिख रहा है। उधर भाजपा कम दिनेश प्रताप सिंह समर्थित अधिक रंजना चौधरी के पास 10 पार्टी के समर्थित सदस्य है।
नामांकन के दिन पार्टी ने विज्ञप्ति जारी कर 20 सदस्यों के साथ नामांकन करने का दावा भी किया था । इस लिहाज से एक पक्ष को 25 दूसरे के 20 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है.
अब जिसके खेमें में 27 सदस्य होंगे वह बाजी मार ले जायेगा। अब कांग्रेस व दिनेश प्रताप सिंह दोनो को अपनी साख बचानी है। क्योकि यह प्रत्याशी एमएलसी दिनेश प्रताप सिंह के समर्थन पर ही बना है।
वही कांग्रेस अपने गढ़ में कमजोर होती जा रही है तो उसे भी अपनी साख बचानी है। दूसरे कांग्रेस में शामिल हुए मनीष सिंह के राजनैतिक कैरियर के हिसाब से भी यह चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। साथ ही भाजपा भी कांग्रेस के गढ़ में अपनी जमीन तलाश रही है। इस से चारो के लिये इस चुनाव के अपने मायने हैं।
अब समर्थन के हिसाब से कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी को 2 व भाजपा के प्रत्याशी को 7 सदस्य अपने खेमें मे लाने हैं। लेकिन यह हिसाब केवल किताबी है. असली लड़ाई धन, बल व मैनेजमेन्ट की है। जो इसमे सफल रहा वह बाजी मार ले जायेगा। जिससे चूक हुयी वह हाथ मलेगा।
इन चुनावों के हिसाब में लोग दिनेश प्रताप सिंह को मैनेजमेंट गुरु ही मानते है. चुनाव को बदलना उनके बाये हाँथ का खेल है। कोई कुछ भी कहे पर महा गठबंधन के बाद अब उनके सामने कुछ बहुत टिकने का जुगाड़ कांग्रेस ने कर लिया है । अब यह तो 3 जुलाई को ही स्पष्ट होगा कि मैनेजमेंट में कौन सफल रहा.
खैर अभी तक दिनेश प्रताप सिंह का प्रबंधन फेल नही हुआ। ये बात अलग है कि इस चुनाव में उनके परिवार का कोई सदस्य नही है. वह समर्थन दे रहें हैं। जबकि मनीष सिंह के लिये यह चुनाव किसी चुनौती से कम नही है. अभी तक राजनीति में असफल रहे मनीष सिंह के लिये अपने को साबित करने का यह अच्छा मौका है। अगर वह सफल होते हैं तो उनके लिये राजनीति के नए रास्ते खुल सकते हैं। अब लड़ाई आमने-सामने है.
एक ओर एक राजनैतिक परिवार को अपने को साबित करना है वही दूसरी ओर एक राजनैतिक परिवार को यह साबित करना है की जिले की राजनीति में असली किंगमेकर वही रहेंगे। जिसको जिला पंचायत में हाँथ आजमाना होगा। उसका रास्ता उनकी डयोढ़ी से ही जायेगा । सभी की नजरे इस चुनाव पर लगी हैं.
अंदर खाने में भाजपा के इस प्रत्याशी को लेकर बगावती सुर भी हैं. लेकिन दिनेश प्रताप सिंह के सामने जिले की भाजपा बौनी नजर आ रही है। उन्होने अपने प्रत्याशी को पार्टी से उम्मीदवार बनवा कर सभी की बोलती बन्द कर दी है।
खैर कुछ भी हो 17 निर्दलीय जिला पंचायत सदस्यो की पौ बारह है. दोनो पार्टी के लोग लुभाने में लगे हैं. अब किसका बजट किस पर भारी पड़ता है, यह तो वक्त ही बताएगा । क्योकि सभी जानते है यह चुनाव किसी पार्टी का नही बल्कि पैसे का है जिसको जिससे ज्यादा पैसे मिलेंगे और उसका मैनेजमेंट ठीक होगा वही सफल होगा।
कुछ सदस्य तो दोनो हाथ में लड्डू ले रहे. वोट किसे करेंगे भगवान ही मालिक है। फिलहाल दोनो ओर से बिसाते बिछ गयी है. सभी अपने प्यादो को बचाने में लगे हैं. शह -मात के इस खेल में असली खिलाड़ी कौन बनेगा यह आने वाला वक्त ही बताएगा।