सरकार ने जैसे ही शुक्रवार को एक राष्ट्र, एक चुनाव की व्यावहारिकता जानने के लिए समिति गठित कर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी को यह जिम्मेदारी सौपी है. तब से सत्तापक्ष और विपक्ष से अपनी अपनी प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, शशि थरूर ने भी इस विषय में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है, कांग्रेस कार्य समिति का सदस्य बनने के बाद अपनी लोकसभा का पहला दौरा करते समय, शशि थरूर ने कहा कि एक देश, एक चुनाव मौजूदा प्रणाली के हिसाब से व्यावहारिक नहीं है. उन्होंने कहा कि देश के मुख्य कार्यकारी का चयन संसदीय बहुमत और विधायी बहुमत से होता है और जैसे ही बहुमत जाता है, किसी भी कारण से, सरकार गिर जाती है। फिर कैलेंडर के अनुरूप नया चुनाव कराना होगा।
उन्होंने उदहारण देते हुए कहा, 1947 से 1967 के बीच भारत में दोनों लोकसभा(राष्ट्रीय) और विधानसभा(राज्य) चुनाव एक ही तारीख को होते थे. लेकिन 1967 में गठबंधन सरकार गिरने और कैलेंडर फिसल जाने से यह व्यवस्था समाप्त हो गयी. उन्होंने कहा, फिर 1970 में राष्ट्रीय सरकार गिर गई और 1971 में चुनाव हुए. इसलिए वह कैलेंडर फिसल गया और धीरे धीरे कई बदलाव हुए. तब से हर राज्य के लिए अलग अलग कैलेंडर है. उनका कहना था कि भविष्य में भी ऐसा होना संभव है.
उन्होंने जोर देते हुए कहा कि यह मौजूदा प्रणाली के खिलाप होगी. जो संसदीय लोकतंत्र पर आधारित है,जहां सदन में बहुमत खोने पर पार्टियां सत्ता में बनी नहीं रह सकतीं हैं. शशि थरूर ने कहा कि एक राष्ट्र, एक चुनाव किसी भी हालत में व्यावहारिक नहीं है, हमे इसमें बहुत संदेह है, विपक्ष को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी इस समिति की रिपोर्ट का इंतज़ार रहेगा.
1999 में विधि आयोग ने भी अपने रिपोर्ट में एक राष्ट्र, एक चुनाव का समर्थन किया था. सत्तापक्ष और विपक्ष के अपने अपने तर्क है. असल तर्क तो पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की रिपोर्ट से ही पता चलेगा. जिसका सबको इंतजार रहेगा.