
लखनऊ, 10 जुलाई: राजधानी लखनऊ के ऐतिहासिक परिवर्तन चौक स्थित हनुमंत धाम में गुरु पूर्णिमा का पर्व अत्यंत श्रद्धा, भक्ति और भव्यता के साथ मनाया गया। श्रद्धालु प्रातःकाल से ही मंदिर प्रांगण में एकत्रित होने लगे। वातावरण में शंख, घंटियों की ध्वनि और भजनों की गूंज से दिव्यता और आस्था की लहर दौड़ गई। भगवान हनुमान की भव्य प्रतिमा के दर्शन करने और पूजन हेतु भक्तों की लंबी कतारें देखी गईं। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक बना, बल्कि सामाजिक सौहार्द और सांस्कृतिक एकता का सजीव उदाहरण भी प्रस्तुत किया।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जो आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। यह दिन महर्षि वेदव्यास के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है, जिन्होंने चारों वेदों का संकलन किया था और हिंदू धर्मग्रंथों को सुव्यवस्थित किया। इसी कारण उन्हें ‘आदि गुरु’ कहा गया है। इस दिन गुरु को समर्पित भाव से उनकी वंदना की जाती है।

हनुमंत धाम के महंत 108 राम सेवक दास जी ने इस अवसर पर उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए गुरु की महिमा का वर्णन किया। उन्होंने कहा – “गुरु ही वह ज्योति हैं, जो अंधकारमय जीवन को आलोकित करते हैं। ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग गुरु ही दिखाते हैं। उनका सान्निध्य और आशीर्वाद ही हमारे जीवन को दिशा देता है। जीवन में चाहे कितनी ही ऊँचाइयाँ क्यों न मिल जाएं, गुरु के चरणों में झुकना ही सच्चा उत्थान है।”
उनका यह संदेश श्रद्धालुओं के हृदय को छू गया और कई लोग भावविभोर होकर गुरु वंदना करते दिखे। उन्होंने स्पष्ट रूप से बताया कि बिना गुरु के कोई भी साधना या साधक पूर्ण नहीं हो सकता।
भक्ति में लीन श्रद्धालु
गुरु पूर्णिमा के इस अवसर पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु हनुमंत धाम पहुंचे। श्रद्धालुओं में न केवल लखनऊ शहर बल्कि आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों और जिलों से भी बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। पूजा, पाठ, आरती और भजन-कीर्तन से मंदिर परिसर का वातावरण अत्यंत आध्यात्मिक और भक्तिमय हो गया था।
सुबह से ही विशेष पूजन-अर्चन का क्रम प्रारंभ हुआ। हनुमंत धाम के पुजारियों और सेवकों ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ भगवान हनुमान की महाआरती कराई। आरती के समय पूरा परिसर “जय श्री राम” और “बजरंगबली की जय” के नारों से गूंज उठा।
विशाल भंडारा: आस्था और सेवा का संगम
गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में सिन्हा परिवार द्वारा विशाल भंडारे का आयोजन किया गया, जो इस आयोजन की एक विशेष आकर्षण रहा। भंडारे की तैयारी पहले से ही चल रही थी। आयोजकों और स्वयंसेवकों ने सेवा भाव से पूरी व्यवस्था को संभाला। दोपहर से लेकर देर शाम तक सैकड़ों श्रद्धालुओं ने पंक्तिबद्ध होकर प्रसाद ग्रहण किया।
प्रसाद में पूरी, सब्जी, खीर, चना, हलवा आदि व्यंजन थे, जिन्हें श्रद्धा और स्नेह के साथ परोसा गया। भंडारे में शामिल हर व्यक्ति के चेहरे पर संतोष और तृप्ति की झलक दिखाई दी।
इस अवसर पर सिन्हा परिवार के सदस्यों ने कहा, “हम यह आयोजन अपने परिवार के बुजुर्गों की स्मृति और गुरुजनों के आशीर्वाद के रूप में हर वर्ष करते हैं। हमें गर्व है कि हम इस सेवा कार्य का हिस्सा बनते हैं।”
प्रशासनिक और सामाजिक समन्वय
हनुमंत धाम के प्रबंधन ने आयोजन को व्यवस्थित और शांतिपूर्ण बनाने के लिए व्यापक तैयारियाँ की थीं। सुरक्षा के लिए स्वयंसेवकों की टीम सक्रिय रही, जिन्होंने श्रद्धालुओं की भीड़ को सुव्यवस्थित रूप से नियंत्रित किया। महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के लिए अलग से विशेष व्यवस्था की गई थी।
साफ-सफाई और शुद्ध जल आपूर्ति का भी विशेष ध्यान रखा गया। प्रसाद वितरण स्थल पर पर्याप्त बैठने की व्यवस्था थी और जगह-जगह हाथ धोने व पीने के पानी की व्यवस्था की गई थी।
सांस्कृतिक प्रस्तुति और भजन संध्या
इस शुभ अवसर पर मंदिर प्रांगण में सांस्कृतिक कार्यक्रम और भजन संध्या का आयोजन भी किया गया। स्थानीय कलाकारों और कीर्तन मंडलियों ने भगवान हनुमान और गुरु महिमा से जुड़े भजन प्रस्तुत किए। “गुरु बिन ज्ञान न होई”, “जय गुरुदेव”, “संकट मोचन नाम तिहारो” जैसे भजनों ने श्रद्धालुओं को भक्ति सागर में डुबो दिया।
कार्यक्रम के अंत में सभी श्रद्धालुओं ने सामूहिक रूप से आरती में भाग लिया और पुष्पांजलि अर्पित की। महंत राम सेवक दास जी ने प्रत्येक व्यक्ति को तिलक, प्रसाद और आशीर्वाद देकर विदा किया।
हनुमंत धाम लखनऊ में मनाया गया गुरु पूर्णिमा पर्व न केवल धार्मिक उत्सव था, बल्कि गुरु-शिष्य परंपरा, सेवा भाव, और सामाजिक समरसता का प्रतीक भी बना। श्रद्धालुओं की भागीदारी, आयोजन की व्यवस्था, संतों के उपदेश और भंडारे की सेवा — सभी ने मिलकर एक दिव्य और प्रेरणादायी वातावरण तैयार किया।
ऐसे आयोजनों से समाज में आध्यात्मिक चेतना तो जागृत होती ही है, साथ ही परंपराओं के संरक्षण और नई पीढ़ी तक उनके प्रचार-प्रसार का कार्य भी होता है। हनुमंत धाम की यह परंपरा और आयोजन निश्चित ही वर्षों तक श्रद्धा और भक्ति की प्रेरणा बने रहेंगे।