Kargil War: कारगिल की यह वाली बात जिसे भारत कभी भूल नहीं सकता

Kargil War: करगिल युद्ध की कहानी भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में हुई एक सीमित लेकिन बेहद कठिन लड़ाई की कहानी है, जो जम्मू-कश्मीर के करगिल, द्रास और बटालिक सेक्टर में लड़ी गई थी। यहाँ मैं इसे और भी सरल तरीके से आपको समझाता हूँ

Kargil War: 500 सैनिकों ने गवाई जान


कारगिल सेक्टर में भारत और पाकिस्तान के बीच लाइन ऑफ कंट्रोल है सर्दियों में इस क्षेत्र की ऊँचाई 16,000, से 18,000 फीट तक होती है और बर्फबारी इतनी होती है कि दोनों सेनाएं अपनी कुछ चौकियां खाली कर देती थीं पाकिस्तान ने इसी कमजोरी का फायदा उठाने की योजना बनाई।

पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ के नेतृत्व में, पाकिस्तानी सेना और घुसपैठियों ने सर्दियों में भारतीय चौकियों पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया। शुरुआत मई 1999 में हुई , भारतीय चरवाहों और गश्ती दल ने देखा कि पाकिस्तानी घुसपैठिए भारतीय क्षेत्र में 4 से 8 किमी अंदर तक बैठ गए हैं।

ये घुसपैठिए ऊँची चोटियों पर कब्ज़ा कर भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग NH-1A (श्रीनगर से लेह जाने वाला) को निशाने पर रख सकते थे अगर ये रास्ता कट जाता, तो लद्दाख का भारत से संपर्क टूट सकता था भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय शुरू किया और ऊँचाई पर बैठे घुसपैठियों को खदेड़ना भारत का लक्ष्य था . चूँकि दुश्मन ऊपर था और भारतीय सैनिकों को नीचे से चढ़ना पड़ रहा था, इसलिए यह लड़ाई बेहद कठिन और जानलेवा थी। ऊँचाई, बर्फ, पत्थरीला इलाका, और दुश्मन की मशीनगन की बौछार सब एक साथ चुनौती थे।

टाइगर हिल, टोलोलिंग, पॉइंट 4875 जैसी चोटियों पर सबसे भीषण युद्ध हुआ। देश के असली योद्धा कैप्टन विक्रम बत्रा, ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव, लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया, मेजर राजेश अधिकारी, और अनेक वीरों ने अद्भुत साहस दिखाया।

भारतीय वायुसेना ने ऑपरेशन सफ़ेद सागर के तहत मिराज-2000 और मिग विमानों से बमबारी की, जिससे दुश्मन की सप्लाई और बंकर नष्ट हुए 26 जुलाई 1999 तक भारतीय सेना ने लगभग सभी कब्ज़ाई गई चौकियां वापस ले लीं उसी दिन को करगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।

भारत को 500 से अधिक सैनिकों की शहादत देनी पड़ी, लेकिन पाकिस्तान की योजना नाकाम हो गई। यह युद्ध भारत के लिए सैन्य साहस और दृढ़ संकल्प का प्रतीक बन गया।