काशी में देव दीपावली 2025 : दिव्यता, आस्था और संस्कृति का अद्भुत संगम

वाराणसी, जिसे “मोक्षनगरी” कहा जाता है, एक बार फिर देव दीपावली पर जगमगाने को तैयार है। इस वर्ष की देव दीपावली (02 नवंबर 2025) उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर को न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के सामने फिर से प्रदर्शित करने जा रही है। गंगा के घाटों पर, कुंडों और तालाबों के किनारे, गलियों से लेकर मंदिरों तक हर जगह दीपों की अनगिनत कतारें एक बार फिर यह संदेश देंगी कि काशी केवल एक शहर नहीं, बल्कि जीवंत अध्यात्म का प्रतीक है।

उत्तर प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने बताया कि इस बार देव दीपावली के अवसर पर 10 लाख से अधिक मिट्टी के दीपों की व्यवस्था की गई है। दीपक, तेल, बाती और पूजन सामग्री का वितरण वाराणसी के विभिन्न स्थानों पर शुरू हो चुका है। उन्होंने कहा कि यह आयोजन केवल धार्मिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक, पारंपरिक और सामाजिक एकता का उत्सव भी है।

20 सेक्टरों में बंटा आयोजन क्षेत्र

गंगा के घाटों से लेकर उसके पार के रेतले तट तक पूरे आयोजन स्थल को 20 सेक्टरों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक सेक्टर में एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति की गई है ताकि सफाई, सुरक्षा, लाइटिंग, श्रद्धालुओं की सुविधा और यातायात की व्यवस्था सुचारु रूप से संचालित हो सके। प्रशासन ने घाटों पर भीड़ नियंत्रण के लिए विशेष बैरिकेडिंग और सीसीटीवी मॉनिटरिंग की व्यवस्था की है।

जयवीर सिंह ने कहा, “इस बार की देव दीपावली को यादगार बनाने के लिए तकनीक और परंपरा का संगम होगा। गंगा आरती के साथ-साथ घाटों पर होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बनारस घराने के कलाकार, कथक नर्तक और शास्त्रीय संगीतज्ञ अपनी प्रस्तुति देंगे।”

शंखनाद और डमरू से गूंजेगी काशी

कार्यक्रम का आरंभ शंखनाद और डमरू की गूंज से होगा — यह भगवान शिव की उपस्थिति का प्रतीक है। शो की रूपरेखा ऐसी बनाई गई है कि हर दृश्य काशी की आत्मा को अभिव्यक्त करे। भगवान शिव-पार्वती विवाह, भगवान विष्णु के चक्र पुष्करिणी कुंड की कथा, भगवान बुद्ध के धर्मोपदेश, संत कबीर की निर्गुण भक्ति और गोस्वामी तुलसीदास की रामभक्ति को मंचीय दृश्यों में प्रस्तुत किया जाएगा।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना और महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के योगदान को भी 3D प्रोजेक्शन शो में दिखाया जाएगा। यह पूरा कार्यक्रम यह संदेश देगा कि काशी केवल परंपरा की भूमि नहीं, बल्कि भारत के ज्ञान और धर्म का जीवंत केंद्र है।

प्रकाश से जगमगाएगी गंगा

देव दीपावली की संध्या पर जब गंगा के दोनों तटों पर दीपों की पंक्तियाँ जगमगाएंगी, तब दृश्य अवर्णनीय होगा। श्रद्धालु दीपदान करते हुए ‘हर हर महादेव’ के जयघोष से वातावरण को पवित्र करेंगे। घाटों पर बैठकर आरती का दर्शन करने के लिए लाखों श्रद्धालु आएंगे।

मंत्री जयवीर सिंह ने कहा कि इस वर्ष गंगा आरती में 1,200 पुजारी और आचार्य सम्मिलित होंगे। सभी को एक समान ड्रेस कोड दिया गया है। कार्यक्रम का सीधा प्रसारण प्रदेश के सभी जिलों में एलईडी स्क्रीन पर दिखाया जाएगा।

भव्य “काशी-कथा” शो और लेजर प्रोजेक्शन

कार्यक्रम का सबसे आकर्षक हिस्सा होगा “काशी-कथा” 3D प्रोजेक्शन मैपिंग और लेजर शो, जिसकी अवधि 25 मिनट रखी गई है। यह शो गंगा के तट पर लगे विशाल स्क्रीन पर प्रदर्शित होगा, जिसमें काशी की प्राचीनता, गंगा की महिमा और विश्वनाथ धाम की दिव्यता को आधुनिक तकनीक से दिखाया जाएगा।

संयुक्त निदेशक पर्यटन दिनेश कुमार ने बताया कि इसके अलावा 8 मिनट का एक विशेष लेजर शो भी आयोजित होगा, जिसमें प्रकाश की किरणों से काशी की कथा और उसके आध्यात्मिक भाव को दर्शाया जाएगा।

यह शो तीन बार निःशुल्क दिखाया जाएगा — रात 08:15, 09:00 और 09:35 बजे। ताकि देश-विदेश से आने वाले पर्यटक इसका आनंद ले सकें।

ग्रीन आतिशबाजी का अद्भुत नजारा

देव दीपावली की रात को पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए ‘ग्रीन आतिशबाजी’ का आयोजन किया जाएगा। यह आतिशबाजी प्रदूषण रहित होगी और 10 मिनट तक चलेगी। श्री काशी विश्वनाथ धाम के गंगा द्वार से रात 8 बजे इस आतिशबाजी की शुरुआत होगी। मंत्री ने कहा, “यह पहल दिखाती है कि हम परंपरा को निभाते हुए भी प्रकृति के प्रति जिम्मेदार हैं।”

पर्यटन को नई उड़ान

वाराणसी प्रशासन का कहना है कि इस बार अनुमानित 15 लाख से अधिक श्रद्धालु और पर्यटक देव दीपावली के अवसर पर शहर पहुंचेंगे। इसके लिए गेस्ट हाउस, होटलों और धर्मशालाओं में विशेष तैयारियां की गई हैं। रेलवे और रोडवेज विभाग ने भी अतिरिक्त सेवाएं शुरू की हैं।

राज्य पर्यटन विभाग ने “एक दीप काशी के नाम” डिजिटल कैंपेन भी लॉन्च किया है, जिसमें लोग ऑनलाइन वर्चुअल दीपदान कर सकेंगे।

काशी की पहचान बनेगी देव दीपावली

वाराणसी के स्थानीय लोगों ने बताया कि देव दीपावली सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि पूरे शहर की आत्मा है। हर घर, हर घाट, हर गली में दीप जलाने की परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। इस दिन माना जाता है कि स्वयं देवता गंगा तट पर उतरकर दीपदान करते हैं।

काशी के धर्माचार्य पं. विश्वनाथ शास्त्री ने बताया, “देव दीपावली वह क्षण है जब स्वर्ग और पृथ्वी के बीच की दूरी मिट जाती है। यह दिन ईश्वर की उपासना, आत्मा की शुद्धि और सामूहिक आनंद का दिन है।”

विश्व स्तर पर काशी का संदेश

इस बार देव दीपावली का उद्देश्य काशी की आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक विरासत को विश्व मंच तक पहुंचाना है। राज्य सरकार ने यूनेस्को और कई अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक संगठनों से संपर्क साधा है ताकि काशी को “ग्लोबल स्पिरिचुअल हेरिटेज सिटी” के रूप में मान्यता दिलाई जा सके।

कार्यक्रम में देश-विदेश के कलाकार, राजनयिक, फिल्म निर्माता और पर्यटन विशेषज्ञ भी भाग लेंगे। आयोजन में सुरक्षा की दृष्टि से 5,000 से अधिक पुलिसकर्मी और एनडीआरएफ की टीमें तैनात रहेंगी।