
रिपोर्टर : हरिओम वर्मा
बरखेड़ा । जनपद के थाना बरखेड़ा क्षेत्र एक बार फिर से उस दर्दनाक दृश्य का गवाह बना है जिसने न केवल स्थानीय समाज की धार्मिक भावनाओं को झकझोर दिया है बल्कि पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। देवहा नदी के तट पर दो दिनों से लगातार प्लास्टिक के कट्टों में गौवंशों के सिर और अवशेष मिलना इस बात का संकेत है कि गौ-तस्कर कितनी बेखौफी से सक्रिय हैं।
बरखेड़ा थाना पुलिस दावा करती है कि देवहा पुल तक रात्रि गश्त नियमित रूप से की जाती है, लेकिन सवाल यह है कि फिर इतनी बड़ी घटना दो दिनों तक कैसे होती रही और किसी की नजर क्यों नहीं पड़ी? यह साफ संकेत है कि या तो गश्त केवल कागज़ों में हो रही है या फिर स्थानीय स्तर पर मिलीभगत की बू आ रही है।

विश्व हिंदू परिषद और गौरक्षा टीम के कार्यकर्ताओं ने घटनास्थल पर पहुंचकर विरोध जताया। किसी समाज की आस्था के प्रतीक के साथ ऐसी अमानवीय हरकत पर आक्रोश स्वाभाविक है। लेकिन यह भी आवश्यक है कि इस गुस्से को प्रशासनिक जवाबदेही में बदला जाए, केवल नारों तक सीमित न रखा जाए।
पिछले दिन भी जब गौवंशों के अवशेष मिले थे, तब प्रशासन ने जेसीबी से दफनाकर कार्रवाई पूरी समझ ली थी। परंतु अगले ही दिन वही दृश्य दोहराया गया — यह बताता है कि केवल औपचारिक कार्रवाई और दिखावटी जांच से स्थिति नहीं सुधर सकती। आवश्यकता है ठोस खुफिया नेटवर्क और सीमाई क्षेत्रों पर सघन निगरानी की। बरखेड़ा से नवाबगंज मार्ग तक फैला यह इलाका लंबे समय से गौ-तस्करी का मार्ग माना जाता रहा है, बावजूद इसके पुलिस हर बार “गश्त और जांच” का रटा-रटाया बयान देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती है।
प्रशासन को अब इस मामले को केवल “घटना” के रूप में नहीं, बल्कि “धार्मिक भावना से जुड़े अपराध” के रूप में देखना होगा। दोषियों की गिरफ्तारी, सीमा क्षेत्र में विशेष पुलिस चौकी की स्थापना और निगरानी ड्रोन जैसी आधुनिक तकनीकों का प्रयोग अनिवार्य होना चाहिए।
देवहा के तट से उठती यह दुर्गंध केवल मृत गोवंशों की नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही की भी है जो अपराधियों को हर बार नया हौसला देती है। अब वक्त है कि बरखेड़ा पुलिस केवल बयान न दे, बल्कि अपने कर्तव्यों का प्रमाण भी दे — ताकि जनता को विश्वास हो सके कि कानून अभी भी ज़िंदा है।