
Jafar Panahi punishment– ईरानी सिनेमा को विश्व पटल पर नई पहचान देने वाले अंतरराष्ट्रीय स्तर के फिल्मकार जफ़र पनाही को ईरान सरकार की ओर से फिर सज़ा सुनाई गई है। उन पर देश की छवि को धूमिल करने का आरोप लगाया गया है। इससे पहले भी वर्ष 2010 में उन्हें व्यवस्था के ख़िलाफ़ काम करने और दुष्प्रचार करने के आरोप में छह साल की कैद और 20 साल तक फिल्म न बनाने, स्क्रिप्ट न लिखने, विदेश यात्रा न करने और विदेशी पत्रकारों से बात न करने जैसी कड़ी पाबंदियाँ लगाई गई थीं। इसके बावजूद उन्होंने चोरी-छिपे कई ऐसी फ़िल्में बनाई, जिन्हें आज विश्वभर में सराहा जा रहा है।
जहाँ एक ओर उनकी फ़िल्में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रशंसा बटोर रही हैं, वहीं दूसरी ओर तेहरान की अदालत ने एक बार फिर उन्हें सिस्टम के खिलाफ प्रचार करने का दोषी ठहराते हुए ईरान छोड़ने पर दो वर्ष का प्रतिबंध लगा दिया है। उनके वकील मुस्तफा नीली का कहना है कि वे इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगे। दिलचस्प बात यह है कि जब अदालत ने सज़ा सुनाई, तब पनाही देश में मौजूद नहीं थे — वे इस समय न्यूयॉर्क में थे।
चोरी-छिपे फिल्म (Jafar Panahi punishment) निर्माण
हाल के दिनों में जफ़र पनाही की फ़िल्मों को फ्रांस और अमेरिका जैसे देशों में बड़े अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं। उनकी फ़िल्म ‘इट वाज़ जस्ट एन एक्सिडेंट’ को सालाना गोथम अवॉर्ड्स में तीन पुरस्कार मिले, जबकि सितंबर में कान फिल्म फ़ेस्टिवल में इसे पाल्मे डी’ओर से सम्मानित किया गया। यह फ़िल्म पनाही ने चोरी-छिपे ईरान में ही फिल्माई थी।
84 दिन जेल में रहने के दौरान मिले अनुभवों के आधार पर उन्होंने इस फ़िल्म का निर्माण किया। एक साक्षात्कार में पनाही ने बताया:
“मेरी फ़िल्म में जो भी पात्र दिखाई देते हैं, वे जेल में हुई बातचीतों और ईरानी सरकार की हिंसा व बर्बरता के बारे में लोगों द्वारा सुनाई गई कहानियों से प्रेरित हैं, जो चार दशकों से भी अधिक समय से जारी हैं। एक तरह से, यह फ़िल्म मैंने नहीं बनाई- इसे इस्लामी गणराज्य ने बनाया है क्योंकि उन्होंने मुझे जेल में डाल दिया। अगर वे हमें इतना ‘विध्वंसकारी’ होने से रोकना चाहते हैं, तो उन्हें हमें जेल में डालना बंद कर देना चाहिए।”
दुनिया भर से समर्थन
जहाँ ईरान सरकार के साथ उनके संबंध पिछले 20 वर्षों में कई बार टकराव की स्थिति में रहे हैं और उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा है, वहीं दूसरी ओर दुनिया भर के फिल्म प्रेमी और मानवाधिकार संगठन लगातार उनका समर्थन कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि जफ़र पनाही को दी गई सज़ा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। उनका तर्क है कि किसी कलाकार को अपनी प्रतिभा और विचार व्यक्त करने से रोकने के लिए दमन का सहारा लेना लोकतांत्रिक और मानवीय मूल्यों के खिलाफ है।
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