क्रय केंद्रों पर पसरा सन्नाटा, फिर भी कागजों में रोजाना हजारों टन धान की खरीद

लखीमपुर खीरी।जनपद लखीमपुर खीरी में किसानों को उनकी धान की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा संचालित क्रय केंद्रों की हकीकत कागजी आंकड़ों से बिल्कुल उलट नजर आ रही है। मंडियों और क्रय केंद्रों पर न तो किसानों की मौजूदगी दिखाई दे रही है और न ही धान की वास्तविक आवक, इसके बावजूद सरकारी अभिलेखों में रोजाना सैकड़ों से हजारों टन धान की खरीद दर्ज की जा रही है। यह स्थिति धान खरीद व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर रही है और पूरे मामले को एक यक्ष प्रश्न बना रही है।

ग्राउंड रिपोर्ट के दौरान हमारे संवाददाता ने जब विभिन्न मंडियों और क्रय केंद्रों का जायजा लिया तो पाया कि अधिकांश केंद्रों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। केंद्र प्रभारियों की कुर्सियां खाली पड़ी हैं, बैनर तक गायब हैं और किसानों की आवक न के बराबर है। दूसरी ओर मिल मालिकों और आढ़तियों के यहां धान से लदी ट्रालियों की लंबी कतारें लगी हुई हैं, जहां किसान मजबूरी में अपना धान 1600 से 1700 रुपये प्रति कुंतल के बीच बेच रहे हैं।

किसानों का कहना है कि सरकारी क्रय केंद्रों पर कभी गुणवत्ता मानकों का हवाला देकर तो कभी बारदाने की कमी बताकर धान खरीद से मना कर दिया जाता है। कई बार भुगतान में देरी भी होती है, जबकि मिलों पर उन्हें तुरंत नगद भुगतान मिल जाता है और लाइन में दिन-दिन भर खड़ा नहीं रहना पड़ता। कई किसानों ने ऑन कैमरा यह भी आरोप लगाया कि क्रय केंद्रों पर केवल रसूखदारों और सेटिंग वालों का ही धान खरीदा जाता है। अधिकांश किसान अपनी फसल पहले ही औने-पौने दामों में बेच चुके हैं, यही वजह है कि मंडियों में सरकारी केंद्रों पर सन्नाटा दिखाई देता है।

इसके बावजूद क्रय केंद्रों पर कागजों में खरीद लगातार दर्ज की जा रही है। नवीन गल्ला मंडी मैगलगंज, मोहम्मदी, गोला, लखीमपुर और तिकुनिया में सुबह से शाम तक केंद्रों पर कोई किसान नजर नहीं आया, फिर भी रिकॉर्ड में धान खरीद पूरी दिखाई गई। कुछ केंद्र प्रभारियों और उनके करिंदों ने ऑन कैमरा स्वीकार किया कि केंद्रों पर धान नहीं आता, केवल किसानों के कागज आते हैं और वास्तविक धान मिलरों का खरीदा जाता है। लक्ष्य पूरा करने के नाम पर यह व्यवस्था वर्षों से चलती आ रही है, जिसमें किसान को सरकारी मूल्य का लाभ नहीं मिल पाता और बिचौलिये मालामाल हो जाते हैं।

15 दिसंबर 2025 का एक मामला इस पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है। गल्ला मंडी स्थित एक क्रय केंद्र के प्रभारी ने शाम 5:30 बजे ऑन कैमरा बताया कि उस दिन उनके केंद्र पर धान की खरीद शून्य रही। केंद्र बंद था और कोई ट्रॉली भी नहीं आई, लेकिन ऑनलाइन डाटा में उसी दिन 29 टन धान की खरीद दर्ज पाई गई। यह धान कहां से आया, किसका था और कब खरीदा गया, इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं है।

सूत्रों के मुताबिक इस कथित खेल में केंद्र प्रभारी से लेकर एमओ, विपणन प्रबंधक और एआर कोऑपरेटिव तक की मिलीभगत बताई जा रही है। मिल मालिकों से प्रति कुंतल करीब 700 रुपये के बंटवारे की चर्चा है, जिसमें ट्रांसपोर्टरों की भूमिका भी अहम मानी जा रही है। मंडियों में कुछ किसान केवल कागजात जमा करने आते दिखे, लेकिन जब उनसे धान बिक्री के बारे में सवाल किया गया तो वे कैमरे से बचते नजर आए।

पूरा मामला धान खरीद प्रक्रिया में जादुई आंकड़ों की बाजीगरी की ओर इशारा करता है, जहां किसानों को मिलने वाला लाभ किसी और की जेब भरने का जरिया बन रहा है। यदि धान बेचने वाले किसानों की जमीनों के रकबे, फसल पैटर्न और वास्तविक उत्पादन की गहन जांच कराई जाए तो बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का खुलासा होना तय माना जा रहा है। ऐसे में राजस्व विभाग से लेकर धान खरीद से जुड़े सभी जिम्मेदार अधिकारियों की भूमिका की जांच और जवाबदेही तय करना अब जरूरी हो गया है।