
हरदोई। भीषण ठंड और घने कोहरे को देखते हुए जिलाधिकारी अनुनय झा ने 20 दिसंबर 2025 को तहसील सवायजपुर में आयोजित संपूर्ण समाधान दिवस के दौरान जनपद के सभी खंड विकास अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए थे कि प्रत्येक ग्राम पंचायत में अलाव की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित की जाए, ताकि ग्रामीणों को ठंड से राहत मिल सके। लेकिन इन निर्देशों के बावजूद जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल उलट नजर आ रही है। अधिकांश गांवों में न तो अलाव जलते दिख रहे हैं और न ही किसी अन्य प्रकार की राहत व्यवस्था की गई है।
हरदोई एक कृषि प्रधान जिला है, जहां आबादी का बड़ा हिस्सा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है। लगभग 5986 वर्ग किलोमीटर में फैले इस जनपद में 7 नगरपालिकाएं, 6 नगर पंचायतें, 19 विकास खंड, 191 न्याय पंचायतें और 1306 ग्राम पंचायतें हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जनपद की कुल आबादी 40 लाख 92 हजार 845 थी, जिसमें से लगभग 35 लाख 50 हजार से अधिक लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते थे। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान मतदाता सूची के आधार पर प्रोजेक्टेड आबादी 49 लाख 44 हजार 847 दर्शाई गई है, जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि वर्तमान में भी 40 लाख से अधिक लोग ग्रामीण अंचलों में ही निवास कर रहे हैं।
इतनी बड़ी आबादी के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में ठंड से बचाव के लिए सरकारी तैयारियां नगण्य दिखाई दे रही हैं। इसके विपरीत शहरी इलाकों में अलाव, रैन बसेरा और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था नियमित रूप से की जा रही है। ग्रामीण अंचलों में रहने वाले लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती-बाड़ी है, जो पहले से ही बाढ़, बारिश, सूखा, बढ़ती लागत और घटती आमदनी से जूझ रहा है। खाद, बीज, कीटनाशक, डीजल और बिजली की बढ़ती कीमतों तथा कृषि उपज का उचित मूल्य न मिल पाने से किसानों की आर्थिक स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है। ऐसे में ग्रामीण परिवारों के लिए गर्म कपड़े खरीदना या ईंधन जुटाना भी बड़ी चुनौती बन गया है।
तेजी से बढ़ते शहरीकरण और पूंजीवादी सोच ने गांवों की प्राकृतिक हरियाली को भी भारी नुकसान पहुंचाया है। अंधाधुंध पेड़ कटान के कारण ईंधन की भारी कमी हो गई है। पहले जहां लकड़ी, उपले और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से ग्रामीण सर्दी में अलाव जला लेते थे, वहीं अब ये संसाधन दुर्लभ हो चुके हैं। नतीजतन गरीब और असहाय ग्रामीण कड़ाके की ठंड में ठिठुरने को मजबूर हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि शहरी क्षेत्रों में राहत की व्यवस्था समय पर कर दी जाती है, लेकिन गांवों को हर बार नजरअंदाज कर दिया जाता है। जबकि हकीकत यह है कि मौसम की सबसे ज्यादा मार गांवों के लोग ही झेलते हैं। ठंड के मौसम में बुजुर्ग, बच्चे और बीमार सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं, लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर कौन सी सरकारी मजबूरी है, जिसके चलते इतनी बड़ी ग्रामीण आबादी को नजरअंदाज किया जा रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि चुनाव के समय इन्हीं वोटरों के सहारे जनप्रतिनिधि सत्ता तक पहुंचते हैं, लेकिन सुविधा के नाम पर गांवों को कुछ भी नहीं मिलता। केवल चुनिंदा गांवों में चुनिंदा लोगों को कंबल बांटकर फोटो शूट कर वाहवाही लूट ली जाती है, जबकि वास्तविक जरूरतमंद लोग एक कंबल के लिए मिन्नतें करते-करते पूरी सर्दी निकाल देते हैं।