#भारत समेत सभी 14 पड़ोसियों से चीन का सीमा को लेकर विवाद है। कंबोडिया, लाओस, इंडोनेशिया, मलयेशिया, फिलीपींस और सिंगापुर जैसे देश जो उसके पड़ोसी भी नहीं हैं, उनसे भी चीन सीमा को लेकर झगड़ता रहता है। जमीन ही नहीं, चीन का हिन्द महासागर और दक्षिण चीन सागर में बसे देशों से भी सीमा को लेकर विवाद है।
चीन के कुल क्षेत्रफल का 43 फीसद हिस्सा उसका अपना नहीं, बल्कि कब्जा किया हुआ हिस्सा है। पूर्वी तुर्किस्तान, तिब्बत, दक्षिण मंगोलिया, ताइवान, हांगकांग और मकाऊ जैसे कम-से-कम 6 देश ऐसे हैं, जिन पर चीन कब्जा जमा चुका है, या फिर उन पर वो अपना हक जताता है। चीन साम-दाम-दंड-भेद की हर वो नीति अख्तियार करता है, जिससे दूसरे देशों को अपनी धौंस में लिया जा सके। लद्दाख में सीमा-विवाद भड़काने के पीछे भी उसकी मंशा यही थी, लेकिन इस बार उसका तीर निशाना ही नहीं चूका, बल्कि खुद चीन दुनिया के निशाने पर आ गया।
कोरोना वायरस फैलाने की आशंकाओं के बीच चीन से कई देश पहले से ही नाराज चल रहे हैं और अब उसकी विस्तारवादी सोच में दुनिया को खतरा नजर आने लगा है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान जैसे देश आरोप लगा रहे हैं कि कोरोना से दुनिया को मुश्किल में डालकर चीन हालात का फायदा उठा रहा है। विपरीत परिस्थितियों में भी उसका ट्रेड नकारात्मक नहीं हुआ यानी व्यापार घाटे से चीन बचा रह गया और अब तो उसकी अर्थव्यवस्था भी पटरी पर लौट रही है, जबकि मजबूत कही जाने वाली दुनिया की लगभग हर प्रमुख आर्थिक शक्ति कोरोना वायरस की चपेट में आकर तबाही की कगार पर नजर आ रही है।
अंदेशा इसी बात का है कि चीन वो रुतबा हथियाने की फिराक में है, जो फिलहाल अमेरिका को हासिल है। हालांकि चीन बार-बार यह कह रहा है कि न तो वो अमेरिका बनना चाहता है, ना ही अमेरिका के साथ किसी तरह के संघर्ष में उलझना चाहता है, लेकिन अब दुनिया का हर देश समझ चुका है कि उसकी मंजिल क्या है? अमेरिका ही नहीं, रूस भी चीन की इस योजना को लेकर असहज है। बीआरआई को बढ़ाने के लिए चीन रूस के मना करने के बावजूद उसकी पश्चिमी सीमा पर यूक्रेन सरकार के साथ काम कर रहा है, जबकि यूक्रेन के साथ रूस के मौजूदा संबंध तनावपूर्ण चल रहे हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि चीन के खिलाफ प्रचार करने में अमेरिका के अपने स्वार्थ भी हैं, लेकिन दुनिया के कई देशों के साथ-साथ नाटो भी चीन को वास्तविक खतरा मान रहा है। समझ यही है कि अगर चीन को आज नहीं रोका गया, तो कल वो पूरी दुनिया का सिरदर्द बन जाएगा। इसके लिए उसकी सामरिक ताकत को सीमित करने के साथ ही उसके आर्थिक साम्राज्य पर भी चोट पहुंचाना जरूरी है।
पाकिस्तान एक नाकाम देश है और चीन एक बड़ी आर्थिक और सैन्य महाशक्ति, लेकिन ये दोनों हमारे लिए समान रूप से अहम हैं क्योंकि दोनों हमारे पड़ोसी हैं। इनसे निपटने के लिए अमेरिका और रूस की ओर देखने के साथ ही हमें अपने बाकी पड़ोसियों से समर्थन को भी मजबूत करना होगा। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ मिलकर बने क्वाड का दायरा नाटो की तरह बढ़ाना होगा। इससे जुडऩे के लिए इच्छुक वियतनाम, मलयेशिया जैसे देशों को भी साथ लेना होगा और जी-11 में सदस्यता की पहल पर भी गंभीरता से विचार करना होगा।
हमें सदैव स्मरण रखना होगा कि जमीन, जनता और आर्थिक क्षमता के स्तर पर अगर कोई एक देश चीन की ‘दीवार’ के उस पार जाने का दम रखता है, तो वो भारत ही है। लद्दाख से दुनिया को चीन के विस्तारवाद की याद दिलाने के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया को भारत की इसी ताकत का अहसास भी करवाया है।