Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the wp-statistics domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/ekumjjfz/amarbharti.com/wp-includes/functions.php on line 6114

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the updraftplus domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/ekumjjfz/amarbharti.com/wp-includes/functions.php on line 6114

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the wordpress-seo domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/ekumjjfz/amarbharti.com/wp-includes/functions.php on line 6114
कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्ति इतने साल तक करना पड़ता है संघर्ष- Amar Bharti Media Group धर्म

कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्ति इतने साल तक करना पड़ता है संघर्ष

राहु और केतु को पाप ग्रह होने का दर्जा प्राप्त है. राहु-केतु एक ही राक्षस के दो भाग हैं. यानि सिर को राहु और धड़ को केतु माना गया है. यानि राहु के पास धड़ नहीं है और केतु के पास अपना मस्तिष्क नहीं है. इनकी आकृति सर्प की तरह बताई गई है. जिस प्रकार से सर्प व्यक्ति को जकड़ लेता है और उससे छुटकारा पाना कभी कभी मुश्किल हो जाता है उसी प्रकार से जब इन दोनों ग्रहों की स्थिति जन्म कुंडली में अशुभ होती है या फिर इनसे कालसर्प और पितृदोष का निर्माण होता है तो व्यक्ति को कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है.

राहु- केतु कौन हैं?

पौराणिक कथा के अनुसार स्वर्भानु नाम का एक राक्षस था. राहु केतु इसी राक्षस के दो अलग अगल हिस्से हैं. कथा के अनुसार जब देवता और असुरों के मध्य समुद्र मंथुन की प्रक्रिया चल रही थी. समुद्र मंथन से अमृत कलश निकला. अमृत पीने के लिए देवता और असुरों में युद्ध की स्थिति की पैदा हो गई है. युद्ध की स्थिति को टालने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप लिया और देवताओं को अमृत पान कराना आरंभ कर दिया. स्वर्भानु नाम के असुर ने देवताओं की चाल को समझ लिया और भेष बदलकर स्वर्भानु देवताओं की पंक्ति में जाकर बैठ गया. इस प्रकार से स्वर्भानु ने भी अमृत पान कर लिया, लेकिन ऐन वक्त पर चंद्रमा और सूर्य ने इसकी जानकारी भगवान विष्णु को दे दी. भगवान ने फौरन अपने सुर्दशन चक्र से इस असुर की गर्दन धड़ से अलग कर दी. अमृत की बूंदें गले से नीचे उतरने के कारण इसकी मृत्यु नहीं हुई. इस प्रकार से सिर वाला हिस्सा राहु बना और धड़ का हिस्सा केतु कहलाया. सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण को लेकर कहा जाता है कि राहु और केतु इस घटना का बदला लेने के लिए समय समय पर सूर्य और चंद्रमा पर आक्रमण करते हैं. जिसके कारण ग्रहण की स्थिति उत्पन्न होती है.

कालसर्प योग कैसे बनता है?

जन्म कुंडली में राहु और केतु के मध्य जब सभी ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प योग का बनता है. ज्योतिष शास्त्र में 12 प्रकार के कालसर्प योग बताए गए हैं. जिन्हें अनंत काल सर्प योग, कुलिक काल सर्प योग, वासुकी कालसर्प योग, शंखपाल कालसर्प योग, पदम् कालसर्प योग, महापद्म कालसर्प योग, तक्षक काल सर्पयोग, कर्कोटक कालसर्प योग, शंख्चूर्ण कालसर्प योग, पातक काल सर्पयोग, विषाक्त काल सर्पयोग और शेषनाग कालसर्प योग कहा जाता है.

कालसर्प योग का फल

ऐसा माना जाता है कि जिस व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प योग होता है उसे जीवन के 42 वर्षों तक संघर्ष करता है राहु-केतु का यदि समय समय पर उपाय नहीं किया जाए तो व्यक्ति 42 वर्षों तक जीवन में सफल होने के लिए संघर्ष करता है.

पितृदोष का निर्माण कैसे होता है?

जन्म कुंडली का नवां घर पिता का घर माना गया है. इसे भाग्य भाव भी कहते हैं. कुंडली के इस घर को शुभ माना गया है. इस भाव को धर्म का भाव भी कहा गया है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब नवम भाव में सूर्य, राहु या केतु विराजमान हो जाएं तो, पितृ दोष नाम का अशुभ योग बनता है. वहीं सूर्य और राहू जिस भी भाव में बैठते हैं तो इससे उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते हैं और एक प्रकार से पितृ दोष की स्थिति बनती है. पितृ दोष के कारण कभी कभी व्यक्ति को मृत्यु तुल्य कष्ट भी उठाने पड़ते हैं. भगवान शिव और गणेश जी की पूजा करने से राहु और केतु शांत होते हैं.