Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the wp-statistics domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/ekumjjfz/amarbharti.com/wp-includes/functions.php on line 6114

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the 3d-flip-book domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/ekumjjfz/amarbharti.com/wp-includes/functions.php on line 6114

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the updraftplus domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/ekumjjfz/amarbharti.com/wp-includes/functions.php on line 6114

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the wordpress-seo domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/ekumjjfz/amarbharti.com/wp-includes/functions.php on line 6114
लोभ को त्यागकर मन की पवित्रता से नाता जोड़िए-मन निर्लोभी, तन निरोगी- Amar Bharti Media Group धर्म

लोभ को त्यागकर मन की पवित्रता से नाता जोड़िए-मन निर्लोभी, तन निरोगी

उत्तम शौच धर्म

‘शुचेर्भाव: शौचम’ परिणामों की पवित्रता को शौच कहते हैं। यह परिणाम की पवित्रता अलोभ से आती है। क्षमा से क्रोध पर, मार्दव से मान पर, आर्जव से माया पर तथा शौच धर्म से लोभ पर विजय प्राप्त की जाती है। मन की पवित्रता तभी हो सकती है जब हम अपने मन से मन्थरा रूपी शल्य को हटा देते हैं।

उत्तम शौच धर्म तन की सफाई से पूर्व मन की मन की शुद्धि की ओर संकेत करता है। हमें विचार करना होगा कि शरीर की सफाई तो हम रोज करते हैं पर मन को मांजने की क्रिया से हमेशा दूर रहना चाहते हैं आखिर ऐसा क्यों? जबकि शरीर को कितना भी सम्भाल लो पर अंत में उसे जलना ही है। यदि हम आत्मा की शुद्धता पर ध्यान दें तो हम मनुष्य जन्म सार्थक कर सकते हैं।

मन के पवित्र होते ही निर्लोभता का आगमन होता है। हम सभी जानते हैं कि पवित्र साधन से ही पवित्र साध्य की प्राप्ति होती है, इसलिए साधन और साध्य को समझने के बाद ही हम लोभ को त्यागने की ओर कदम बढ़ा पाते हैं।

अब हमें ये समझना आवश्यक है कि मन की पवित्रता हमारा साधन है और आत्मा हमारा साध्य है। जब दृष्टि स्पष्ट हो तो उस ओर प्रयास करने से सफलता अवश्य मिलती है।

‘शौच पावन गंगा है, गंदा नाला नहीं, मोक्ष द्वार की चाबी है, अवरोधक ताला नहीं’- इसे भी पढ़े

इसलिए लोभ को दूर करने के लिए और आत्मा की पवित्रता के लिए शील, संयम, जप-तप आदि अति आवश्यक है। ‘लोभ’ शब्द को ऐसे भी समझ सकते हैं – ‘लो’ अर्थात ‘लोक’, ‘भ’ अर्थात ‘भटकना’, जो लोक में भटकता है, वही ‘लोभ’ है। लोभ को ‘पाप का बाप’ भी कहा गया है।

क्योंकि लोभ ही समस्त दोषों की उत्पत्ति की खान है। लोभ का लावण्य निराला है। इससे पीछा छुड़ाना बहुत कठिन है क्योंकि इसकी चिपकन बहुत तीव्र होती है। लोभ में मिठास होती है, इसलिए व्यक्ति इसे जल्दी नहीं छोड़ना चाहता।

जैसे ज्‍यादा मिठास से शरीर में डायबिटीज रोग उत्पन्न होता है और फिर हमेशा के लिए मीठा खाने का त्याग करना पड़ता है। वैसे ही लोभरूपी मिठास को यदि मन की जड़ से न हटाया गया तो हमारा मनुष्य जीवन निरर्थक है।

‘मन की कुटिलता को जड़ से खत्म करता है उत्तम आर्जव धर्म’-इसे भी पढ़े

हम इस संसार में निरंतर भटकते ही रहेंगे। लोभ कषाय सबसे मजबूत कषाय है, यही कारण है कि वह सबसे अंत तक रहती है। मन की शुद्धि शौच धर्म के माध्यम से ही होती है।

जिसका मन शुद्ध है, पवित्र है, ऊंचा है उसका भाग्य भी सदा ऊंचा रहता है, उसका जीवन सदा पवित्र रहता है।

कहा भी गया है कि –

नकली औषध, खाद्य मिलावट, कर की चोरी, रिश्‍वत लेता।

दहेज मांगता, देह चलाता, चोरों को तू आश्रय देता।।

जितना आया, थोड़ा समझा, मन की तृष्णा नहीं गई।

लोभ पाप का बाप छोड़ तू, मन को रख तू, शुद्ध सही।।

हम सभी अपने लक्ष्य को हमेशा ऊंचा ‘आत्मशुद्ध’ ही रखें। हम पूजा-भक्ति, तप, संयम, मनन, चिन्तन व अन्तरंग जाप से अपने अंतर्मन एवं जीवन को सुसंस्कार व आदर्श बनाएं।

यही हमारी शुभभावना होनी चाहिए तथा इस ओर निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए।

(जाप मंत्र-ऊं हृीं श्रीं उत्तमशौचधर्मांगाय नम:)

डॉ. इन्दु जैन राष्ट्र गौरव, दिल्ली

indujain2713@gmail.com