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आर्जव धर्म अपनाने से देश-दुनिया में शांति आयेगी- Amar Bharti Media Group धर्म

आर्जव धर्म अपनाने से देश-दुनिया में शांति आयेगी

पर्युषण पर्व का तृतीय दिवस उत्तम आर्जव

आर्जव धर्म अपनाने से समाज और देश से छलकपट, मायाचारी, बेईमानी दूर होगी और एक स्वच्छ समाज का निर्माण होगा।

दुनिया के सारे देश यदि छल-कपट छोड़ दें तो सारी दुनिया में सुख-शांति आ जाये। आज नीचे से ऊपर तक कहीं न कहीं छल-कपट पुष्पित-पल्लवित है।

वस्तुओं में मिलावट, कालाबाजारी, डाक्टरों द्वारा अपना पैसा बनाने के चक्कर में आवश्यकता न होने पर भी आपरेशन कर देना, पैसा बनाने के चक्कर में निगेटिव की पॉजिटिव, पॉजिटिव की निगेटिव रिपोर्ट बना देना आदि मरीजों के साथ बेईमानी, कर्मचारियों द्वारा अपनी ड्यूटी ठीक से नहीं निभाना, सौदों में बीच में कमीशन लेना, काम करवाने की ऐवज में रिश्वतखोरी करना, मुहं से कहना कुछ और तथा करना कुछ और ये सब मायाचारी में आते हैं। इनको छोड़ने पर ही व्यक्ति के गुण प्रकट होते हैं। सरलता ही मनुष्य का वास्तविक स्वभाव है|

जैन संत मुनि पूज्यसागर महाराज कहते हैं कि मन, वचन और कार्य से सात्विक व्यक्ति के आचारण को आर्जव धर्म माना है। जब मनुष्य का मन, वचन और काय किसी एक कार्य में लग जाय तो समझ लेना चाहिए कि उसके जीवन में आर्जव धर्म का प्रवेश हो गया है।

जब व्यक्ति मन, वचन और काय को शुभ कार्य में लगाता है तो सुख, शांति और समृद्धि का अनुभव करता है, वहीं जब अशुभ कार्य में मन लगाता है तो दुख, क्लेश का अनुभव करता हुआ मानसिक संतुलन खो बैठता है। इससे भी कहीं अधिक जब शुभ-अशुभ कार्य को छोड़ स्वयं में स्थिर हो जाता है तो वह परमात्मा बन जाता है। आर्जव धर्म के अभाव में वर्तमान में जीने वाला व्यक्ति ही आर्जव धर्म को स्पर्श कर सकता है।

जैन आचार्य सुनीलसागर जी महाराज अपने प्रवचनों में कहते हैं कि जब कपट, मायाचारी जाती है तो आर्जव धर्म आता है, निर्मलता, पवित्रता, आती है। छल-कपट करने वाले लोगों की बहुत बुरी दशा होती है। छल-कपट जो करते हैं, मायाचारी जो करते हैं, वो हमेशा शंकित रहते हैं।

हमारा छल किसी को मालूम ना पड़ जाए, बेईमानी किसी को मालूम न पड़ जाए, हमारा षडयंत्र लोगों को मालूम न पड़ जाए, ये शंका हमेशा उनको रहती है। छलकपट की उम्र बहुत नहीं होती और जितनी भी होती है वो व्यक्ति में बेचैनी बनाए रखती है|

दुकानदार छल-कपट करता है तो लेते समय, रखते समय उसको एक शंका तो रहती है एक भय तो रहता ही है, अगर किसी को मालूम पड़ गया तो क्या होगा। खूब छल-कपट होता है दुनिया में। आजकल तो नेता-अभिनेता, घर-परिवार सब जगह छलकपट होने लगा है। यहां तक डॉक्टर और वैद्य भी छलकपट करने लगे हैं|

‘मार्दव द्वार है दीवार नहीं, मार्दव समर्पण है हार नहीं’

मायाचारी, छलकपट, बेईमानी समाज में बहुत चल रही है। ऐसे लोगों की समाज में कीमत कुछ नहीं होती। आपको मालूम पड़ गया कि वह व्यक्ति बेईमानी करता है। ज्यादा पैसा लेता है और कम सामान देता है, अब उसकी दुकान पर जाना बंद कर देंगे।

मालूम पड़ गया कि नौकर है वह बेईमानी करता है, जब हम दुकान पर नहीं रहते हैं तब भी लोगों को माल बेचता है, पैसा अपनी जेब में रखता है। आप को उसका कपट मालुम पड गया तो उसको नहीं रखोगे। जब उसकी मायाचारी, छलकपट, बेईमानी मालूम पड़ती हैं तो सब उससे दूर रहते हैं।

कपट करने वाले का उसके सगे मां-बाप भी विश्वास नहीं करते हैं। ये बेईमानी करता है, हमको कुछ बोलता है, उसको कुछ बोलता है और कुछ करता है। और उससे विश्वास खत्म हो जाता है। इस व्यक्ति को कुछ काम नहीं बताना वह स्थिर नहीं है। उसमें सरलता नहीं हैं। इसलिए छलकपट नहीं करना। कपट करने से परिवार टूट जाते हैं। कोई कहेगा कि सरलता से क्या होता है।

सरल व्यक्ति की तो कोई कीमत नहीं होती, किन्तु ऐसा नहीं है। सरल व्यक्ति की बहुत कीमत होती है। उसकी कीमत परमात्मा की दृष्टी में होती है। सरल व्यक्ति हैं आप, आपकी कीमत दूसरा करे या ना करे लेकिन अपने अंतरंग में शांति आती है कि मैंने कोई छलकपट तो नहीं किया, मैंने किसी से बेईमानी तो नहीं की|

अन्तर्मना उवाच

माया, मायाचारी कई रूप से हो सकती है। धर्म, पैसे के रूप में, दुकान, मकान के रूप में और किसी भी भ्रम के रूप में माया हो सकती है। माया से जो ठगा जाता है वह कहीं का भी नहीं रहता। मायाचारी वाला व्यक्ति बेटा, भाई माँ-बाप कुछ भी नहीं गिनता है। आप देखो शकुनी की नीति। मामा शकुनी महाभारत में था।

कितना छलकपट करता था, कितनी बेईमानी करता था। अपनी कपट नीति के कारण दुर्योधन अपने कौरव वंश का भी भला नहीं कर पाया। मैं जैसे कहता हूँ वैसे ही करो और उसकी शिक्षा में आकर आगे जाकर सब कपटी बन गये। अंत में उन कपटियों को जाकर पानी देने वाला भी नहीं मिला। मुंह में पानी डालने वाला भी उनको कोई नहीं मिला।

क्षमा फूल है कांटा नहीं, क्षमा प्यार है चांटा नहीं : उत्तम क्षमा

जो धर्म के पैसे लेकर छलकपट करता है तो साल दो साल में ही उसका सब खत्म हो जाता है। ऐसा व्यक्ति अंधा, लूला-लंगड़ा होता है। जो समाज का पैसा इकट्ठा कर उसका दुरुपयोग करता है उसका पैसा भी कहीं ना कहीं निकल जाता है|

आप भी किसी से कपट नहीं करना और कोई आपके साथ कपट करे तो उसको करने दो। सामने वाले का कपट उसको ही खा जायेगा। शांति रखना, सहजता रखना। सरलता में ही सुख है। स्वयं में मार्दव धर्म को प्रकट होने दें।

डॉ. महेन्द्र कुमार जैन मनुज‘, इन्दौर, 9826091247