एक लम्बे अरसे का इन्तजार आखिरकार खत्म हो गया ।
फ्रांस से 7 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर वायुसेना का ‘बाहुबली पांच राफेल विमानों का पहला बेड़ा बुधवार को अपरान्ह लगभग तीन बजे हिंद की सरजमीं, हरियाणा के अंबाला एयरबेस पर सकुशल उतर गया। भारतीय वायुसेना में 29 जुलाई की तारीख को सुनहरे अक्षरों से लिखा जाएगा, जब इसके बेड़े में आने के बाद ताकत कई गुणा बढ़ गई है।
अमेरिका-चीन में बढ़ी खटास
भारत और चीन के बीच तनातनी के दौर में राफेल लड़ाकू विमान का मिलना काफी मायने रखता है। वैसे पिछले साल बालाकोट की घटना के समय ही राफेल की कमी महसूस की गई थी, लेकिन लद्दाख में चीन के साथ उलझाव की स्थिति में अब इसकी महत्ता बढ़ गई है। जब पाकिस्तान स्थित बालाकोट में आतंकी ठिकानों पर भारतीय वायुसेना ने कार्रवाई की थी, तब अगर उस समय राफेल होता तो वहां ज्यादा नुकसान होता।
यही नहीं, बाद में जब पाकिस्तानी वायु सेना ने जवाबी कार्रवाई की, तब भी इसकी कमी खली थी। बहरहाल, अब जब राफेल भारतीय वायु सेना में शामिल हो गया। इन्हें भारतीय वायुसेना में इसके ‘17वें स्क्वैड्रन’ के हिस्से के रूप में शामिल किया जाएगा, जिसे अंबाला एयर बेस पर ‘गोल्डन एरो’ के रूप में भी जाना जाता है।
राफेल चौथी–पांचवीं पीढ़ी के बीच का एक ‘बहु–उद्देशीय’ युद्धक विमान है, जो एक साथ कई भूमिकाओं का निर्वाह करने में सक्षम होगा।
चीन की गंदी मानसिकता
यह ‘मेटयोर’, ‘स्कैल्प’ जैसी ‘मिसाइलों’ से लैस होगा, जो हवा के साथ–साथ जमीन पर भी मार करने में सक्षम होंगी। पाकिस्तान और चीन के साथ जिस तरह की आज सीमा पर स्थिति बनी है उसके मद्देनजर राफेल को काफी अहम माना जा रहा है।
दुश्मन की नींद उड़ाने वाले अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों के वायुसेना बेड़े में शामिल होने से न सिर्फ भारतीय वायुसेना की ताकत बढ़ेगी बल्कि चीन और पाकिस्तान के लिए इसका एक अलग संदेश है। राफेल हवा में सिर्फ 28 किमी प्रति घंटा की बहुत धीमी रफ्तार से उडऩे के साथ–साथ 1,915 किमी/घंटे की तेज रफ्तार भी पकड़ सकता है।
ये न सिर्फ हवा से हवा को मार सकता है, बल्कि हवा से जमीन में भी हमला करने में सक्षम है। ये न सिर्फ फुर्तीला है, बल्कि इससे परमाणु हमला भी किया जा सकता है। पाकिस्तान के सबसे ताकतवर फाइटर जेट एफ-16 और चीन के जे-20 में ये खूबी नहीं है।