
उत्तर प्रदेश की राजनीति में शनिवार का दिन उस समय गरमा गया जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय को लखनऊ के आलमबाग स्थित उनके आवास पर पुलिस ने नजरबंद कर दिया। यह कार्रवाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी दौरे से पहले हुई है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने पहले ही साफ कर दिया था कि वह पीएम मोदी के इस दौरे का विरोध करेंगे। लिहाज़ा, प्रशासन ने किसी भी तरह की राजनीतिक गर्माहट और संभावित प्रदर्शन को रोकने के लिए यह कदम उठाया।
कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री मोदी के वाराणसी दौरे को लेकर ऐतराज जताया गया था। अजय राय ने कहा था कि केंद्र सरकार और बीजेपी विकास की आड़ में वाराणसी की जनता से छल कर रही है। उन्होंने ऐलान किया था कि कांग्रेस कार्यकर्ता सड़क पर उतरकर विरोध दर्ज कराएंगे। इस घोषणा के कुछ घंटे बाद ही पीजीआई पुलिस ने उनके आवास को घेर लिया और उन्हें घर से बाहर निकलने से रोक दिया। पुलिस ने इसे “नजरबंदी” करार दिया, ताकि राजधानी से वाराणसी तक विरोध की चिंगारी न फैल सके।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वाराणसी दौरा राजनीतिक दृष्टि से बेहद अहम माना जा रहा है। काशी उनकी संसदीय सीट है और 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले केंद्र और प्रदेश की बीजेपी सरकार लगातार वहां विकास कार्यों को रफ्तार देने की कोशिश कर रही है। पीएम मोदी का यह दौरा योजनाओं का लोकार्पण, नई परियोजनाओं का शिलान्यास और स्थानीय जनता से सीधा संवाद जैसे कार्यक्रमों से जुड़ा हुआ है। कांग्रेस का आरोप है कि यह विकास कार्य सिर्फ दिखावे के लिए हैं और जनता को वास्तविक लाभ नहीं मिल रहा।
अजय राय, जो खुद काशी से कई बार चुनाव लड़ चुके हैं, वाराणसी की राजनीति से गहराई से जुड़े हैं। वह बीजेपी और पीएम मोदी पर लगातार हमलावर रहते हैं। उन्होंने बयान दिया था—“प्रधानमंत्री मोदी हर दौरे में करोड़ों-करोड़ों की योजनाओं का शिलान्यास करते हैं, लेकिन काशी की गलियों और गंगा की स्थिति जस की तस बनी हुई है। असल विकास जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता। यही सच हम जनता के सामने लाना चाहते हैं।” कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता का कहना है कि अजय राय की नजरबंदी सरकार की लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
प्रशासन ने इसे कानून-व्यवस्था से जोड़ते हुए स्पष्ट किया कि पीएम मोदी का दौरा “राष्ट्रीय सुरक्षा” का मामला है और किसी भी तरह की अव्यवस्था या प्रदर्शन को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि खुफिया एजेंसियों ने पहले ही संकेत दे दिए थे कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल वाराणसी में मोदी विरोधी प्रदर्शन कर सकते हैं। इसी वजह से लखनऊ से लेकर काशी तक कड़े सुरक्षा इंतज़ाम किए गए हैं।
यह घटना सिर्फ कांग्रेस बनाम बीजेपी की टकराहट भर नहीं है, बल्कि यूपी की बदलती सियासी फिज़ा का संकेत भी देती है। एक ओर बीजेपी अपने गढ़ काशी में लगातार जनता का समर्थन मजबूत करने की कोशिश कर रही है, वहीं कांग्रेस जैसे विपक्षी दल यह संदेश देना चाहते हैं कि जनता की असली समस्याएं—रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य और गंगा की सफाई—अब भी अधूरी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अजय राय की नजरबंदी कांग्रेस को “राजनीतिक सहानुभूति” दिला सकती है। जनता तक यह संदेश जा सकता है कि सरकार आलोचना से डरती है।
अजय राय की नजरबंदी की खबर फैलते ही सोशल मीडिया पर इस पर जमकर बहस छिड़ गई। कांग्रेस समर्थकों ने इसे लोकतंत्र पर हमला करार दिया, जबकि बीजेपी समर्थकों ने इसे “कानून व्यवस्था बनाए रखने की मजबूरी” बताया। ट्विटर (अब एक्स) और फेसबुक पर #AjayRai, #UPCongress, #PMModi जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, इस घटना के दो बड़े असर हो सकते हैं। पहला, कांग्रेस को राजनीतिक लाभ मिल सकता है, बशर्ते पार्टी इसे बड़े अभियान का रूप दे और विपक्षी एकजुटता को बल मिले। दूसरा, बीजेपी अब और अधिक सतर्कता बरतेगी और पीएम मोदी के दौरों और कार्यक्रमों में सख्ती और बढ़ेगी।
यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या सरकार को विरोध की आवाज़ को दबाने के बजाय उसका सामना करना चाहिए? लोकतंत्र में विरोध का अधिकार मूलभूत है, लेकिन प्रशासन का तर्क है कि सुरक्षा सर्वोपरि है। इस टकराव ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि क्या विरोध जताना अब सियासी पार्टियों के लिए आसान रह गया है या नहीं।
अजय राय की नजरबंदी महज़ एक प्रशासनिक कदम नहीं, बल्कि एक सियासी संदेश है। कांग्रेस इसे अपनी आवाज़ दबाने की कोशिश बता रही है, जबकि बीजेपी और प्रशासन इसे सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखने का हिस्सा बता रहे हैं। लेकिन इतना तय है कि इस घटना ने पीएम मोदी के काशी दौरे से पहले सियासी हलचल को और ज्यादा बढ़ा दिया है।