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अन्नदाता की 'आजादी'- Amar Bharti Media Group सम्पादकीय

अन्नदाता की ‘आजादी’

किसान कल्याण से जुड़े तीन विधेयक कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) 2020, कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक राज्यसभा से भी पारित हो  गया । तीनों विधेयक अब उन अध्यादेशों की जगह लेंगे, जिन्हें सरकार लॉकडाउन के दौरान लाई थी।

सरकार का सोचना है कि तीनों विधेयक मिलकर किसानों के जीवनस्तर में क्रांतिकारी बदलाव लाएंगे और इससे किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य पूरा करने में आसानी होगी। हालांकि गैर-एनडीए दलों और पंजाब-हरियाणा जैसे प्रमुख अनाज उत्पादक प्रदेशों में सरकार की इस सोच को शंका से देखा जा रहा है।

तकनीकी शब्दावली से इतर आसान भाषा में समझकर देखते हैं कि इन विधेयकों को लेकर सरकार के दावे और विरोधियों की शंकाएं केवल समझ का फेर है या फिर यह वाकई खेती-किसानी की जमीनी हकीकत है।

सरकार दावा कर रही है कि अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा यानी वो मंडियों और बिचौलियों के जाल से निकलकर अपनी फसल को अपनी पसंद के व्यापारियों या कंपनियों को बेच सकेगा। इस खरीद-बिक्री पर किसानों को अब मंडियों में कोई शुल्क भी नहीं देना होगा।

नए जमाने की जरूरत को देखते हुए आलू-प्याज, अनाज, दलहन को आवश्यक वस्तु के 65 साल पुराने अधिनियम से मुक्त कर दिया गया है। इससे किसानों को सरकारी दखल से मुक्ति मिलेगी और विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलने से कोल्ड-स्टोरेज सुविधाओं का विस्तार और देशव्यापी बाजार का रास्ता खुल सकेगा।

पहले से तय मूल्य पर उपज की बिक्री होने से किसानों को बिचौलिए के जाल से छुटकारा और आखिरकार खेतों में बहे अपने पसीने के वाजिब दाम मिल सकेंगे। कानून बनने पर यह विधेयक उन छोटे किसानों के लिए बहुत बड़ी राहत बन सकते हैं, जिन्हें छोटी जोत होने की वजह से बड़े निवेशक नहीं मिलते।

देश के कुल किसानों में से 86 फीसद लघु और सीमांत किसान हैं। नए विधेयक की राह आसान होने से इन किसानों तक पहुंचने वाले निजी निवेश की राह भी आसान हो जाएगी। केवल यही एक आंकड़ा यह समझने के लिए काफी है कि कृषि क्षेत्र में इन नए विधेयकों का कितना बड़ा सकारात्मक असर दिखाई देने वाला है।

आम तौर पर छोटे किसानों की उपज इतनी कम होती है कि उसे मंडियों तक ले जाना फायदे का सौदा नहीं होता। बिचौलिए इस मजबूरी का फायदा उठाकर दशकों से छोटे किसानों का शोषण करते आए हैं, लेकिन नई व्यवस्था आने से अब निजी कंपनियां छोटे किसानों के खलिहानों तक पहुंच सकेंगी।

इससे उत्पादन से निर्यात तक के रास्ते आसान हो सकेंगे और छोटे किसानों को शोषण की जगह अपने परिवारों का उचित ‘पोषण’ करने का सपना सच हो सकेगा। विपक्ष को लगता है कि नए बदलाव की आड़ लेकर सरकार एमएसपी की व्यवस्था खत्म कर देगी।

जबकि हकीकत कुछ और है। सरकार ने साफ किया है कि वो सरकारी खरीद की व्यवस्था खत्म नहीं कर रही है बल्कि फसल बेचने के लिए किसानों को बेहतर विकल्प दे रही है।