नई दिल्ली। सन् 1870-80 के दशक में ब्रिटिश शासकों ने सरकारी समारोहों में ‘गॉड! सेव द क्वीन’ गीत गाया जाना अनिवार्य कर दिया था। अंग्रेजों के इस आदेश से बंकिमचन्द्र चटर्जी को, जो उन दिनों एक सरकारी अधिकारी (डिप्टी कलेक्टर) थे, बहुत ठेस पहुंची और उन्होंने संभवत: 1876 में इसके विकल्प के तौर पर संस्कृत और बांग्ला के मिश्रण से एक नये गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया- ‘वन्दे मातरम्’।
जनता को जगाने के लिए रचा था राष्ट्र गीत
शुरुआत में इसके केवल दो ही पद रचे गये थे जो संस्कृत में थे। इन दोनों पदों में केवल मातृभूमि की वंदना थी। उन्होंने 1882 में जब आनन्द मठ नामक बांग्ला उपन्यास लिखा तब मातृभूमि के प्रेम से ओत-प्रोत इस गीत को भी उसमें शामिल कर लिया। यह उपन्यास अंग्रेजी शासन, जमींदारों के शोषण व प्राकृतिक प्रकोप (अकाल) में मर रही जनता को जागृत करने हेतु अचानक उठ खड़े हुए सन्यासी विद्रोह पर आधारित था। इस तथ्यात्मक इतिहास का उल्लेख बंकिम बाबू ने ‘आनन्द मठ’ के तीसरे संस्करण में स्वयं ही कर दिया था।
मजे की बात यह है कि सारे तथ्य भी उन्होंने अंग्रेजी विद्वानों-ग्लेग व हण्टर की पुस्तकों से दिये थे। उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम का एक सन्यासी गाता है। गीत का मुखड़ा विशुद्ध संस्कृत में इस प्रकार है: “वन्दे मातरम्! सुजलां सुफलां मलयज शीतलाम्, शस्यश्यामलाम् मातरम्।”
मुखड़े के बाद वाला पद भी संस्कृत में ही है: “शुभ्र ज्योत्सना पुलकित यामिनीम्, फुल्ल कुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्; सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्, सुखदां वरदां मातरम्।”
उपन्यास में इस गीत के आगे जो पद लिखे गये थे वे उपन्यास की मूल भाषा अर्थात् बांग्ला में ही थे। बाद वाले इन सभी पदों में मातृभूमि की दुर्गा के रूप में स्तुति की गई है। यह गीत रविवार, कार्तिक सुदी नवमी, शके 1797 (7 नवंबर 1875) को पूरा हुआ। आज के ही दिन बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय की मृत्यु हुई थी।