मानव तेरे शरीर की रचना के अनुरूप तू कर आहार,
शाकाहार के लिए बनी है करता क्यूँ तू माँसाहार..!
जैसा भोजन वैसा हो मन ज्ञानी की बातों का सार,
शुद्ध सात्विक भोजन से ही होते शुद्ध सब मनोविकार..!
चण्डकोशी के विष के बदले वीर ने बहाई दूध की धार,
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क्षुधापूर्ति की खातिर अब तो पशुओं पर चलती है कटार..!
शाकाहार में भरे पड़े हैं पोषक तत्वों के भंडार,
शाकाहारी बनकर देख फिर तेरी सेहत की धार..!
माँसाहार से ही पनपते मन में तेरे हिंसक विचार,
शाकाहार से ही है फलते मैत्री भरे तेरे व्यवहार..!
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आर्य संस्कृति ने ही दिए थे शाकाहार के हमें संस्कार,
भारत देश में होता अब तो माँस का ही खुला व्यापार..!
जन-जन में आओ फैलाएं शाकाहार का हम प्रचार,
शाकाहार अपना कर रोकें पशुओं पर हम अत्याचार..!
– जैन राजेंद्र गुलेच्छा… [बेंगलुरु] ✍