युवा महोत्सव के मंचीय कार्यक्रमों के उद्घाटन के साथ प्रथम दिवस में कवियों-शायरों की सजी महफ़िल

हरदोई। भूरज सेवा संस्थान के तत्वाधान में युवा खादी महोत्सव के प्रथम दिवस पर भव्य कवि सम्मेलन और मुशायरे का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि अनिल कुमार सिंह, वित्त एवं लेखाधिकारी, तथा विशिष्ट अतिथि समाजसेवी भरत पांडेय ने दीप प्रज्ज्वलित कर एवं माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर किया। सभी कवियों और शायरों का स्वागत आयोजकों व अतिथियों द्वारा पटका पहनाकर और माल्यार्पण कर किया गया, साथ ही उन्हें स्मृति चिन्ह भेंट किए गए।

कवि सम्मेलन की शुरुआत कवयित्री अक्षरा मिश्रा ‘गंगा’ की वाणी वंदना से हुई। डॉ. नाजमीन कुरैशी ने अपनी कविता “ये ज़िंदगी अब मेरे हुनर की रवानी…” से श्रोताओं को भावविभोर किया। आकांक्षा गुप्ता ने श्रृंगार रस की कविता “यदि प्रतीक्षा समर्पण है शबरी सा…” प्रस्तुत कर वाहवाही लूटी। कार्यक्रम संयोजक वैभव शुक्ला ने “पापों का परिणाम भुगतना पड़ता है…” मुक्तक से सामाजिक चेतना जगाई, जबकि आकाश सोमवंशी ने “उम्र भर साथ तुमने दिया क्यों नहीं…” जैसे मुक्तकों से शमा बांध दी।

संडीला के शायर दावर रज़ा ने ग़ज़ल “तेल सारा अगर जल गया तो लहू देकर रौशन करो…” से तालियों की गड़गड़ाहट बटोरी। आदेश तिवारी ने “मिट्टी से घड़ा बनने में कुछ वक्त लगेगा…” जैसी गीतात्मक कविता से उत्सव का सौंदर्य बढ़ाया। गीतेश दीक्षित के शेर “किसी की पीठ को सीढ़ी बना चढ़ना नहीं आया…” ने नई चेतना जगाई। शायरा आकांक्षा त्रिपाठी ने “इश्क़ नदियों से बेशुमार थोड़ी करते हैं…” ग़ज़ल पढ़ी, जबकि एडवोकेट सईद अख़्तर की पंक्तियाँ “तेरी जात ने बना दी मेरी ज़िंदगी फसाना…” और असगर बिलग्रामी के शेर “हज़ार बार ये सोचा कि ज़िंदगी क्या है…” पर श्रोता झूम उठे।

कार्यक्रम का संचालन आलम रब्बानी ने किया, जिन्होंने अपनी कविता “हिंदी है मेरा नाम, मैं भारत की ज़बां हूँ…” से सभागार में देशभक्ति का जोश भर दिया। अंत में भूरज सेवा संस्थान के मंत्री अशोक उपाध्याय ने सभी कवियों और सहयोगियों का आभार जताया। कार्यक्रम में राम अवस्थी, सुनील त्रिवेदी, सुमित श्रीवास्तव, भानु, अंशु गुप्ता, स्मृति मिश्रा, प्रिया सिंह और मनीष कुमार सहित आयोजक मंडल के सदस्य मौजूद रहे।