- जब पालघर में एक संन्यासी को पुलिस के सामने पीट-पीटकर मार दिया जाता है और पुलिस खामोश रहती है तो कहना पड़ता है कि अंधेरा कायम है।
- जब सुशांत सिंह मामले में निष्पक्ष जांच नहीं होती तो कहना पड़ता है कि अंधेरा कायम है।
- जब एक अभिनेत्री का घर गुंडागर्दी दिखाते हुए ध्वस्त कर दिया जाता है तब लिखना पड़ता है कि अंधेरा कायम है।
- जब संजय राऊत जैसा नेता एक अभिनेत्री को सरेआम गाली देता है तब महसूस होता है कि अंधेरा कायम है।
- जब एक सैनिक को शिवसैनिक सरेआम पीटते हैं और पुलिस आरोपियों को छोड़ देती है तब लगता है कि अंधेरा कायम है।
जी हां! अंधेरा कायम है। यूं कहें कि घुप्प अंधेरा है। सुबह के 6: 00 बजे हैं। रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्नब गोस्वामी के घर को मुंबई पुलिस घेर लेती है। ऐसा लगता है कि इस घर के अंदर कोई आतंकी छिपा है जिसे पकडऩे का मौका मुंबई पुलिस हाथ से जाने नहीं देना चाहती।
हथियार से लैस मुंबई पुलिस के जवान देश के नामी संपादक के साथ धक्का-मुक्की करते हैं और एक आतंकी जैसा व्यवहार करते हुए पुलिस वैन में ठूंस देते हैं। देश भर में तस्वीरें सोशल मीडिया पर तैरने लगती हैं।
ट्विटर से लेकर फेसबुक तक पर अर्नब के समर्थन में लाखों हाथ उठते हैं। लेकिन इन सबके बीच अर्नव गोस्वामी अपने हाथों पर चोट का निशान दिखाते हुए कहते हैं कि मुंबई पुलिस ने उनसे मारपीट की है।
देश जानना चाहता था कि आखिर उन्होंने ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया जिसके चलते सुबह 6:00 बजे मुंबई पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने पहुंच गई। दरअसल यही वह सवाल है जिससे महाराष्ट्र की उद्धव सरकार,मुंबई पुलिस और उनके बदले की राजनीति का काला चिट्ठा देश के सामने आ जाता है।
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पालघर से लेकर सुशांत सिंह आत्महत्या प्रकरण तक अर्नब की रिपोर्टिंग से महाराष्ट्र सरकार परेशान थी। कंगना को लेकर रिपब्लिक की मीडिया रिपोर्ट से संजय राउत को आपा खोते हुए पूरे देश ने देखा था। इसी बीच रिपब्लिक टीवी की बढ़ती लोकप्रियता और नंबर वन की कुर्सी पर उसका काबिज होना महाराष्ट्र भी उद्धव सरकार को खल गया।
मुंबई पुलिस ने टीआरपी को लेकर अर्नब को घेरने की पुरजोर कोशिश की। यही नहीं अर्नब के प्रतिद्वंदी समाचार चैनलों ने भी अर्नब को बदनाम करने की खबरें चलाई। एक चैनल को मुंबई पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह का पीआर तक करते देखा गया।
मगर अंतत: हुआ यह कि अर्नव को फंसाने की मुंबई पुलिस की कोशिश फेल हो गई। टीआरपी को लेकर मुंबई पुलिस की कार्रवाई एक तरफा, हास्यास्पद और बदले से भरी हुई थी। बुरी तरह औंधे मुंह गिरी मुंबई पुलिस अर्नब से बदला हर हाल में लेना चाहती थी। इसलिए 2018 के एक बंद मामले को खोला गया। इसी मामले में अर्नब की गिरफ्तारी हुई।
मगर यहां भी मुंबई पुलिस ने नियमों, कानूनों और नैतिकता को ताक पर रख दिया। इस मामले को खोलने से पहले ना तो कोर्ट की अनुमति ली गई और ना ही तय मानकों का अनुपालन किया गया। जाहिर है बदले की भावना ने महाराष्ट्र की सरकार और मुंबई पुलिस को धृतराष्ट्र बना दिया।
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जहां तक अर्नव को लेकर महाराष्ट्र सरकार के आक्रोश का सवाल है देशवासी कह रहे हैं कि अंधेरा कायम है। जब पालघर में एक सन्यासी को पुलिस के सामने पीट-पीटकर मार दिया जाता है और पुलिस खामोश रहती है तो कहना पड़ता है अंधेरा कायम है।
जब सुशांत सिंह मामले में निष्पक्ष जांच नहीं होती तो कहना पड़ता है कि अंधेरा कायम है। जब एक अभिनेत्री का घर गुंडागर्दी दिखाते हुए ध्वस्त कर दिया जाता है तब लिखना पड़ता है कि अंधेरा कायम है। जब संजय राऊत जैसा नेता एक अभिनेत्री को सरेआम गाली देता है तब महसूस होता है कि अंधेरा कायम है।
जब एक सैनिक को शिवसैनिक सरेआम पीटते हैं और पुलिस आरोपियों को छोड़ देती है तब लगता है कि अंधेरा कायम है। जब कानून व्यवस्था से लोगों का भरोसा उठ जाता है तो अंधेरे का ही राज होता है। फिलहाल महाराष्ट्र में अंधेरा कायम है।