
कुशीनगर। जनपद के कप्तानगंज स्थित गंगा बक्श कनोडिया इंटर कालेज में तदर्थ सहायक अध्यापक देवेंद्र कुमार पाण्डेय की फर्जी बीएड डिग्री के चलते वर्ष 2020 में उन्हें बर्खास्त किया गया था, लेकिन वे अब भी सरकारी नौकरी में रहकर योगी सरकार को खुली चुनौती दे रहे हैं।
बतादें कि देवेंद्र पाण्डेय की गोरखपुर विश्वविद्यालय से वर्ष 1992 में जारी बीएड डिग्री फर्जी पाई गई थी, जबकि भारतीय शिक्षा परिषद, लखनऊ से वर्ष 1994 की बीएड डिग्री भी अमान्य थी। यूजीसी की वेबसाइट पर भारतीय शिक्षा परिषद लखनऊ का नाम शामिल नहीं है, इसलिए यह डिग्री मान्य नहीं मानी जाती।
साल 2018 में उनके विनियमितकरण से जुड़ी पत्रावली में मण्डलीय समिति ने उनकी गोरखपुर विश्वविद्यालय की डिग्री को फर्जी और भारतीय शिक्षा परिषद की डिग्री को अमान्य घोषित किया था। इसके बावजूद देवेंद्र पाण्डेय ने अपनी बहाली के लिए तथ्य गोपन और कूटरचित अभिलेखों का सहारा लिया।
वर्ष 2020 में जिलाधिकारी की अध्यक्षता वाली जांच टीम ने देवेंद्र पाण्डेय के फर्जीवाड़े का खुलासा किया और तत्कालीन डीआईओएस ने उनके वेतन को रोकते हुए मुकदमा दर्ज कराने के निर्देश दिए। लेकिन विद्यालय प्रबंधक ने मुकदमा दर्ज नहीं कराया। बाद में देवेंद्र पाण्डेय ने न्यायालय का सहारा लेकर कूटरचित दस्तावेज और मोटी रकम देकर अपनी बहाली करवा ली।
सप्तम मण्डल गोरखपुर के संयुक्त शिक्षा निदेशक की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया कि देवेंद्र पाण्डेय ने अपनी बीएड डिग्री को सही साबित करने में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया। इसके बावजूद वे अब भी सरकारी नौकरी में तैनात हैं।
विशेषज्ञों और सूत्रों का कहना है कि इस प्रकरण में देवेंद्र पाण्डेय द्वारा फर्जी डिग्री और कूटरचित अभिलेखों का इस्तेमाल सरकार और प्रशासन के सामने चुनौती पेश करने के समान है। सवाल यह उठता है कि जब उनकी डिग्री फर्जी पाई गई थी और उन्हें बर्खास्त किया गया, तो उनके पुनर्नियुक्ति की प्रक्रिया कैसे संभव हुई। योगी सरकार जहां भ्रष्टाचार और अपराध के मामले में शून्य सहनशीलता का दावा करती है, वहीं यह मामला उसके दावे पर सवालिया निशान खड़ा करता है।