मिर्जापुर के पहले सीजन की कहानी के अंत में कई परिवार उजड़ चुके थे. लेकिन सबसे ज्यादा जख्मी थे गुड्डू पंडित (अली फजल). मुन्ना त्रिपाठी (दिव्येंदु शर्मा) ने गुड्डू की बीवी, बच्चे और भाई की हत्या कर दी. इस गोलीकांड में अगर बचे तो सिर्फ गुड्डू पंडित, उनकी बहन डिंपी और बबलू की गर्लफ्रेंड गोलू.
पहला सीजन खत्म होने के बाद दर्शक इस बारे में तो आश्वस्त थे कि दूसरा सीजन गुड्डू पंडित के बदले की कहानी होगा. हालांकि मेकर्स के लिए बड़ी चुनौती ये थी कि जिस चीज के बारे में दर्शक पहले से ही काफी कुछ अंदाजा करके बैठे हैं उससे इतर उन्हें कुछ नया परोसा जाए.
कहना होगा कि मेकर्स दर्शकों को सैटिस्फाइड करने में कामयाब रहे हैं. तो चलिए जानते हैं कि कहानी से लेकर बैकग्राउंड म्यूजिक तक और एक्टिंग से लेकर डायरेक्शन तक मिर्जापुर 2 में किन चीजों को पहले से कहीं बेहतर रखा गया है और कहां पर ये सीजन थोड़ा कमजोर पड़ता है.
कहानी-
मिर्जापुर के दूसरे सीजन में गुड्डू पंडित उस जख्मी शेर की तरह हैं जो इंतकाम की आग में जल रहा है. इसी तरह गोलू को भी अपना बदला चाहिए. हालांकि दोनों के परिवारों ने किसी न किसी को खोया है और अब वो चाहते हैं कि उनके बच्चे वापस लौट आएं. लेकिन गुड्डू पंडित को अब बदला और मिर्जापुर की गद्दी दोनों चाहिए.
उधर मुन्ना त्रिपाठी रतिशंकर शुक्ला के बेटे शरद के साथ हाथ मिला लेते हैं. अब शरद को अपने पिता का बदला गुड्डू से चाहिए और मुन्ना अपना अधूरा काम पूरा करना चाहते हैं. इस बीच अखंडा अपने धंधे को बेहतर करने के लिए यूपी सीएम के साथ साठ-गांठ कर लेते हैं और उन्हें चुनावी फायदा देने के बहाने उनके करीब आ जाते हैं. रैलियों में मुन्ना सीएम की बेटी से करीबियां बढ़ा लेते हैं जिसका फायदा लेते हुए अखंडा मुन्ना की शादी सीएम की विधवा बेटी से कर देते हैं जो बाद में खुद सीएम बन जाती है.
जौनपुर और मिर्जापुर के अलावा इस बार बिहार के भी एक गैंग को कहानी में शामिल किया गया है जिसकी मदद गुड्डू और अखंडा दोनों ही अपना धंधा बढ़ाने के लिए करना चाहते हैं. दद्दा त्यागी के किरदार में लिलिपुट फारुकी और उनके बेटों के किरदार में विजय शर्मा का डबल रोल कहानी में काफी नयापन लाता है. हालांकि उन्हें मुख्य कहानी से थोड़ा अलग ही धारा में चलाने की कोशिश की गई है.
इधर मुन्ना सीएम के पति बन गए हैं और उधर गुड्डू लाला के साथ हाथ मिलाकर अफीम का व्यापार शुरू कर देते हैं. अब मुन्ना, शरद और गुड्डू तीनों को ही मिर्जापुर की गद्दी चाहिए लेकिन इसके लिए उन्हें सही मौके का इंतजार है. ये मौका तीनों को एक साथ मिलता भी है लेकिन ये मौका कैसे मिलता है और इनमें से कौन इस मौके को भुना पाता है यही सीरीज की कहानी है.
क्या रहा हल्का?
पहले सीजन से तुलना करने पर आपको लग सकता है कि इस सीजन का क्लाइमैक्स थोड़ा हल्का है लेकिन फिर भी कहानी जिस मोड़ पर आपको इस सीजन में छोड़ती है वो आपको अगली कहानी का इंतजार करने को विवश करता है. जबरदस्त फाइट सीक्वेंस और बीच-बीच में आने वाले जोक्स कहानी में आपका रुझान बनाए रखते हैं लेकिन कहना होगा कि इस बार का सीजन पिछले से थोड़ा ज्यादा बड़ा है.
डायरेक्शन और एक्टिंग
एक्टिंग और डायरेक्शन के मामले में मिर्जापुर-2 को पूरे मार्क्स दिए जा सकते हैं. अली फजल पहले से ज्यादा पावरफुल लगे हैं. दिव्येंदु अपने पुराने भौकाली अंदाज में हैं. पंकज त्रिपाठी का किरदार इस बार पहले से थोड़ा कम दिखेगा लेकिन नए किरदार कहानी में उनकी कमी को पूरा करते नजर आते हैं. बैकग्राउंड और थीम म्यूजिक पहले की ही तरह पावरफुल है.
क्या है इस बार के निगेटिव पॉइंट?
इस सीजन में हर एपिसोड करीब एक घंटे का है और कुल 10 एपिसोड हैं तो संभव है कि कुछ लोगों को ये थोड़ा ज्यादा लंबा लगे. हालांकि कहानी को इस तरह से बुना गया है कि आपका रुझान इसमें बना रहता है. सीरीज में गाली गलौज, न्यूडिडी और वॉयलंस पहले से ज्यादा रखा गया है. तो अगर आप इस तरह का कंटेंट देखना पसंद नहीं करते हैं तो आप इसे अवॉइड कर सकते हैं.