चाणक्य की चाणक्य नीति कहती है कि व्यक्ति को जीवन में सफल होना है तो लालच नहीं करना चाहिए. लालची व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए अनैतिक कार्यों को भी करने से नहीं चूकता है. इसलिए लोभ की स्थिति को कभी भी स्वयं पर हावी नहीं होने देना चाहिए.
गीता में भगवान श्रीकृष्ण भी इस आदत से दूर रहने की सलाह देते हैं. भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं तृष्णा से मुक्त सदैव उच्च आर्दशों को प्राप्त करता है. उच्च आर्दश वाला व्यक्ति हमेशा सम्मान प्राप्त करता है. ऐसे लोगों का हर स्थान पर आदर होता है और लोग ऐसे व्यक्ति का अनुशरण करते हैं. इसलिए इस गलत आदत से दूर रहना चाहिए.
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन:।
काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्॥
इस श्लोक का अर्थ ये है कि तीन प्रकार के अवगुण व्यक्ति को नरक के द्वार तक ले जाते है. ये तीन गुण हैं काम, क्रोध और लोभ. ये तीनों ही अवगुण व्यक्ति की आत्मा की सुंदरता का नाश करते हैं. इसलिए इनसे दूर ही रहना चाहिए. विद्वान भी मानते हैं लालच एक ऐसा अवगुण है जो एक बार प्रवेश कर जाए तो इससे आसानी से छुटकारा नहीं मिलता है. लोभ के कारण कभी कभी व्यक्ति अपने कुल का भी नाश कर लेता है. इसलिए इस लोभ से व्यक्ति को बहुत दूर रहना चाहिए.
चाणक्य के अनुसार जो परिश्रम करने से लोभ का नाश होता है. व्यक्ति को अपने परिश्रम और ज्ञान पर भरोसा रखना चाहिए. किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए सबसे जरूरी चीज है परिश्रम और ज्ञान. इसलिए इन्हें प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को सदैव तैयार रहना चाहिए. धर्म कर्म के कार्यों में व्यक्ति को रूचि लेनी चाहिए. धर्म के कार्यों को करने से व्यक्ति मन और विचार शुद्ध रहता है, जिस कारण कई प्रकार के दोषों से वह मुक्त रहता है. लोभ व्यक्ति के जीवन का आनंद भी नष्ट कर देता है.