पाकिस्तान ने सऊदी अरब का कर्ज चुकाने के लिए एक बार फिर से चीन की शरण ली है. पाकिस्तान ने चीन से 1.5 अरब डॉलर की आर्थिक मदद मांगी थी और चीन ने भी इसके लिए हामी भर दी है. पाकिस्तान को जनवरी महीने तक सऊदी अरब को दो अरब डॉलर का कर्ज लौटाना है. पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार की हालत पहले से ही खस्ता है, ऐसे में पाकिस्तान के पास चीन से मदद मांगने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था.
पाकिस्तान चीन की मदद से सोमवार को सऊदी अरब को 1 अरब डॉलर का कर्ज वापस करेगा. इसके बाद, जनवरी महीने में भी पाकिस्तान को सऊदी अरब को एक अरब डॉलर के कर्ज की अदायगी करनी है.
जब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बेहद बुरे दौर से गुजर रही थी और उस पर डिफॉल्टर होने का खतरा मंडरा रहा था तो सऊदी अरब उसकी मदद के लिए आगे आया था. सऊदी अरब ने तीन साल के लिए पाकिस्तान को 6.2 अरब डॉलर का कर्ज दिया था.
इसमें 3 अरब डॉलर कैश और 3.2 अरब डॉलर तेल और गैस की आपूर्ति के रूप में मदद दी गई थी. हालांकि, पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे पर सऊदी अरब के रुख की तीखी आलोचना कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली.
सऊदी अरब ने पाकिस्तान के लिए तेल और गैस आपूर्ति की सुविधा को खत्म कर दिया है. इसके अलावा, सऊदी ने कर्ज अदायगी में भी किसी तरह की रियायत देने से मना कर दिया है. सऊदी अरब से लिए गए कर्ज की अवधि पूरी हो रही है और पाकिस्तान को ना चाहते हुए भी कर्ज चुकाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
हालांकि, इस बार चीन ने ना तो कॉमर्शियल लोन दिया है और ना ही अपने विदेशी मुद्रा भंडार से कर्ज दिया है. रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों देशों ने साल 2011 में हुए करेंसी स्वैप एग्रीमेंट (सीएसए) का विस्तार करते हुए 10 अरब चीनी युआन यानी 1.5 अरब डॉलर की आर्थिक मदद का रास्ता निकाला है. इसके बाद, अब दोनों देश अपनी मुद्रा में एक-दूसरे के साथ कुल 4.5 अरब डॉलर का व्यापार कर सकेंगे.
पाकिस्तान साल 2011 से ही विदेशी कर्ज चुकाने के लिए सीएसए का इस्तेमाल करता रहा है. इसके जरिए, पाकिस्तान अपने विदेशी मुद्रा भंडार को स्थिर बनाए रहने की भी कोशिश करता है. इस समझौते का पाकिस्तान को फायदा ये होगा कि 1.5 अरब डॉलर का चीनी कर्ज केंद्र सरकार के खाते में नहीं चढ़ेगा और ये पाकिस्तान के सरकारी विदेशी कर्ज का हिस्सा भी नहीं माना जाएगा.
हालांकि, स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान और पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता ने ना तो इस खबर की पुष्टि की है और ना ही इसका खंडन किया है. वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता ने ट्रिब्यून से कहा कि ये एक गोपनीय द्विपक्षीय मामला है इसलिए वो इस पर टिप्पणी नहीं कर सकते हैं.
क्या है सीएसए?
दिसंबर 2011 में स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान और पीपल्स बैंक ऑफ चाइना के बीच करेंसी स्वैप एग्रीमेंट (सीएसए) हुआ था. इस समझौते के तहत, दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने के लिए, प्रत्यक्ष निवेश और विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति सही रखने के लिए एक-दूसरे की मुद्रा में व्यापार का फैसला किया था.
दिसंबर 2014 में इस समझौते को अगले तीन सालों के लिए और बढ़ा दिया गया. इसके तहत, कुल 1.5 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार करने की सीमा निर्धारित की गई थी. साल 2018 में इस समझौते को फिर से रिन्यू किया गया और इसकी सीमा बढ़ाकर 3 अरब डॉलर कर दी गई.
अगले साल मई महीने में इस समझौते की समयसीमा खत्म हो रही है. हालांकि, पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक ने कहा है कि वो चीन से इस समझौते को तीन साल की अवधि के लिए बढ़ाने की अपील करेगा.
केंद्रीय बैंक के ब्योरे के मुताबिक, साल 2019-20 में 3 अरब डॉलर की पूरी रकम का इस्तेमाल कर लिया है. पाकिस्तान ने पिछले वित्तीय वर्ष में ही चीन को ब्याज के तौर पर 20.5 अरब रुपये चुकाए थे.