बेंगलोर. ब्राजील के रियो डि जेनेरो में 7 से 18 सितंबर तक होने वाले पैरालंपिक खेलों में 17 सदस्यीय भारतीय दल उतरेगा. इनमें से एक हैं सुयश नारायण जाधव. भले ही वे रियो ओलंपिक में एस-7 श्रेणी से पुरुषों की 50 मीटर फ्रीस्टाइल स्पर्धा के फाइनल में प्रवेश करने से चूक गए हों लेकिन उनके जज्बे को दुनिया सलाम करती है.
-: जानें उनके बारे में :-
पिता से मिली प्रेरणा
उनके पिता नारायण जाधव नेशनल लेवल के तैराक रह चुके हैं.
अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए सोलापुर के सुयश जाधव बचपन से ही एक इंटरनेशनल स्वीमर बनना चाहते थे.
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बचपन में हीं हादसे ने बना लिया था शिकार
बचपन में एक कंस्ट्रक्शन साइट पर खेलते हुए सुयश बिजली की खुली तारों से उलझ गए और गंभीर रूप से घायल हुए थे.
हादसे के वक्त सुयश छठवीं क्लास में पढ़ते थे और उनकी उम्र सिर्फ 11 साल थी. डॉक्टरों के प्रयास से उनकी जान तो बच गई लेकिन उनके दोनों हाथ काटने पड़े.
इस दुर्घटना के बाद उन्हें 6 महीने तक हॉस्पिटल में एडमिट रहना पड़ा था.
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सुयश के नाम दर्ज हैं कई पदक
कुछ साल तक सोलापुर में ट्रेनिंग के बाद वे पुणे आ गए और यहां कई साल तक ट्रेनिंग की.
इसके बाद वे दिव्यंगों के लिए आयोजित डोमेस्टिक गेम्स में शामिल हुए और कई मेडल्स अपने नाम किए.
आखिरकार उन्होंने अपने बचपन के सपने को पूरा करते हुए इंटरनेशनल लेवल पर इंडिया के लिए कई पदक जीते.
कुछ महीने पहले सुयश ने जर्मनी में आयोजित तैराकी के तीन इवेंट्स में सिल्वर मेडल जीता था.
वे 2015 में पोलैंड में आयोजित हुए विंटर ओपन चैंपियनशिप में एक गोल्ड, एक सिल्वर के साथ दो ब्रॉन्ज मेडल जीतने में कामयाब हुए थे.
इसी के साथ 2015 में आयोजित हुए IWA वर्ल्ड गेम्स में उन्हें दो गोल्ड मेडल मिले थे.
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ओलंपिक के लिए भी किया गया था चयनित
वे देश के पहले भारतीय तैराक हैं जो पैरालंपिक गेम्स के लिए चयन हुए हैं.
सुयश ने पिछले साल एक इवेंट में रियो पैरालंपिक के लिए क्वालीफाइंग स्कोर अर्जित किए थे.
सुयश ने पुरुषों की 50 मीटर फ्रीस्टाइल एस-7 तैराकी स्पर्धा में कांस्य पदक हासिल किया.
इससे पहले, उन्होंने रविवार को पुरुषों की 200 मीटर व्यक्तिगत मेडले एसएम-7 स्पर्धा में कांस्य जीता था.
लेखिका – मीनाक्षी पाहुजा