देश में शैक्षणिक माहौल, शिक्षा की गुणवत्ता, रोजगार परक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने साढ़े तीन दशक बाद शिक्षा नीति के नए मसौदे को मंजूरी दे दी।
#राष्ट्रीय–शिक्षा नीति में पूरे शैक्षणिक ढांचे में व्यापक बदलाव किया गया है।
#नई शिक्षा नीति में बोर्ड परीक्षा को लेकर अभिभावकों और बच्चों का तनाव कम होगा। अब कॉलेज में स्नातक पाठ्यक्रम में दाखिला लेने के बाद तीन साल तक पढ़ाई के बाद ही डिग्री मिलने की अनिवार्यता खत्म हो गई।
छात्र तीन या चार साल से पहले कभी भी कॉलेज छोड़ सकते हैं। इसके तहत तीन वर्षीय डिग्री प्रोग्राम एक साल पूरा करने पर प्रमाण पत्र, दो साल पढ़ाई पर डिप्लोमा और तीन साल पूरे करने पर डिग्री मिलेगी। जबकि चार वर्षीय डिग्री प्रोग्राम बहुविषयक स्नातक कार्यक्रम होगा।
भारत के शिक्षण संस्थानों को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों में शामिल करने के लिए इंटरनेशनल रैकिंग के टॉप सौ संस्थानों के कैंपस भारत में खोलने की अनुमति दी जाएगी। विदेशी शिक्षकों व छात्रों को भारत से जोड़ा जाएगा।
विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों का काम अकादमिक और रिसर्च पर फोकस पर रहेगा। परीक्षा से लेकर दाखिले तक का काम नेशनल टेस्टिंग एजेंसी करेगी। अब एक विषय की जगह बहुविषयक डिग्री प्रोग्राम शुरू होंगे। जिन कोर्स में छात्रों की संख्या कम है या पुराने हो चुके हैं, उनकी जगह पर नए कोर्स शुरू होंगे।
नई शिक्षा नीति के तहत 2030 तक शत–प्रतिशत बच्चों को स्कूली शिक्षा में नामांकन कराने का लक्ष्य है। इसका मतलब हर बच्चे तक शिक्षा पहुंचाना या शिक्षा से जोडऩा है। इसके अलावा राज्य स्कूल मानक प्राधिकरण में अब सभी सरकारी और निजी स्कूल शामिल होंगे।
पहली बार सरकारी और निजी स्कूलों में एक नियम लागू होंगे। इससे निजी स्कूलों की फीस, पाठ्यक्रम तथा वेतन आदि पर लगाम लगेगी। 10वीं और 12वीं में होने वाली बोर्ड परीक्षा के लिए यह सुनिश्चित किया जाएगा कि 24 से ज्यादा विषय न हों।
वायुसेना को मिला ‘बाहुबली’
एक बार फेल या अच्छा प्रदर्शन न करने पर छात्र को दो या उससे अधिक बार मौका मिलेगा। नौवीं के बाद विषय चुनने का विकल्प होगा। एन.सी.ई.आर.टी अगले वर्ष तक नेशनल कैरिकुलम फ्रेमवर्क 2020 तैयार करेगी। अब तक स्कूली शिक्षा नेशनल कैरिकुलम फ्रेमवर्क 2005 के तहत चल रही है।
#2022 की परीक्षा नए पाठ्यक्रम से होगी। बच्चों को मोटी–मोटी किताबें नहीं पढऩी पड़ेंगी। नई नीति में बच्चों को हर विषय के मूल सिद्धांत को आसान तरीकों से समझाया जाएगा। ऐसे में पूरा जोर लिखित परीक्षा की जगह प्रयोगात्मक परीक्षा पर होगा।
पढ़ाई का फोकस और कांस्पेट्स, आइडिया, एप्लीकेशन, प्रैक्टिकल, प्राब्लम साल्विंग पर रहेगा। सरकार का मानना है कि दो से आठ साल तक बच्चा सबसे अधिक सीखता है। इसलिए इस उम्र में सीखने पर जोर दिया जाए। गुणवत्ता सुधारने की शुरुआत स्कूली शिक्षा से करने के लिए हर पांच साल में समीक्षा होगी। लिबरल एजुकेशन में देश की 64 कलाओं को बढ़ावा मिलेगा।
विभिन्न विषयों में दक्षता और क्षमता के आधार पर डिग्री की पढ़ाई होगी। इसका मतलब ज्ञान के साथ कौशल विकसित करना है, जिससे रोजगार के मौके मिलें। स्नातक तक कोर्स 3-4 वर्ष का होगा और कभी भी प्रवेश और पढ़ाई छोडऩे का विकल्प सर्टिफिकेट के साथ मिलेगा।
केन्द्र सरकार ने प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा की व्यवस्था में व्यापक बदलाव का खाका खींचा है।
यदि नई शिक्षा नीति के मसौदे पर सम्यक रूप से अमल किया जाएगा तो निश्चित रूप से यह शिक्षा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगी।
अमेरिका-चीन में बढ़ी खटास
खास बात यह है कि इन मिसाइलों की रेंज इतनी अधिक है कि दुश्मन के विमान इसके सामने बचाव की मुद्रा में होंगे। यह विमान समतल भूमि के अलावा पहाड़ी और ठंडे इलाकों के लिए भी उपयुक्त होगा।
इसका मतलब यह हुआ कि चीन के खिलाफ इसकी उपयोगिता अहम होगी। हालांकि चीन का जे-20 पांचवीं पीढ़ी का युद्धक विमान है, लेकिन अपनी हथियार और ‘सेंसर प्रणाली’ जैसी खासियतों के कारण यह उस पर भारी पड़ेगा।
दरअसल, इसमें भारत की जरूरतों के मुताबिक करीब दर्जन भर बदलाव किए गए हैं। यही कारण है कि दुनिया के दूसरे देशों में संचालित राफेल से यह ज्यादा घातक है। इसके बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि इससे भारतीय वायु सेना की जरूरतें पूरी हो जाएंगी।
अगर पाकिस्तान और चीन के साथ दो सीमाओं पर युद्ध छिड़ा, तो भारत को काफी संख्या में लड़ाकू विमानों की जरूरत पड़ेगी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले वर्षो में हथियारों की खरीदी पर राजनीति हुई, जिससे सेना का आधुनिकीकरण प्रभावित हुआ।
राफेल भी इस राजनीति का अपवाद नहीं रहा। अगर हल्के लड़ाकू विमानों की बात छोड़ दी जाए, तो ‘सुखोई’ के बाद राफेल ऐसा दूसरा विमान है, जो भारतीय वायु सेना को मिला है।