
जौनपुर (चंदवक)। ऐतिहासिक महात्मा गांधी पार्क में चल रहे किसान नेता अजीत सिंह के अनिश्चितकालीन धरने में बुधवार की रात अचानक अफरा-तफरी मच गई। रात लगभग ग्यारह बजे उपजिलाधिकारी शैलेन्द्र कुमार और सीओ अजीत कुमार रजक टीम के साथ धरना स्थल पहुंचे और किसान नेता से पांच सूत्रीय मांगें मानकर धरना खत्म करने की अपील करने लगे। इस दौरान किसान नेता और अधिकारियों के बीच तीखी बहस भी देखने को मिली।
अधिकारियों के लगातार मान-मनौवल के बाद भी जब अजीत सिंह धरना खत्म करने को तैयार नहीं हुए तो पुलिस ने उन्हें जबरन गाड़ी में बैठाकर बोड़सर स्थित उनके आवास पर ले जाकर नजरबंद कर दिया। घर के बाहर पुलिस का पहरा लगा दिया गया। सुबह होते ही किसान नेता के नजरबंद होने की खबर क्षेत्र में फैल गई और प्रशासन के इस रवैए के खिलाफ लोगों में आक्रोश बढ़ने लगा। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि जब किसान शांतिपूर्ण तरीके से धरना दे रहे थे तो उनके साथ इस तरह का कृत्य करना उचित नहीं है।
प्रधानमंत्री से मिलने की भनक होते ही हरकत में आया प्रशासन
धरने के दौरान किसानों ने तय किया था कि उनकी पांच सदस्यीय टीम प्रधानमंत्री वाराणसी दौरे के समय उनसे मिलकर पत्रक सौंपेगी और समस्याओं से अवगत कराएगी। जैसे ही यह खबर सोशल मीडिया पर फैली, जिला प्रशासन हरकत में आ गया। सबसे पहले चंदवक थानाध्यक्ष सत्यप्रकाश सिंह किसानों को समझाने पहुंचे, लेकिन किसान अपनी मांगों पर अड़े रहे।
क्या प्रशासन नहीं चाहता कि किसान अपनी समस्या प्रधानमंत्री तक पहुंचाएं?
किसान नेता अजीत सिंह ने धरने के लिए बाकायदा एसडीएम कार्यालय में अनुमति पत्रक सौंपा था, इसके बावजूद प्रशासन ने धरना स्थल पर कोई व्यवस्था नहीं कराई। धरने के तीसरे दिन देर रात प्रशासन अचानक सक्रिय हुआ और सभी मांगें मानने की बात करते हुए धरना खत्म करने पर जोर देने लगा। सवाल यह उठता है कि यदि धरने के दौरान कोई अप्रिय घटना हो जाती तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होती? कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रशासन नहीं चाहता था कि किसान अपनी समस्या प्रधानमंत्री के समक्ष रखकर सच्चाई उजागर करें।