मुठ्ठी भर नमक के लिए 24 दिन, 240 मील चला था ‘हिन्दुस्तान’

साबरमती से बापू का कारवां चलता गया, लोगों का काफिला जुड़ता गया
80 हजार से अधिक लोगों को अंग्रेजों ने भेजा था जेल



नई दिल्ली।
 सन् 1947 से पहले का एक ऐसा दौर, जब भारत आजादी के लिए लड़ रहा था। हर कोई ब्रिटिश सरकार से स्वतंत्र होना चाहता था। सभी के दिल और दिमाग मे ब्रिटिशों के खिलाफ एक कड़वाहट सी हो गयी थी। कड़वाहट ऐसी थी, जो कभी भी बड़े आंदोलन को जन्म दे सकती थी। महात्मा गांधी ने आजादी के समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। असहयोग आंदोलन जब खत्म हुआ तो उसके बाद गांधी जी समाज सेवा में लीन हो गए थे। उन्होनें तत्कालीन राजनीति से बिल्कुल दूर होकर अपने को समाज सुधार कार्यो में केंद्रित रखा। लेकिन, जब उन्होंने दोबारा आंदोलन की ओर अपना कदम बढ़ाया तो उन्होंने न केवल ब्रिटिश सरकार बल्कि पूरे विश्व के सामने नए भारत की नींव रख दी थी।

यात्रा ने दिखाया हिन्दुस्तानियों का दम

अगर हम भारत के इंतिहास पर गौर करें तो दांडी यात्रा एक ऐसी यात्रा थी, जिसमें बदलाव की आंधी चल पड़ी थी। जिसने पूरे देश मे अंग्रेजो के खिलाफ लोगों के संघर्ष को एक बड़ा आंदोलन के रूप में गोरों के सामने खड़ा कर दिया। गांधी जी की इस यात्रा ने उन्हें बता दिया कि, जब किसी को झुकने के लिए मजबूर किया जाता है, तो वह किस तरह एक बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है।

कब और क्या था दांडी मार्च आंदोलन

यह यात्रा भारत मे अंग्रेजी शासन के दौरान की है। यह घटना 12 मार्च 1930 की है। जब गांधी जी ने ब्रिटिशों के खिलाफ दांडी मार्च यानी दांडी यात्रा निकाली थी। दरअसल, गांधी जी ने यह यात्रा अंग्रेजी सरकार द्वारा नमक पर कर लगाने के खिलाफ निकाली थी। गांधी जी ने दांडी यात्रा अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से समुद्र तट के नजदीक दांडी गांव तक 78 व्यक्तियों के साथ पैदल निकाली थी। इसलिए इसे दांडी सत्याग्रह और नमक मार्च भी कहते है। अंग्रेजी शासन ने नमक के उत्पादन और उस पर बहुत ज्यादा विक्रय कर लगाया था। इसलिए इस कर को हटाने के लिए गांधी जी ने यह सत्याग्रह चलाया।

24 दिन और 240 मील लम्बी यात्रा

गांधी जी को इस आंदोलन में हजारों लाखो लोगों का समर्थन मिला। देश के लोगों ने नमक सत्याग्रह में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। लगभग 24 दिनों की यात्रा के बाद बापू दांडी पहुंचे और एक मुठ्ठी नमक बनाकर ब्रिटिशों का कानून तोड़ खुद को उनका गुनाहगार बना लिया। इस आंदोलन को जगह-जगह से समर्थन मिलने लगा। भारत मे अंग्रेजी शासन के खिलाफ यह आंदोलन सबसे ज्यादा प्रभावी था। जिसमें अंग्रेजों ने 80,000 से अधिक लोगों को जेल भी भेजा था।

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