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बीहड़ के मंदिर से देश के मंदिर तक: अंग्रेजों ने यहाँ से निकाली संसद भवन की डिज़ाइन- Amar Bharti Media Group राष्ट्रीय

बीहड़ के मंदिर से देश के मंदिर तक: अंग्रेजों ने यहाँ से निकाली संसद भवन की डिज़ाइन

नई दिल्ली। काल के गर्भ में कई गहरे राज समाए हैं। ऐसा ही एक राज देश की संसद भवन को लेकर भी है। दरअसल, जिस संसद भवन को लेकर अंग्रेज यह दावा करते रहे हैं कि यह उनकी देन है, असल में वह भारत से ही चुराए गए आइडिए पर ही निर्मित है। जी हां, संसद भवन के डिजाइन का आइडिया अंग्रेजों ने भारत से लिया है। इसके बारे में आपको तब ज्ञात होगा जब आप मुरैना के ‘चौसठ योगिनी मंदिर’ के बारे में जानकारी जुटाएंगे। बताना चाहेंगे, मध्य प्रदेश का यह हिस्सा जिसने कभी भारत की संसद भवन को आकार दिया और अपने आप में एक विलक्षण सौंदर्य बोध से दुनिया को परिचित कराया था और स्वाद में गजक के लिए जिसकी पहचान पूरी दुनिया में है, वही मुरैना अब नए रूप में फर्नीचर के नए आयामों को गढ़ने के लिए तैयार हो रहा है। जहां हजारों लोगों के लिए रोजगार ने अवसरों के साथ लकड़ी पर कलाकारी का एक नया भविष्य योजनाबद्ध तरीके से शुरू होगा। 

तो लुटियन और बेकर केवल नाम के वास्तुविद

दरअसल, मुरैना का नाम लेते ही जहन में सबसे पहले जो छवि उभरती है, वह चंबल के बीहड़ क्षेत्र और डाकुओं की है, लेकिन यह तो उसका एक छोटा सा भाग है, इतिहास के झरोखे में देखें तो यही वह स्‍थान है, जिसने कि भारत के संसद भवन को आकार प्रदान करने के लिए एक आधार प्रदान किया था। कहने को भले ही 144 मजबूत स्तंभों पर टिका वर्तमान संसद भवन 93 साल पहले अंग्रेजों ने बनवाया था, लेकिन अंग्रेजों को भी संसद भवन कैसा होना चाहिए यह सोच डिजाइन के स्‍तर पर मुरैना से ही मिली थी। यहां के गांव में बने मितावली-पड़ावली का चौसठ योगिनी मंदिर ही वह आधार है, जिसकी कॉपी बनाने का निर्णय इस संसद भवन को निर्मित करने वाले ब्रिटिश वास्तुविद एडविन के लुटियन और सर हर्बर्ट बेकर ने लिया था।

चौसठ योगिनी मंदिर की प्रतिमूर्ति भारत का संसद भवन 

भवन का शिलान्यास 12 फरवरी 1921 को ‘ड्यूक ऑफ कनॉट’ ने किया और छह वर्षों के बाद उद्घाटन तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन ने 18 जनवरी 1927 को किया था, पर इसके ऐतिहासिक संदर्भ को देखें तो मुरैना के बने चौसठ योगिनी मंदिर और संसद भवन में पूर्ण समानताएं हैं। हालांकि यह बात अलग है कि तत्कालीन समय में अंग्रेजों को यह कहने में संकोच हो रहा था कि हमने इस भवन का डिजाइन एक हिन्दू मंदिर से लिया है, इसलिए उनके द्वारा स्थापित किया गया कि पुर्तगाली स्थापत्य कला का अदभुत नमूना है, लेकिन आज यह बात दुनिया को पता चल चुकी है कि भारतीय संसद भवन मुरैना में बने एक हिन्दू मंदिर की ही प्रतिमूर्ति है।

मुरैना बनेगा फर्नीचर हब, मिलेंगे रोज़गार

अब यही मुरैना आधुनिक भारत में अपने नए विकास के मॉडल पर चलने को तैयार हो उठा है। यहां शीघ्र ही लकड़ी के कार्य के लिए विश्‍वस्‍तरीय सुविधाएं एवं कार्य योजना मूर्त रूप लेती हुई दिखाई देगी क्योंकि अपने संसदीय क्षेत्र होने के परिणामस्वरूप केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर इस क्षेत्र के विकास के लिए जिस तरह से रुचि ले रहे हैं, उसे देखकर लग रहा है कि आने वाले दिनों में यह पूरा क्षेत्र देश में अपनी एक अलग पहचान बनाने के लिए जुट गया है। 

विश्‍व स्‍तरीय फर्नीचर उद्योग होगा विकसित 

केंद्रीय मंत्री तोमर ने इसी क्रम में अधिकारियों से चर्चा कर प्रस्ताव दिया है कि मुरैना में फर्नीचर उद्योग विकसित करने की संभावनाएं तलाशी जाएं। तोमर की पहल पर मुरैना के जिलाधिकारियों तथा राज्य सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विभाग के अधिकारियों ने एक प्रेजेंटेशन दिया है। प्रेजेंटेशन के दौरान फर्नीचर उद्योग से जुड़े निवेशकों ने संतोष जताया और वे यहां पर बड़ी संख्या में निवेश के लिए उत्साहित दिख रहे हैं। 

हजारों लोगों को मिलेगा लाभ

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कहते हैं ”मुरैना की लकड़ियों से जिले में ही फर्नीचर बनाया जाएगा तो यहां उद्योग विकसित होने के साथ बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा, साथ ही जिले की अर्थव्यवस्था भी बेहतर हो सकेगी। मुरैना में फर्नीचर बनने से मध्य प्रदेश सहित आसपास के जिलों में इसका विक्रय हो सकेगा, जिससे सभी स्थानों के लोगों को काफी सहूलियत व फायदा होगा।’