नई दिल्ली। देश में हर साल आने वाली बाढ़ के कारण नुकसान पर चिंताओं के बीच जल शक्ति मंत्रालय ने संसद की एक समिति को बताया कि एकीकृत नदी घाटी प्रबंधन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये संविधान के मौजूदा प्रावधानों के तहत ‘नदी प्रबंधन विधेयक तैयार किया जा रहा है । लोकसभा में पांच अगस्त को पेश जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
‘जल संसाधन विकास’ विषय को समवर्ती सूची में लाने की जरूरत
समिति ने पूछा था कि क्या जल संसाधन, नदी विकास विभाग ने ‘बाढ़ नियंत्रण’ विषय को संविधान की समवर्ती सूची के तहत लाने के लिये कोई प्रस्ताव प्रस्तुत किया है? इसके जवाब में विभाग ने कहा,’बाढ़ प्रबंधन में केंद्र सरकार द्वारा प्रभावी भूमिका सुनिश्चित करने के लिये ‘जल संसाधन विकास’ विषय को समवर्ती सूची में लाना होगा । इस विषय के व्यापक निहितार्थ हैं, अत: विभाग ने इसे संविधान की समवर्ती सूची में लाने के लिये कोई प्रस्ताव प्रस्तुत नहीं किया है । वहीं, जल शक्ति मंत्रालय ने समिति को बताया कि एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये संविधान के मौजूदा प्रावधानों के तहत उपयुक्त कानूनी प्रावधान करने होंगे ।
2020-2023 की अवधि में पूरे देश में बाढ़ प्रबंधन निर्माण कार्य के लिए एक समिति का गठन
रिपोर्ट के अनुसार, मंत्रालय ने बताया,’जल शक्ति मंत्रालय ने संघ सूची की प्रविष्टि 56 के तहत नदी प्रबंधन विधेयक बनाने की पहल की है । यह पूछे जाने पर कि क्या बाढ़ की समस्या का अध्ययन करने और उसे नियंत्रित करने के लिये किसी अंतर मंत्रालयी अध्ययन समूह का गठन किया गया है, विभाग ने कहा,’वर्ष 2020-2023 की अवधि में पूरे देश में बाढ़ प्रबंधन निर्माण कार्य और नदी प्रबंधन कार्यकलापों एवं सीमावर्ती क्षेत्रों में निर्माण कार्य हेतु नीति तैयार करने के लिये नीति आयोग के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है । ‘
समिति की रिपोर्ट
इस समिति में भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के अधिकारी, इस क्षेत्र के विशेषज्ञों के अलावा जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, असम, अरूणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश और केरल के मुख्य सचिवों को सदस्य के रूप में शामिल किया गया है । अक्तूबर 2019 में इस समिति के गठन के बाद से फरवरी 2020 और मई 2020 में इसकी दो बैठकें हुई हैं । संसद में पेश रिपोर्ट में राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के आंकड़ों के हवाले से कहा गया है कि वर्ष 1953 से 2018 के दौरान 65 वर्षो के अवधि में फसलों, घरों और सार्वजनिक संस्थापनाओं को कुल 4,00,097 करोड़ रूपये का नुकसान होने का अनुमान है। इस अवधि के दौरान लगभग 1,09,274 लोगों और 61,09,628 मवेशियों के मारे जाने का अनुमान है। इसमें कहा गया है, ” हर साल बाढ़ से होने वाली बड़ी हानि खराब योजना, बाढ़ नियंत्रण नीति की विफलता, अपर्याप्त तैयारी और अप्रभावी आपदा प्रबंधन का संकेत देती है जिससे लोगों को आर्थिक नुकसान के अलावा काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है ।