नई दिल्ली। देश में कोरोना की बढ़ती रफ्तार ने एक बार फिर सबको मुश्किल में डाल दिया है। कोरोना का दूसरा प्रहार पहले से अधिक घातक है। अगर, पिछले वर्ष के इन दिनों को याद करें तो वह मंजर काफ़ी भयावह था, जब लोग पैदल ही हजारों किलोमीटर दूर स्थित अपने गाँव की तरफ चल पड़े थे। उन्हीं गांवों को, जिन्हें कभी रोजी रोटी की तलाश में पीछे छोड़कर आये थे। लेकिन, अब वही मौका फिर आ रहा है, जब वे दोबारा अपने गाँव मे लौटने को मजबूर है।
वजह साफ है, कोरोना का आंकड़ा अपनी सीमाओं को लांघकर काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है। मरने वालों की तादाद भी काफी तेजी से बढ़ रही है। हालात बदतर होते जा रहे है। इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि महामारी किसी भी प्रकार की हो, उसकी सबसे बड़ी मार ग़रीब तबका सहता है। और अक्सर, इसी वर्ग को इसके फैलने की वजह मान ने लगते है। इसलिए कहा भी जाता है कि भारत में तो गरीब की नियति ही दुख है।
लेकिन, चुनाव का समय चल रहा है। जिसके चलते बड़े बड़े नेताओं की रैलियां हो रही हैं, उसमे साफ दिखाई दे रहा है कि कैसे कोरोना प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाई जा रही है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि एक-दूसरे को जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाने वाला हमारा राजनीतिक वर्ग इतना लापरवाह क्यों हो रहा है? क्या इस महामारी को फैलाने में अब भी सिर्फ गरीब तबका ही जिम्मेदार है?
कहना गलत नही होगा कि, अगर अब दोबारा लंबा लॉकडाउन लगा, तो हालात और ज्यादा खराब हो सकते हैं। भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है, यह कोई नही बता सकता? लेकिन यह बात तय है, कि महंगाई, बेरोजगारी और बदहाली का दूसरा दौर हम सभी के दरवाजे खटखटा रहा है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि राजनीति खत्म करके देश के लोगों के हित मे काम काम करना शुरू करे, ताकि इस महामारी से बचाव हो सके।