नई दिल्ली। एक मई का दिन दुनिया के कई देशों में अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस के तौर पर मनाया जाता है। ये दिन दुनिया के मजदूरों और श्रमिक वर्ग को समर्पित है। इन दिन को लेबर डे, मई दिवस, और मजदूर दिवस भी कहा जाता है। आज मजदूरों की उपलब्धियों को और देश के विकास में उनके योगदान को सलाम करने का दिन है। ये दिन मजदूरों के सम्मान, उनकी एकता और उनके हक के समर्थन में मनाया जाता है। इस दिन दुनिया के कई देशों में छुट्टी होती है।
मजदूर दिवस का इतिहास
इसकी शुरुआत साल 1886 में हुई थी जब अमेरिका में मजदूरों की बहुत सारी मांगें मान ली थीं और उनके कार्य संस्कृति में आमूलचूल परिवर्तन आ गया था। एक मई का दिन कामगारों के लिए खास दिन है क्योंकि इसी दिन उनको सबसे बड़ा अधिकार मिला। उनके लिए काम का घंटे तय हुए । इससे पहले कामगारों का काफी शोषण होता था। लेकिन मजूदरों की उनके हक आसानी से नहीं मिले थे। मजदूरों ने काम के घंटे तय करने की मांग को लेकर 1877 में आंदोलन शुरू किया, इस दौरान यह दुनिया के विभिन्न देशों में फैलने लगा। एक मई 1886 को पूरे अमेरिका के लाखों मज़दूरों ने एक साथ हड़ताल शुरू की। इसमें 11,000 फ़ैक्टरियों के कम से कम तीन लाख अस्सी हज़ार मज़दूर शामिल हुए और वहीं से एक मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई।
भारत में कैसे हुई मजदूर दिवस की शुरुआत?
वहीं, भारत के चेन्नई में 1 मई 1923 में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान की अध्यक्षता में मजदूर दिवस मनाने की परंपरा की शुरूआत हुई। इस दौरान कई संगठनों व सोशल पार्टियों का समर्थन मिला। जिसका नेतृत्व वामपंथी कर रहे थे। आपको बता दें कि पहली बार इसी दौरान मजदूरों के लिए लाल रंग का झंडा वजूद में आया था। जो मजदूरों पर हो रहे अत्याचार व शोषण के खिलाफ आवाज उठाने का प्रतिक है। भारत में लेबर डे को अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस, मई दिवस, कामगार दिन, इंटरनेशनल वर्कर डे, वर्कर डे भी कहा जाता है।
कामगारों के बिना कोई भी औद्योगिक ढांचा नहीं- महात्मा गांधी
भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि किसी भी देश की तरक्की उस देश के मजदूरों और किसानों पर निर्भर करती है। किसी भी समाज, देश, संस्था और उद्योग में मज़दूरों, कामगारों और मेहनतकशों की अहम भूमिका होती है। उन की बड़ी संख्या इस की कामयाबी के लिए हाथों, अक्ल-इल्म और तनदेही के साथ जुटी होती है। किसी भी उद्योग में कामयाबी के लिए मालिक, सरमाया, कामगार और सरकार अहम धड़े होते हैं। कामगारों के बिना कोई भी औद्योगिक ढांचा खड़ा नहीं रह सकता।