ईरान-इज़राइल संघर्ष से गहराता तेल संकट, क्या रुक जाएगी दुनिया की रफ्तार?

ईरान और इज़राइल के बीच जारी संघर्ष अब केवल एक सीमित भू-राजनीतिक मुद्दा नहीं रह गया है, बल्कि इसके प्रभाव विश्वव्यापी होते जा रहे हैं। दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात अगर लंबे समय तक बने रहते हैं या और अधिक गहराते हैं, तो इसका सबसे गंभीर असर वैश्विक ऊर्जा व्यवस्था पर पड़ेगा। विशेष रूप से कच्चे तेल की आपूर्ति और उसकी कीमतों पर यह तनाव भारी असर डाल सकता है। आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था इस कदर तेल पर निर्भर है कि इसका अवरोध दुनिया भर की गति को रोक सकता है।

ईरान एक प्रमुख तेल उत्पादक देश है जो प्रतिदिन लाखों बैरल कच्चा तेल पैदा करता है और उसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात करता है। भारत, चीन, दक्षिण कोरिया जैसे देश ईरान से सस्ते तेल के बड़े खरीदार रहे हैं। अगर युद्ध के चलते ईरान की आपूर्ति प्रणाली बाधित होती है या उस पर और सख्त प्रतिबंध लगाए जाते हैं, तो उसकी सप्लाई पूरी तरह से ठप हो सकती है। इससे न केवल वैश्विक बाजार में तेल की उपलब्धता घटेगी बल्कि मांग और आपूर्ति में असंतुलन की वजह से कीमतों में बेतहाशा वृद्धि भी हो सकती है। वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत करीब 82 डॉलर प्रति बैरल है लेकिन यह जल्द ही 100 डॉलर या उससे भी ऊपर जा सकती है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अगर हालात और बिगड़े तो यह 120 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकता है।

ईरान की भौगोलिक स्थिति भी इस संकट को और अधिक संवेदनशील बनाती है। उसके दक्षिण में स्थित होरमुज जलडमरूमध्य दुनिया के लगभग 20% तेल का प्रवेश द्वार है। खाड़ी देशों के अधिकांश तेल टैंकर इसी मार्ग से होकर गुजरते हैं। अगर युद्ध के कारण यह जलमार्ग असुरक्षित हो जाता है या ईरान इसे रणनीतिक तौर पर बंद कर देता है, तो यह वैश्विक आपूर्ति को एक झटके में ठप कर देगा। इसके कारण दुनिया भर के बाजारों में अफरा-तफरी मच सकती है और तेल की किल्लत से महंगाई का तूफान आ सकता है।

भारत जैसे देशों के लिए यह संकट और भी गंभीर है क्योंकि भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का लगभग 85% हिस्सा आयात के जरिए पूरा करता है। ऐसे में कीमतों में तेज़ी से बढ़ोतरी होते ही पेट्रोल और डीज़ल की दरें आसमान छूने लगेंगी। इससे ट्रांसपोर्ट, खेती, निर्माण और उद्योग जैसे तमाम क्षेत्रों की लागत में इजाफा होगा और आम जनता की जेब पर सीधा असर पड़ेगा। महंगाई बढ़ेगी, खाद्य पदार्थ महंगे होंगे, बस और रेल का किराया बढ़ेगा, और सरकार पर सब्सिडी का बोझ भी बढ़ सकता है। हालांकि सरकार के पास टैक्स कटौती या रणनीतिक भंडार का इस्तेमाल जैसे विकल्प मौजूद हैं, लेकिन यह उपाय भी सीमित समय तक ही राहत दे सकते हैं।

अब सबसे अहम सवाल यह उठता है कि क्या तेल की कमी के चलते गाड़ियां चलनी बंद हो जाएंगी? फिलहाल इसका जवाब ‘नहीं’ है। भारत के पास करीब 80-90 दिनों के लिए कच्चे तेल का रणनीतिक भंडार मौजूद है। इसके अलावा भारत ने सऊदी अरब, रूस, अमेरिका और अफ्रीका के देशों के साथ भी वैकल्पिक आपूर्ति चैन तैयार की है। ऐसे में पूरी तरह से संकट आने की संभावना नहीं है, लेकिन अगर युद्ध लंबा चलता है और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला टूट जाती है, तो पेट्रोल पंपों पर राशनिंग, सीमित आपूर्ति और लंबी लाइनों जैसी स्थिति जरूर बन सकती है। खासकर छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में तेल की कमी का संकट गंभीर हो सकता है।

यह स्थिति दुनिया को एक बार फिर चेतावनी दे रही है कि तेल पर अत्यधिक निर्भरता घातक हो सकती है। अब वक्त आ गया है कि भारत सहित सभी देश वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की ओर गंभीरता से रुख करें। इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना, सौर ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे स्रोतों में निवेश करना और बायोफ्यूल को व्यवहार में लाना अब केवल पर्यावरणीय जरूरत नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा भी बन चुका है। भारत सरकार ने इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन, ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर और हाइड्रोजन मिशन जैसी योजनाएं चलाई हैं, लेकिन इनकी गति अभी ज़मीनी स्तर पर उतनी तेज़ नहीं है जितनी होनी चाहिए।

ईरान और इज़राइल के बीच यह टकराव जितना सैन्य है, उतना ही कूटनीतिक और आर्थिक भी है। यदि यह संघर्ष तुरंत नहीं थमता तो यह दुनिया के लिए एक तेल युद्ध में बदल सकता है। भारत को न केवल अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी बल्कि पश्चिमी देशों और मध्य-पूर्व के साथ अपने कूटनीतिक रिश्तों का भी संतुलन बनाए रखना होगा। ऊर्जा संकट की यह स्थिति विश्व पटल पर नए समीकरणों को जन्म दे सकती है।

यह स्पष्ट है कि अगला वैश्विक संकट केवल मिसाइलों और टैंकों से नहीं लड़ा जाएगा, बल्कि यह उस तेल की आखिरी बूंद के लिए भी लड़ा जा सकता है जिस पर आज की दुनिया की रफ्तार टिकी है। यदि यह युद्ध आगे बढ़ता है और ईरान की तेल आपूर्ति ठप हो जाती है, तो न केवल तेल की कीमतें बढ़ेंगी बल्कि वैश्विक मंदी की आशंका भी बलवती हो जाएगी। दुनिया को अब विकल्पों की तरफ तेज़ी से कदम बढ़ाने होंगे, वरना तेल के बूंद-बूंद के लिए जंग तय है।