
21वीं सदी के दूसरे दशक का उत्तरार्ध जिस संकट की ओर बढ़ रहा है, वह केवल क्षेत्रीय संघर्ष नहीं, बल्कि वैश्विक व्यवस्था को पुनर्परिभाषित करने वाला युद्ध बन सकता है। इज़राइल और इरान के बीच चल रही युद्ध जैसी स्थिति ने जिस प्रकार से अंतरराष्ट्रीय राजनीति, वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति, सामरिक स्थिरता और परमाणु संतुलन को झकझोरा है, उसने यह प्रश्न सामने ला दिया है कि क्या यह टकराव तीसरे विश्व युद्ध का प्रारंभ है? क्या इसका प्रभाव कोविड-19 से भी अधिक व्यापक और विनाशकारी होगा? इस विश्लेषण में हम इन्हीं बिंदुओं पर विस्तृत दृष्टिपात करेंगे।
इरान और इज़राइल के संबंध 1979 के ईरानी इस्लामी क्रांति के बाद से ही कटु रहे हैं। इज़राइल को “ज़ायोनी शासन” कहने वाले तेहरान ने हमास, हीज़बुल्लाह और अन्य प्रॉक्सी समूहों का समर्थन किया है। इज़राइल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने अस्तित्व के लिए खतरा माना है। 2025 में तनाव इस हद तक पहुंच गया कि अमेरिका और इज़राइल ने ईरान के फोर्डो, नताँज़ और इस्फहान जैसे परमाणु ठिकानों पर हमला कर दिया। इसके जवाब में ईरान ने मिसाइल हमले शुरू किए और समूचा मध्यपूर्व युद्ध की चपेट में आ गया। इज़राइल के हमले में 3 प्रमुख परमाणु केंद्रों को नुकसान पहुँचा। ईरान ने 5 बैलिस्टिक मिसाइल और 12 ड्रोन हमले किए। यूएन के अनुसार 1 सप्ताह में 800+ नागरिक मारे गए। 12 देशों ने अपने दूतावास बंद किए हैं। वैश्विक तेल मूल्य 35% तक बढ़ गया।
प्रथम विश्व युद्ध 1914 में ऑस्ट्रिया के युवराज की हत्या से शुरू हुआ था, जिससे 70 लाख सैनिकों की मृत्यु हुई और 2 करोड़ से अधिक नागरिक प्रभावित हुए। द्वितीय विश्व युद्ध 1939 में जर्मनी के पोलैंड पर आक्रमण से शुरू हुआ और 7 करोड़ लोगों की जान गई, हिरोशिमा-नागासाकी में परमाणु बम का प्रयोग हुआ। वर्तमान संघर्ष में समानताएं स्पष्ट हैं—बड़े देश जैसे ही अपने-अपने पाले में आते हैं, यह संघर्ष वैश्विक बन सकता है। ईरान-इज़राइल संघर्ष पहले ही अमेरिका, रूस, चीन, यूरोप को प्रभावित कर चुका है। साइबर युद्ध, ड्रोन अटैक, आर्थिक प्रतिबंध और मीडिया प्रोपेगैंडा आधुनिक युद्ध के नए हथियार बन गए हैं।
1967 का छह दिन का युद्ध इज़राइल और मिस्र, सीरिया, जॉर्डन के बीच हुआ था, जिसमें इज़राइल ने भारी जीत दर्ज की थी। उस युद्ध से इज़राइल की सैन्य क्षमता का पता चला और अरब जगत को एकजुटता का सबक मिला। वर्तमान युद्ध में इज़राइल की वही आक्रामक रणनीति सामने आई है। अमेरिका, रूस, चीन, और यूरोप जैसे देश इस युद्ध के कूटनीतिक समीकरण में सीधे या परोक्ष रूप से शामिल हो चुके हैं। अमेरिका इज़राइल के साथ सैन्य रूप से खड़ा है, रूस और चीन ईरान के समर्थन में हैं, जबकि यूरोप की स्थिति विभाजित है। संयुक्त राष्ट्र अब तक केवल अपील तक सीमित है।
तेल और गैस की आपूर्ति पर सीधा असर पड़ा है। पश्चिम एशिया से 40% तेल निर्यात प्रभावित हुआ है। डॉलर, रुपया, येन और युआन अस्थिर हो गए हैं। खाड़ी देशों से गेहूं आयात बाधित हुआ है जिससे खाद्य संकट की आशंका है। स्टॉक मार्केट में भारी गिरावट दर्ज की गई है: NASDAQ -11%, NIFTY -9%, DAX -13%।
कोविड काल से तुलना करें तो वैश्विक GDP कोविड काल में -4.3% तक गिरी थी, जबकि वर्तमान युद्ध से -7.8% गिरावट की संभावना है। कोविड में 250 मिलियन लोग बेरोजगार हुए थे, जबकि इस युद्ध से अनुमानित 400 मिलियन लोगों का रोजगार प्रभावित हो सकता है। कोविड में WHO के अनुसार 70 लाख लोग मरे थे, जबकि युद्ध से यह संख्या 2 करोड़ तक पहुँच सकती है।
ईरान का सबसे बड़ा गैस क्षेत्र ‘पार्स’ बंद हो गया है। भारत, चीन, जापान और कोरिया को तत्काल प्रभाव पड़ा है। यूरोप की ऊर्जा निर्भरता और बढ़ी है और रूस पर निर्भरता द्विगुणित हुई है। वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की माँग बढ़ी है जैसे सोलर, हाइड्रो और नाभिकीय ऊर्जा।
यदि रूस या चीन ने खुलकर हस्तक्षेप किया तो यह पूर्ण युद्ध बन सकता है। अमेरिका की चुनावी राजनीति इसमें और भड़काव ला सकती है। सऊदी अरब, तुर्की जैसे देशों की भागीदारी इसे धार्मिक युद्ध का रूप भी दे सकती है। वैश्विक मंदी 2026 तक खिंच सकती है। डॉलर और स्वर्ण मुद्रा की मांग में उछाल आएगा। एशिया और अफ्रीका में महंगाई और बेरोजगारी चरम पर होगी। पलायन, विस्थापन, रिफ्यूजी संकट बढ़ेगा। मीडिया, इंटरनेट और सोशल मीडिया पर सेंसरशिप बढ़ेगी। साइबर युद्ध से नागरिक सेवाएं बाधित होंगी—बिजली, बैंकिंग, स्वास्थ्य क्षेत्र प्रभावित होंगे।
इरान–इज़राइल युद्ध केवल दो देशों की जंग नहीं है—यह दुनिया के शक्ति संतुलन, कूटनीतिक व्यवस्था, आर्थिक संरचना और मानव अस्तित्व के सामने एक चुनौती है। यह संघर्ष जितना सैन्य है, उससे कहीं अधिक वैचारिक, तकनीकी और मानवीय संकट है। तीसरे विश्व युद्ध का बीज यदि पनपा है, तो वह इसी क्षेत्र से हो सकता है। इसलिए, तत्काल वैश्विक कूटनीतिक पहल, संयम, और शांति की संस्कृति की पुनर्स्थापना ही एकमात्र उपाय है—नहीं तो मानवता एक ऐसे युद्ध में घसीटी जाएगी, जिसकी तबाही कोविड की त्रासदी से कहीं अधिक व्यापक और स्थायी होगी।