मिशन ‘विजय’ को ‘कारगिल विजय दिवस’ बनाने का एक अविस्मरणीय हिस्सा
नई दिल्ली। ‘कारगिल विजय दिवस’ जिन शब्दों को पढ़ते ही हर भारतीय के शरीर में गौरवांवित ऊर्जा फूट उठती है। 3 मई 1999 से 26 जुलाई 1999 में बँधी इस शौर्य गाथा को 22 साल हो गए है और हर साल समय के समानांतर विजय दिवस गाथा की भारतीयों के मर्म स्पर्श की परंपरा बढ़ती ही जा रही है। आज हम आपकी आंखों को दिखाएंगे शब्दों से जड़ित वह पत्र जिसे उस वीर सपूत ने अपना आखिरी समझ कर लिखा जो कारगिल में शहीद हो गया।
जिससे आपको भी यकीन हो जाएगा कि स्क्रीन पर सटे हुए यह शब्द यकीनन अपने कंधों पर भावनाओं का भार उठा रहे है। जिनकी बदौलत लेख के नीचे तक पहुँचकर आप 17000 फीट की ऊंचाई मेें 22 साल पहले हुए संघर्ष में झांक सकेंगे और एक बार फिर गर्व महसूस कर पाएंगे।
यह लेख उस समय के बारे में लिखा गया है जब कारगिल (1999) की लड़ाई को एक महीने से ज्यादा हो चुका था और ताशी नामग्याल नाम के चरवाहे ने भारतीय सेना को पाकिस्तानियों के घुसपैठ की खबर भी एक महीने पहले पहुँचा दी थी। जिसको आप तब से किसी न किसी से सुनते आ रहे है। जुलाई 1999 के समय के बारे में लिखा यह लेख उस एक पत्र के ऊपर लिखा गया है जो कैप्टन वियंत थापर (वीर चक्र, 2 राजपुताना राइफल्स) ने अपने हाथों से अपने परिवार को लिखा था और वह उनकी लिखी आखिरी चिट्ठी बन गई।
कैप्टन विजयंत थापर लिखते हैं-
“डियर पापा, मम्मी, बर्डी और ग्रैनी
जब तक आप लोगों को मेरा यह खत मिलेगा, मैं दूर ऊपर आसमान से आप लोगों को देख रहा होऊंगा। मुझे कोई शिकायत, अफसोस नहीं है। और अगर मैं अगले जन्म में फिर से इंसान के रूप में ही पैदा होता हूं तो मैं भारतीय सेना में ही भर्ती होने जाऊंगा और अपने देश के लिए लडूंगा। अगर हो सके तो आप जरूर उस जगह को आकर देखना, जहां आपके कल के लिए भारतीय सेना लड़ रही है। जहां तक यूनिट की बात है नए लड़कों को इस शहादत के बारे में बताया जाना चाहिए।
मुझे उम्मीद है मेरा फोटो मेरे यूनिट के मंदिर में करनी माता के साथ रखा जाएगा। जो कुछ भी आपसे हो सके करना। अनाथालय में कुछ पैसे देना। कश्मीर में रुखसाना को हर महीने 50 रुपए भेजते रहना। और योगी बाबा से भी मिलना। बर्डी को मेरी तरफ से बेस्ट ऑफ लक। देश पर मर मिटने वाले इन लोगों का ये अहम बलिदान कभी मत भूलना। पापा आप को तो मुझ पर गर्व होना चाहिए। मम्मी आप मेरी दोस्त से मिलना, मैं उससे बहुत प्यार करता हूं। मामाजी मेरी गलतियों के लिए मुझे माफ कर देना। ठीक है फिर, अब समय आ गया है जब मैं अपने साथियों के पास जाऊं। बेस्ट ऑफ लक टू यू ऑल। लिव लाइफ किंग साइज।”
–आपका रॉबिन। जून 1999
16 हजार फुट की ऊँचाई पर पहुँच लहराया तिरंगा
दुश्मनों से लड़ते हुए कैप्टन विजयंत थापर 29 जून 1999 को कारगिल में शहीद हो गए। लेकिन उससे पहले मेजर पदमपाणि आचार्य, कै नेइकेझाकुओ केंगरूस और लेफ्टिनेंट विजयंत थापर के नेतृत्व में उनकी यूनिट ने 16 हजार फुट ऊंचाई तोलोलिंग (कारगिल) की चोटी पर 28 जून 1999 को हमला बोल तिरंगा फहराने में सफल हो चुके थे।
यह लिखने और पढ़ने में कोई दोराहें नहीं कि कैप्टन विजयंत थापर रियली ‘लिव्ड लाइफ किंग साइज’।