
सिंगाही-खीरी।
जौराहा नाले पर बने अवैध पुल को लेकर किसानों और स्थानीय संगठनों का विरोध लगातार तेज होता जा रहा है। शुक्रवार को ठेकेदार वार्ता के लिए मांझा गुरुद्वारा पहुँचा, लेकिन किसान और सिख संगठनों के साथ सहमति नहीं बन सकी। ग्रामीणों ने साफ कहा कि डीएस (खनन अधिकारी) से वार्ता होने तक खनन नहीं होने दिया जाएगा।
जानकारी के मुताबिक जौराहा नदी में बालू खनन के लिए खनन विभाग ने ठेकेदार को पट्टा आवंटित किया है, लेकिन जिस क्षेत्र में यह पट्टा मिला है, वह कटान प्रभावित इलाका है। ठेकेदार ने अधिक सुविधा के लिए मांझा की ओर जाने वाले रास्ते का उपयोग करने के बजाय नदी पर होम पाइप डालकर एक अस्थायी पुल बना दिया है, जिसके ऊपर से डंपरों के द्वारा बालू परिवहन की तैयारी की जा रही है।
ग्रामीणों और किसानों का आरोप है कि अस्थायी पुल बनते ही नदी का प्राकृतिक प्रवाह बदल गया है। नदी का पानी दक्षिण दिशा की ओर मुड़ने लगा है, जिससे खड़ी फसलों को भारी नुकसान की आशंका है। इससे खेत जलभराव की चपेट में आ सकते हैं।
ग्रामीणों ने बताया कि प्रशासन की ओर से अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि जौराहा नाला किस स्थान पर चिन्हित है और खनन की प्रक्रिया किस क्षेत्र में होनी है। आरोप है कि ठेकेदार ने बिना किसी स्पष्ट निर्देश के मनमाने तरीके से खुदाई भी शुरू कर दी थी।
इस स्थिति के विरोध में मांझा गुरुद्वारा परिसर में सिक्ख और किसान संगठनों की बैठक हुई, जहाँ तय किया गया कि जब तक खनन अधिकारी से वार्ता नहीं हो जाती, तब तक किसी भी प्रकार का खनन नहीं होने दिया जाएगा।
शुक्रवार को जब ठेकेदार जय सिंह बातचीत के लिए गुरुद्वारे पहुँचे तो संगठनों ने अपनी आपत्ति स्पष्ट रूप से रखते हुए कहा कि किसानों की सहमति सर्वोपरि है और अवैध पुल हटाए बिना खनन की अनुमति नहीं दी जाएगी।
इस विरोध में प्रमुख रूप से मौजूद रहे—
परमजीत सिंह, केवल सिंह, गुरमीत सिंह, करम सिंह, जसवीर सिंह बाजवा, हरमीत सिंह, सोनिवाल सिंह समेत कई किसान व ग्रामीण।