हम जिस धरती पर रहते है, वह पूर्णरूप से विविधता से भरपूर है। पर्यावरण को सन्तुलित रखने में सभी जीव-जन्तु और वनस्पति अपनी महती भूमिका निभाते हैं। यही वजह है कि सभी तरह के जीव और वनस्पति को संरक्षित रखना बहुत आवश्यक हो जाता है।
लेकिन, आज के समय में इंसानों के बदलते रहन-सहन ने जीव-जन्तुओं के जीवन पर गहरा असर डाला है। प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और लगातार हो रही जंगलो की कटाई ने जीव जंतुओं तथा जरूरी वनस्पतियों को बिल्कुल खत्म कर डाला है। जोकि, पूरे विश्व में पर्यावरण के लिए खतरा बन कर मंडरा रहा रही है।
हम समय समय पर विलुप्त होती प्रजातियों की खबर सुनते रहते हैं, लेकिन उसका कारण हम स्वयं हैं। बस कुछ दिन का शौक और फिर वही आराम की जिंदगी पर आ जाते है। यही वजह है कि आज हमारे सहजीवी संकटापन्न की स्थिति में हैं। खास बात यह है कि कुछ तो खत्म ही हो चुके हैं।
वे प्रजातियां, जो समाप्त हो चुकी हैं-
आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर वे कौन सी प्रजातियां हैं, जो कभी इस धरती और पर्यावरण का हिस्सा थीं। लेकिन, अब हमारे बीच नहीं हैं।
डोडो:
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हिन्द महासागर के द्वीप मॉरीशस का एक स्थानीय पक्षी था। यह पक्षी के साथ ही एक थलचर भी था, क्योंकि उसमें उड़ने की क्षमता नहीं थी। यह पक्षी मानव द्वारा ज्यादा शिकार करने के कारण विलुप्त हो गए हैं।
थायलेसीन:
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आधुनिक युग का सबसे मांसाहार प्राणी था। इसकी पीठ पर धारियां बनी हुई थी। जिसके कारण इसे तस्मानियाई शेर भी कहा जाता था। मानव शिकार के कारण यह प्रजाति भी विलुप्त हो गयी।
टायरानोसौरस:
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यह एक बड़ी छिपकली की लुप्त डायनासोर प्रजाति है। इसको संक्षिप्त रूप में टी-रेक्स भी कहते है। यह कई सभ्यताओ में बहुत लोकप्रिय है। यह उत्तरी अमेरिका में पाया जाता था।
यात्री कबूतर:
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19वीं शताब्दी की शुरुआत में यात्री कबूतर उत्तरी अमेरिका का सबसे आन पक्षी था।
कैरेबियन भिक्षु सील:
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यह सील ज्यादातर बर्फीले पानी में रहता है। गर्म प्रशांत महासागर में हवाई के चारों ओर यह अपना घर बनाती है। 2008 में कैरेबियन भिक्षु सील को विलुप्त घोषित कर दिया था।
अब, अगर हमने इसी तरह इन बातों को नजरअंदाज किया तो एक दिन पूरा मानव जीवन भी खतरे में पड़ सकता है। इसलिए हमें जागरूक होने की आवश्यकता है।