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जानिए, क्यों कहते हैं इसे 'चारबाग', कब रखी गई बुनियाद- Amar Bharti Media Group राज्य, उत्तर प्रदेश, विशेष, Lucknow

जानिए, क्यों कहते हैं इसे ‘चारबाग’, कब रखी गई बुनियाद

चहार बाग से नाम बन गया चारबाग

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ अपने अदब और तहजीब के लिए पूरी दुनिया में जानी जाती है। यही नहीं लखनऊ खान-पान के मामलें में देश के बेहतरीन जगहों में से एक माना जाता है। 


ऊपर से दिखता है शतरंज जैसा

 आज हम बात करेगें लखनऊ के चारबाग के रेलवे स्टेशन की। आप को बता दें कि दूसरे शहर से आने वाले शख्स के कदम जैसे ही चारबाग रेलवे स्टेशन पर पड़ते हैं, यहां की खूबसूरती और भव्यता उसे दीवाना बना देती है। देश के सबसे खूबसूरत रेलवे स्टेशनों में शुमार चारबाग को ऊपर से देखने पर ये शतरंज की बिसात जैसा लगता है।


पहले कहा जाता था चहार बाग

ऐसा बताया जाता है कि चारबाग को पहले चहार बाग कहा जाता था। यह नवाब आसफुद्दौला के पसंदीदा बागों में से एक था। चारबाग भारत का सबसे ज्यादा व्यस्त और खूबसूरत रेलवे स्टेशन है।


गांधी-नेहरू की पहली मुलाकात

 महात्मा गांधी 26 दिसम्बर 1916 को पहली बार लखनऊ आए थे। इस दौरान उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू से चारबाग रेलवे स्टेशन पर पहली मुलाकात की थी। बताया जाता है कि तकरीबन 20 मिनट की मुलाकात में पंडित जी बापू के विचारों से काफी प्रभावित हुए थे। जवाहर लाल नेहरू अपने पिता मोती लाल नेहरू के साथ आए थे। इस मुलाकात का जिक्र नेहरू जी ने अपनी आत्मकथा में भी किया है। जिस जगह पर गांधी नेहरू की मुलाकात हुई वहां आजकल स्टेशन की पार्किंग है। इस मिलन की निशानी के तौर पर उस जगह पर एक पत्थर भी लगा है।


अंग्रेजों ने रखी थी स्टेशन की नींव

इतिहासकार रोशन तकी बताते हैं, जब नवाबी दौर खत्म हुआ तो इस बाग की रौनक भी फीकी पड़ गई। उसी दौरान अंग्रेज सरकार ने बड़ी लाइन के एक शानदार स्टेशन की योजना बनाई। अंग्रेज अधिकारियों को मोहम्मद बाग और आलमबाग के बीच का ये इलाका बहुत पसंद आया। ये वो दौर था जब ऐशबाग में लखनऊ का रेलवे स्टेशन था। चारबाग और चार महल के नवाबों को मुआवजे में मौलवीगंज और पुरानी इमली का इलाका देकर यहां ट्रैक बिछा दिए गए। 21 मार्च 1914 को बिशप जॉर्ज हरबर्ट ने इस की बुनियाद रखी।


70 लाख आई थी लागात

 आप को बता दें कि राजपूत शैली में बने इस भवन में निर्माण कला के कौशल दिखाई देते हैं। पहला ऊपर से देखने पर इस इमारत के छोटे-बड़े छतरीनुमा गुंबद मिलकर शतरंज की बिछी बिसात का नमूना पेश करते हैं। उस वक्त चारबाग स्टेशन के बनने में 70 लाख रुपये खर्च हुए थे।

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